एक बार नारद ने भगवान को डायरी देखते हुए देखा तो पूछा- प्रभु, क्या देख रहे हैं ? प्रभु बोले- जो भक्त मुझे याद करते हैं मैं उनके नाम देख रहा हूँ । नारद ने उसे देखा तो बड़े खुश हुए साथ ही आश्चर्यचकित भी क्योंकि उसमें उनका नाम तो सबसे पहले था, पर हनुमान के नाम का कहीं नामोनिशान तक न था। वे नीचे आए और हनुमान से कहने लगे- तुम तो व्यर्थ ही भगवान का नाम लेते हों क्योंकि ........। हनुमान ने कहा- मुझे नाम से क्या लेना-देना, मैं नाम के लिए नहीं प्रभु को पाने के लिए प्रभु को याद करता हूँ। कुछ दिन बाद जब नारद ने पुनः डायरी देखते हुए भगवान को देखा तो पूछा- प्रभु, आज फिर डायरी में क्या देख रहे हो ? प्रभु ने कहा- आज मैं उन भक्तों के नाम देख रहा हूँ जिन्हें मैं खुद याद करता हूँ। नारद ने उसे देखा तो पता चला उसमें हनुमान का नाम सबसे ऊपर था।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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