हमारे इतिहास में अनेक प्रसंग आते है , जिनमें पथभ्रमित पति को सती, साध्वी, विवेकशील पत्नी ने सत्पथ पर आरूढ़ किया। महाराष्ट्र पर से समर्थ रामदास, वीरश्रेष्ठ छत्रपति शिवाजी और माता जीजाबाई की छत्रछाया उठ चुकी थी। शिवाजी के उत्तराधिकारी संभाजी विलासिता के कारण पन्हाला के दुर्ग में कैद थे। संभाजी को एक लंपट व्यक्ति से ऊपर उठाकर यशस्वी बनाने में येंसुबाई का हाथ था ।उन्होने अपने पति को सँभाला । उँच-नीच समझाई, पिता के आदर्श स्मरण कराए। एक प्रकार से संभाजी का येसुबाई ने कायाकल्प कर दिया । वे संभाजी के साथ छाया की तरह लगी रहती थी। उन्हाने अपने पति को इस सीमा तक मजबूत बना दिया कि वे जब अँगरेज द्वारा पकड़े गए ,प्रताड़ित किए गए, तब भी उन्होने धर्म परिवर्तन स्वीकार नही किया। अंतत: संभाजी का वध कर दिया गया । येसुबाई ने अपने देवर राजाराम को मराठों का नेता बना दिया। यहाँ तक कि औरंगजेब ने उन्हे पकड़ कर सोलह वर्ष तक दिल्ली में बंद रखा, पर वे वहाँ से भी संदेश भेजती रहीं कि और राजाराम को छत्रपति बना दिया । 1719 में येसुबाई मुक्त हुई। सत्तर वर्ष की आयु में अपने ही राज्य में जो अभी भी स्वतंत्र था, उन्होंने अंतिम साँस ली।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
बुधवार, 9 सितंबर 2009
नागारानी गिडालू
नागारानी गिडालू के बारे में आम भारतवासी अधिक जानता नही है। नागारानी नागा पहाडियों की पवित्र संतान कोबाई कबीले के एक पुरोहित के घर जन्मी थी। सोलह साल की गिडालू पर भारत भर में चल रहे असहयोग आंदोलन का बड़ा प्रभाव पड़ा, जब उसकी प्राचार्या ने राष्ट्रधर्म के बारे मे बताया। उसने दस-पंद्रह सहयोगिनी बहनों का एक संघठन बनाया । धीरे-धीरे यह संगठन बड़ा होता गया। अनेक कबीले अँगरेज सत्ता के विरोध में उठ खडे हुए और उन्होने विदेशी वस्तुओं की होली जलाई । पुलिस ने अपना दमनचक्र चलाया । अतत: उन्हें गिरफ्तार कर आजन्म कारावास की सजा मिली। आजादी के भी दो वर्ष बाद 19 जुलाई, 1949 को वे 18 वर्ष की सजा काटकर निकली। तब वे 37 वर्ष की प्रोढा हो चुकी थीं, पर उनके जेल में रहते हुए क्रांति की जो चिनगारी फूटी, उसने पूरे नेफा क्षेत्र में एक अलख जगा दी। अपनी सारी जवानी आजादी के लिए कुरबान कर देने वालों को सारा राष्ट्र नमन करता है।
सरदार पटेल
सरदार पटेल कहते थे कि `यदि मणि न होती तो मै न जाने कब का मर गया होता ! मणि बेन सरदार पटेल की पुत्री थीं। वे इस तथ्य की परिचायक थीं कि मानव का सच्चा आभूषण सादगी है। मणि बेन अपने पिता को कुछ दवा पिला रही थी कि वरिष्ठ कांग्रेसी महावीर त्यागी वहाँ प्रविष्ट हुए। बातचीत के दौरान उन्होने देखा कि सरदार पटेल की धोती में जगह-जगह पैबन्द लगे है। एक और धोती वे इसी तरह सीं रही थीं। त्यागी जी ने यह देखकर कहा-``मणि बेन ! तू तो एक ऐसी बाप की बेटी हो, जिसने साल भर में भारत को एक चक्रवर्ती राज्य बना दिया । तुम्हें संकोच नही होता। तुम्हारे एक आदेश पर कई धोतियाँ, सरदार व तुम्हारे लिए आ सकती है ।´´ मणि का उत्तर था- शरम उन्हे आए, जो झूठ बोलते है, बेईमानी करते है और शेखी बघारते है। हमे कैसी शरम ! डॉ0 सुशीला नय्यर, जो वहाँ बैठी थी, ने कहा- `किससे बात कर रहे है आप महावीर जी ! मणि दिन भर चरखा कातकर सूत से धोती-कुरते बनाती है । फट जाते है तो उसी से अपने लिए धोती ब्लाउज बना लेती है । आपकी तरह सरदार का कपडा खद्दर भंडार से नही आता । आज के झकाझक सफेद कपडे या सफारी पहनने वाले नेताओ के लिए यह एक तमाचा है ।
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