शिकागो में विवेकानन्द के तेज को देखकर एक युवती उन पर मोहित हो गई। वह उनसे मिलने गई और एकांत देखकर कहने लगी- स्वामीजी, मैं आप जैसे एक तेजस्वी पुत्र की माँ बनना चाहती हूँ। क्या आप मेरी यह इच्छा पूरी कर सकते हैं ? विवेकानन्द ने युवती से कहा- भारतीय संत अपने द्वार पर आए किसी को भी कभी खाली हाथ नहीं लौटाते। मैं तुम्हारी यह इच्छा अभी पूरी कर देता हूँ। लो तुम मुझे ही आज से अपना बेटा मान लो। इसे कहते है। मन का संयम।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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