विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
बुधवार, 23 मार्च 2011
लोकमानस का परिष्कार ही श्रेष्ठ सेवा
सेवा साधना में पीड़ा निवारण का महत्व है, पर तात्कालिक राहत पहुँचाने के रूप में ही किया जा सकता है।
श्रेष्ठ स्तर की सेवा उसे ही कहा जायेगा जिससे समस्याओं को स्वयं हल करने की दिशा मिलती है। जिससे व्यक्ति स्वयं अपनी गुत्थियों को सुलझाने की सामर्थ्य विकसित कर सके।
इस उद्देश्य को पूरा करने वाली सेवा ही आध्यात्मिक स्तर की सेवा मानी जानी चाहिए।
अन्य को अनावश्यक तो नहीं बताया जा रहा, उनकी भी समय और परिस्थिति के अनुसार आवश्यकता है , परन्तु सेवा का वह अभ्यास सदैव जारी रखा जा सके वैसे अवसर कम ही आते हैं ।
विचार सेवा या पतन के उन्मूलन का अवसर सदैव प्रस्तुत है । वह श्रेष्ठ भी है और सहज भी।
- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
वांग्मय क्र.२ - जीवन देवता की साधना - आराधना -१०.३९
Transformation of thoughts -
greatest service to humankind
Alleviating human pain and suffering is a significantly important way to render service to humankind. But service in such a way can be rendered only in the form of providing immediate relief.
Highest form of service would be to, provide one with the mindset to solve problems. A mindset, perspective, way of thinking which will enable a person to develop the capacity for solving ones own problems.
Service aimed at fulfilling such an objective is spiritual in nature.
We don't intend to say that the other forms of service are unnecessary, at an appropriate time and place they too are necessary, but an opportunity to do such activities continuously is quite rare.
“Thought-service” - A service rendered to elevate, reform the level of ones' thinking - can be rendered uninterrupted. What’s more, this kind of help or service is simple to offer and most excellent in nature as well.
-Pt. Shriram Sharma Acharya
Translated from -
The complete works of Pt. Shriram Sharma Acharya
(Jivan Devtā kī sādhanā-ārādhanā) Vol 2 - Page 1.11
सदस्यता लें
संदेश (Atom)