लक्ष्य एवं उद्देश्य :
- मनुष्य में देवत्व का उदय, धरती पर स्वर्ग का अवतरण।
- व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण, समाज निर्माण।
- स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन, सभ्य समाज।
- आत्मवत् सर्वभूतेषु, वसुधैव कुटुंबकम्।
- एक राष्ट्र, एक भाषा, एक धर्म, एक शासन।
- लिंगभेद, जातिभेद, वर्गभेद से ऊपर उठकर सबको विकास का अवसर।
- युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा
- प्रखर प्रज्ञा - सजल श्रद्धा।
- योजना-शक्ति-ईश्वर की
- अनुशासन-संरक्षण-ऋषियों का
- पुरुषार्थ-सहकार-सत्पुरुषों का।
- उत्कृष्ट चिन्तन, आदर्श कत्र्तृत्व
- सादा जीवन - उच्च विचार।
- नैतिक क्रांति, बौद्धिक क्रांति, सामाजिक क्रांति
- धर्मतंत्र-आधारित विविध माध्यमों से लोकशिक्षण
- गायत्री-सामूहिक विवेकशीलता एवं यज्ञ-सहकारितायुक्त सत्कर्म।
- हम बदलेंगे-युग बदेलगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा
- इक्कीसवीं सदी - उज्ज्वल भविष्य
- सबकी सेवा - सबसे प्रेम।
- लाल मशाल-समग्र क्रान्ति के लिए सामूहिक सशक्त प्रयास-युग शक्ति का विकास।
- युग निर्माण सत्संकल्प के सूत्र।
- मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
- जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।
- नर-नारी परस्पर प्रतिद्वन्द्वी नहीं, पूरक हैं।
- साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा।
- उपासना, साधना, आराधना।
- समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी।
- इंद्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम, विचार संयम।
- आत्मसमीक्षा, आत्मसुधार, आत्मनिर्माण, आत्मविकास।
- श्रमशीलता, सुव्यवस्था, शालीनता (शिष्टता), सहकारिता, मितव्ययिता।
- स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर।
- ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग।
- भावना, विचारणा, क्रिया-प्रक्रिया।
- श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठा।
- गुण, कर्म, स्वभाव।
- चिंतन, चरित्र, व्यवहार।
- लोभ, मोह, अहंकार।
- वासना, तृष्णा, अहंता
- पुत्रैषणा, वित्तैषणा, लोकैषणा।
- ओजस्, तेजस्, वर्चस्।
- संत, सुधारक, शहीद।
- साधना, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन, नारी जागरण, पर्यावरण, व्यसन मुक्ति एवं कुरीति उन्मूलन।
- प्रचारात्मक, रचनात्मक, संघर्षात्मक।
- जन-जन तक युगनिर्माण का संदेश।
- नव सृजन में प्रतिभाओं का रचनात्मक सहयोग।
- सृजन के मार्ग में आने वाली बाधाओं का निवारण।
विचार क्रान्ति अभियान, शान्तिकुंज, हरिद्वार, उत्तरांचल (भारत)