गांधीजी अपनी पत्नी कस्तुरबा के साथ श्रीलंका के एक कार्यक्रम में भाग लेने पहुँचे। मंच संचालक ने कहा- आज श्रीलंका का सौभाग्य हैं कि गांधीजी के साथ उनकी मातुश्री कस्तुरबा भी आए हैं। लोगों में कानाफूसी होने लगी। लोगो ने उससे कहा- यह उनकी माँ नहीं, पत्नी हैं। यह सुनते ही मंच संचालक सहम गया। उसने कहा- उससे बहुत बड़ी भूल हो गई हैं कि उसने पत्नी को माँ कह दिया इसलिए मैं सबसे माफी मांगता हूँ। यह सुनकर गांधीजी बोले- इन्होनें गलती नहीं की वरन् मुझे सचेत किया हैं। मैं अब साठ साल का हो गया हूँ अतः पत्नी के रिश्ते से ऊपर उठ जाना चाहिए, इसलिए आज के बाद कस्तुरबा मेरी पत्नी की तरह नहीं, माँ की तरह आदरणीय रहेगी। यह हैं संयम की महान् सोच।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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