बुधवार, 28 जुलाई 2010

आपका दुश्मन कौन?

एक बहुत बड़ी कंपनी के कर्मचारी लंच टाइम में जब वापस लौटे, तो उन्होंने नोटिस बोर्ड पर एक सूचना देखी। उसमे लिखा था कि कल उनका एक साथी गुजर गया, जो उनकी तरक्की को रोक रहा था। कर्मचारियों को उसको श्रद्धांजलि देने के लिए बुलाया गया था।

श्रद्धांजलि सभा कंपनी के मीटिंग हॉल में रखी गई थी। पहले तो लोगो को यह जानकर दुःख हुआ कि उनका एक साथी नही रहा, फिर वो उत्सुकता से सोचने लगे कि यह कौन हो सकता है? धीरे धीरे कर्मचारी हॉल में जमा होने लगे। सभी होंठो पर एक ही सवाल था! आख़िर वह कौन है, जो हमारी तरक्की की राह में बाधा बन रहा था।

हॉल में दरी बिछी थी और दीवार से कुछ पहले एक परदा लगा हुआ था। वहां एक और सूचना लगी थी कि गुजरने वाले व्यक्ति की तस्वीर परदे के पीछे दीवार पर लगी है। सभी एक एक करके परदे के पीछे जाए, उसे श्रद्धांजलि दे और फिर तरक्की की राह में अपने कदम बदाये, क्योकि उनकी राह रोकने वाला अब चला गया। कर्मचारियों के चेहरे पर हैरानी के भाव थे!

कर्मचारी एक एक करके परदे के पीछे जाते और जब वे दीवार पर टंगी तस्वीर देखते, तो अवाक हो जाते। दरअसल, दीवार पर तस्वीर की जगह एक आइना टंगा था। उसके नीचे एक पर्ची लगी थी, जिसमे लिखा था "दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति है, जो आपकी तरक्की को रोक सकता है, आपको सीमाओं में बाँध सकता है! और वह आप ख़ुद है. "अपने नकारात्मक हिस्से को श्रद्धांजलि दे चुके 'नए' साथियो का स्वागत है.

आपके ख़ुद के नकारात्मक विचार और आपके द्वारा पाली गई कमजोरियां ही आपके सबसे बड़े दुश्मन है।

अन्तिम इच्छा

एक आदमी ने जिन्दगी भर कंजूसी की, उसने काम किया, पैसा कमाया, पर ज्यादा से ज्यादा बचाने में जुटा रहा। इस चक्कर में उसने परिवार की बुनियादी जरूरतों में भी खूब काट छांट की और पर्याप्त धन होते हुए भी उसके बीवी बच्चे अभावो में जीते रहे। जब उसका अंत समय आया, तो उसने अपनी बीवी को बुलाकर कहा - देखो तुम तो जानती हो कि किसी और चीज़ की तुलना में मुझे अपना पैसा सबसे ज्यादा प्यारा है। इसलिए मै चाहता हूँ कि मेरी मौत के बाद तुम सारा पैसा मेरी कब्र में रखवा देना। उसकी बात सुनकर पत्नी को बहुत गुस्सा आया, लेकिन चूंकि वह मर रहा था और मरते आदमी की इच्छा जरूर पूरी की जाती है, इसलिए बीवी ने उसे भरोसा दिलाया कि वह ऐसा ही करेगी।

कुछ समय बाद उस आदमी की मौत हो गई। उसकी बीवी बच्चो ने अन्य सम्बन्धियो को उसकी अन्तिम इच्छा की जानकारी दी। जो लोग उसकी कंजूसी से वाकिफ थे वे दबी जुबान में उसकी इस इच्छा की आलोचना करने लगे। यहाँ तक कि बच्चे भी इस हक़ में नही थे कि सारा पैसा कब्र में रखवा दिया जाए। लेकिन बच्चो की माँ अपने पति की अन्तिम इच्छा पूरी करने पर अडी हुई थी। सबने उसे बहुत समझाया, पर वह नही मानी। इस बीच उसने सारा पैसा इकठ्ठा किया और उसे लेकर कहीं बाहर चली गई और कुछ समय में लौट भी आई।

अब तक अन्तिम संस्कार की सारी तैयारी हो चुकी थी। जब ताबूत को कब्र में उतारा जाने लगा, तो मृतक की पत्नी आगे बढ़ी सभी सोच रहे थे कि वह सारा का सारा पैसा कब्र में डाल देगी। बच्चो के चेहरों पर निराशा थी, तो औरो के चेहरों पर उसके लिए सहानभूति। महिला ने अपना पर्स खोला और उसमे से चेकबुक निकालकर कुछ रकम लिखी, फिर उस चेक को कब्र में डाल दिया और बोली - मैंने तुम्हारी जमापूंजी अपने खाते में जमा कराकर तुम्हारे नाम उस रकम का चेक बना दिया है। यह चेक मै कब्र में छोडे जा रही हूँ, जब भी जरुरत हो कैश करवा लेना।

मजबूरी में मूर्खतापूर्ण वादा करना पड़े, तो उसे पूरा करने का कोई बुद्धिमानी भरा रास्ता खोजना चाहिए!

ईश्वर की कृपा

एक गांव में बाढ़ आने से पहले सभी गांव वाले अपना - अपना घर छोड़ कर भाग रहे थे, सिवाए एक आदमी के जिसने कहा कि इश्वर मुझे बचायेगा, मुझे उस पर पूरा भरोसा है ।

जब पानी का स्तर बढ़ा तो उसे बचाने के लिए एक जीप आई तो उसने मना कर दिया और मकान के दूसरे मंजिल पर चला गया और कहा कि इश्वर मुझे बचायेगा, मुझे उस पर भरोसा है। तभी एक नाव उसे बचाने के लिए आई उसने इंकार कर दिया और कहा कि ईश्वर मुझे बचायेगा, मुझे उस पर भरोसा है। जब पानी स्तर और बढ़ा तो वह मकान के छत पर चढ़ गया, इस बार उसे बचाने के लिए हेलीकॉप्टर आया पर उसने फिर वही बात दुहराई कि ईश्वर मुझे बचायेगा, मुझे उस पर भरोसा है और वो नही चढा। जब पानी का स्तर बढ़कर उसके नाक तक आया तो वह उसे एक लकड़ी का तख्ता मिला पर उसने उसका भी सहारा नही लिया और फिर मन ही मन कहा कि इश्वर मुझे बचायेगा, मुझे उस पर भरोसा है और अंत मे वह पानी मे डूबकर मर गया ।

जब मरकर ईश्वर के पास पंहुचा तो उसने गुस्से से पूछा मुझे तुम पर पूरा भरोसा था फिर तुमने मेरी प्रार्थना क्यो अनसुनी कर दी ? तब इश्वर ने कहा कि वह जीप, नाव, हेलीकॉप्टर, तख्ता आदि किसने भेजा था ? लेकिन नहीं बचने कि गलती तुम्हारी थी, भला मैं क्या कर सकता था ?

भाग्य उन्ही का साथ देता है जो अपनी मदद ख़ुद करते हैं , किस्मत और भगवान् पर जो सब कुछ छोड़ देते हैं उनसे बड़ा बेवकूफ दुनिया में कोई नहीं होता!

खोई हुई सुई

एक बार एक औरत अपने झोपडे के बाहर कुछ खोज रही थी। पास-पड़ोस के लोगो ने सोचा ,बूढी औरत है चलो मदद की जाए ,उन लोगों ने पूछा क्या खोजती हो ? उसने कहा, 'मेरी सुई खो गयी है' इस पर लोगो ने सुई खोजना शुरू कर दिया । अब सुई जैसी छोटी चीज, साँझ का समय जब बहुत देर खोजने के बाद भी नही मिला और अँधेरा होने लगा तों एक आदमी ने पूछा, 'ऐ! बूढी औरत ये तो बता दे की तेरी सुई खोई कहाँ है ? तब बूढी औरत ने कहा,' सुई तों मेरे घर के अन्दर खोई है, लेकिन वहाँ बहुत अँधेरा है और मेरे पास दीया नही है, इसलिए जहाँ उजाला है उसे वही खोजा जा सकता है, क्योकि अंधेरे में तों सुई मिलेगी नही। लोगो ने कहा पागल हो गयी है तू बुढिया, सुई अन्दर है और तू उसे बाहर खोज रही है, चलो सब लौट चलो, चलो इस पागल को खोजने दो, यह कहकर सभी लोग लौटने लगे, जब वो लोग लौटने को हुए तों बूढी औरत हँसने लगी और कहा की तुम मुझे पागल कहते हो तब तो सारी दुनिया ही पागल है, क्योंकि सारे लोग तों बाहर ही खोजते है, उसे जो अन्दर है।

चाहे वो सुख हो या फिर सफलता वो हमारे भीतर छिपा होता है पर दुर्भाग्यवश लोग उसे वहाँ नही खोजते। अपने अन्दर खोजने वालों को ही अपनी शक्ति का एहसास हो सकता है ।

जोड़ना और तोड़ना

एक बार महात्मा बुद्ध पहाड़ी इलाके से गुजर रहे थे तभी एक हत्यारे ने उन्हें घेर लिया, उसने बुद्ध को रोका और कहा कि तुम वापस लौट जाओ तों मैं तुम्हे छोड़ दूँ, अन्यथा यह मेरी तलवार तुम्हरी गर्दन को काट देगी ।

बुद्ध ने कहा, 'एक दिन तों यह गर्दन गिर ही जानी है अगर तुम्हरे काम आ जाए तों मैं तैयार हूँ। लेकिन इससे पहले कि तुम मेरी गर्दन काटो एक छोटा सा काम करके मुझपर कृपा करते जाओ । उस हत्यारे ने पूछा, 'कौन सा काम, मरते हुये आदमी की अब कौन सी इच्छा ? और उसे कौन पुरी न कर दे ?  बोलो क्या काम है ?'

बुद्ध ने कहा,' यह जो सामने पेड़ है उस पर से थोडी पत्तियाँ मुझे तोड़ दो । वह बहुत हैरान हुआ, उसने कहा इसका क्या करोगे ? बुद्ध ने कहा, 'फिर भी तुम इसे तोड़ दो । उस हत्यारे ने अपने तलवार मारी और एक छोटी शाखा काटकर बुद्ध के हाथों में देदी। बुद्ध ने कहा, ' इतना तुमने किया, एक छोटा सा काम और। इसे वापस जोड़ दो । हत्यारा बोला, ' यह तों मुश्किल है यह नही हो सकता।'

तो बुद्ध ने कहा, तोड़ने का काम तो बच्चा भी कर सकता था तुम तो पुरूष हो बहादुर हो, जोड़ने का काम करो तोड़ने में कहा गौरव है, आओ अब तुम मेरी गर्दन काट लो ।

इतना सुनते ही उस हत्यारे ने तलवार पटक दी और बुद्ध की चरणों में गिर पड़ा। 

तोड़ने का काम हमेशा कमजोर और कायर ही करते है, सवाल तो जोड़ने का है। प्रेम जोड़ता है और घृणा तोड़ता है। इस दुनिया में जिसने भी, जितना भी पाया है वो जोड़कर ही पाया ...तोड़कर नही।

सुकरात का नजरिया

सुकरात एक महान दार्शनिक तो थे ही, उनका जीवन संतों के जीवन की तरह परम सादगीपूर्ण था। उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी, यहाँ तक कि वे पैरों में जूते भी नहीं पहनते थे। फ़िर भी वे रोज़ बाज़ार से गुज़रते समय दुकानों में रखी वस्तुएं देखा करते थे।

उनके एक मित्र ने उनसे इसका कारण पूछा। सुकरात ने कहा – “मुझे यह देखना बहुत अच्छा लगता है कि दुनिया में कितनी सारी वस्तुएं हैं जिनके बिना मैं इतना खुश हूँ।” 

खिचड़ी से भी ज्ञान

एक बार खेतड़ी नरेश ने स्वामी विवेकानंद को अपने यहाँ भोजन पर आमंत्रित किया . उन्हें खिचड़ी बहुत पसंद था इस लिए उन्हें गरम-गरम खिचड़ी परोसी गयी. खिचड़ी में ढेर सारी घी होने कि वजह से काफी अच्छी खुशबू आ रही थी जो स्वामी जी के मन को अपनी ओर खिची चली जा रही थी. स्वामी जी ने बिना देर किये तुरंत थाल के बीच में ही हाथ डाल दिया . खिचड़ी अभी बहुत गरम थी इस वजह से स्वामी जी कि उंगलिया जलने लग रही थी. मौका की नजाकत को देखकर राजा ने स्वामी जी को कहा ,

'गर्म खिचड़ी को बीच से न खाकर हमेशा किनारे से ही खाना चाहिए . '

जब स्वामी जी का भोजन हो गया तो चलते वक्त उन्होंने राजा से कहा ,'राजन आज तो हमे खिचड़ी से भी ज्ञान प्राप्त हो गया है कि कोई भी काम बीच से न शुरू करके एक छोर से ही करना चाहिए.'



बुद्ध की सभा

महात्मा बुद्ध को एक सभा में भाषण करना था । जब समय हो गया तो महात्मा बुद्ध आए और बिना कुछ बोले ही वहाँ से चल गए । तकरीबन एक सौ पचास के करीब श्रोता थे । दूसरे दिन तकरीबन सौ लोग थे पर फिर उन्होंने ऐसा ही किया बिना बोले चले गए ।इस बार पचास कम हो गए । 

तीसरा दिन हुआ साठ के करीब लोग थे महात्मा बुद्ध आए, इधर - उधर देखा और बिना कुछ कहे वापिस चले गए । चौथा दिन हुआ तो कुछ लोग और कम हो गए तब भी नहीं बोले । जब पांचवां दिन हुआ तो देखा सिर्फ़ चौदह लोग थे । महात्मा बुद्ध उस दिन बोले और चौदोहों लोग उनके साथ हो गए ।

किसी ने महात्मा बुद्ध को पूछा आपने चार दिन कुछ नहीं बोला । इसका क्या कारण था । तब बुद्ध ने कहा मुझे भीड़ नहीं काम करने वाले चाहिए थे । यहाँ वो ही टिक सकेगा जिसमें धैर्य हो । जिसमें धैर्य था वो रह गए। 

केवल भीड़ ज्यादा होने से कोई धर्म नहीं फैलता है । समझने वाले चाहिए, तमाशा देखने वाले रोज इधर - उधर ताक-झाक करते है । समझने वाला धीरज रखता है । कई लोगों को दुनिया का तमाशा अच्छा लगता है । समझने वाला शायद एक हजार में एक ही हो ऐसा ही देखा जाता है ।

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin