विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
रविवार, 12 जून 2011
अखण्ड ज्योति जून 1982
1. उत्तिष्ठ, जागृत प्राप्य वरान्निबोधत
2. दूसरी पंक्ति मे हर किसी की साझेदारी सम्भव
3. प्रज्ञा परिजनों के लिए निर्धारित सप्त सूत्री कार्यक्रम-2
4. जीवन साधना की व्यावहारिक तपश्चर्या
5. परिवार में सत्प्रवृत्तियों की फसल उगायें
6. अवाँछनीयता के आगे सिर न झुकायें
7. शिक्षा और विद्या की अभ्यर्थना हमारे हर परिवार में चल पड़े
8. जीवन को सींचे जिसकी हरितिमा फूले-फले
9. आलोक वितरण का पुण्य परमार्थ-आज का युगधर्म
10. छोटे सप्त सूत्र सात समुद्रो की तरह महान्
11. प्रज्ञा परिजनों के पाँच दिवसीय प्रेरणा सत्र
12. अपनो से अपनी बात
13. अगले वर्ष के सम्मेलन समारोह
14. पुरोहित से-कविता
2. दूसरी पंक्ति मे हर किसी की साझेदारी सम्भव
3. प्रज्ञा परिजनों के लिए निर्धारित सप्त सूत्री कार्यक्रम-2
4. जीवन साधना की व्यावहारिक तपश्चर्या
5. परिवार में सत्प्रवृत्तियों की फसल उगायें
6. अवाँछनीयता के आगे सिर न झुकायें
7. शिक्षा और विद्या की अभ्यर्थना हमारे हर परिवार में चल पड़े
8. जीवन को सींचे जिसकी हरितिमा फूले-फले
9. आलोक वितरण का पुण्य परमार्थ-आज का युगधर्म
10. छोटे सप्त सूत्र सात समुद्रो की तरह महान्
11. प्रज्ञा परिजनों के पाँच दिवसीय प्रेरणा सत्र
12. अपनो से अपनी बात
13. अगले वर्ष के सम्मेलन समारोह
14. पुरोहित से-कविता
अखण्ड ज्योति मई 1982
1. विराट् का सम्बोधन
2. खिलाकर खाना-ब्रह्म रहस्य
3. अन्तराल की सम्पदा खोज निकालने का उपयुक्त समय
4. परिपक्व और परिष्कृत व्यक्तित्च के सूत्र
5. उच्चस्तरीय सहयोग किस मूल्य पर खरीदें
6. स्नेह सहकार का आदान-प्रदान
7. अब विज्ञान उतना नास्तिक नहीं रहा
8. शाश्वत सत्य का दर्शन
9. समुन्नत व्यक्तित्व बनाने के लिए ‘जेनेटिक इन्जीनियरिंग’ का उपयोग
10. अहंकारो बाध्यते लक्ष्यः
11. इस ब्रह्माण्ड में अनेको जीवन युक्त ग्रह पिण्ड
12. धरती से लोक लोकान्तरों का आवागमन मार्ग
13. विलक्षणताओं से भरी हमारी पृथ्वी
14. किमाश्चर्यमतः परम् ?
15. कुकृत्यों से वस्तुएँ भी अभिशप्त होती हैं
16. जीवन यज्ञ और उसके तीन अनुशासन
17. यज्ञाग्नि और सामान्य अग्नि का अन्तर
18. यज्ञ चिकित्सा और आधि-व्याधि निवारण
19. ज्योतिष विज्ञान उपेक्षणीय नहीं हैं
20. अन्तरीक्षिय परिस्थितियों का धरा द्वारा पर प्रभाव
21. ज्योतिर्विज्ञान मात्र भौतिकी तक सीमित नहीं हैं
22. अपनो से अपनी बात
23. प्रज्ञा परिजन के पाँच-पाँच दिवसीय तीर्थ सत्र
24. प्रज्ञापुत्रों के कल्प साधना सत्र
25. नव-सृष्टि सृजन
2. खिलाकर खाना-ब्रह्म रहस्य
3. अन्तराल की सम्पदा खोज निकालने का उपयुक्त समय
4. परिपक्व और परिष्कृत व्यक्तित्च के सूत्र
5. उच्चस्तरीय सहयोग किस मूल्य पर खरीदें
6. स्नेह सहकार का आदान-प्रदान
7. अब विज्ञान उतना नास्तिक नहीं रहा
8. शाश्वत सत्य का दर्शन
9. समुन्नत व्यक्तित्व बनाने के लिए ‘जेनेटिक इन्जीनियरिंग’ का उपयोग
10. अहंकारो बाध्यते लक्ष्यः
11. इस ब्रह्माण्ड में अनेको जीवन युक्त ग्रह पिण्ड
12. धरती से लोक लोकान्तरों का आवागमन मार्ग
13. विलक्षणताओं से भरी हमारी पृथ्वी
14. किमाश्चर्यमतः परम् ?
15. कुकृत्यों से वस्तुएँ भी अभिशप्त होती हैं
16. जीवन यज्ञ और उसके तीन अनुशासन
17. यज्ञाग्नि और सामान्य अग्नि का अन्तर
18. यज्ञ चिकित्सा और आधि-व्याधि निवारण
19. ज्योतिष विज्ञान उपेक्षणीय नहीं हैं
20. अन्तरीक्षिय परिस्थितियों का धरा द्वारा पर प्रभाव
21. ज्योतिर्विज्ञान मात्र भौतिकी तक सीमित नहीं हैं
22. अपनो से अपनी बात
23. प्रज्ञा परिजन के पाँच-पाँच दिवसीय तीर्थ सत्र
24. प्रज्ञापुत्रों के कल्प साधना सत्र
25. नव-सृष्टि सृजन
अखण्ड ज्योति मार्च 1982
1. साधना विज्ञान की तात्विक पृष्ठभूमि
2. उपासना के तत्वदर्शन को भली भाँति हृदयंगम किया जाय
3. साधना की सफलता में मार्गदर्शक की महत्ता
4. ध्यान साधना का प्रथम चरण-बिखराव का एकीकरण
5. नादयोग द्वारा दिव्य ध्वनियों की संसिद्धि
6. शब्द-शक्ति की प्रचण्ड सामर्थ्य
7. वातावरण अनुकूलन व प्रसुप्त के जागरण हेतु सामूहिक उपासना
8. प्राणमंथन-प्राणाकर्षण प्राणयोग का प्रथम चरण
9. प्राणयोग का उच्चस्तरीय प्रयोग-सोऽम् साधना
10. त्राटक की ध्यान साधना का तत्व दर्शन
11. अन्तः को ज्योतिर्मय-विभूतिवान बनाने वाली बिन्दु योग साधना
12. भावो हि विद्यते देव तस्मात् भावो हि कारणम
13. आत्मिक प्रगति का स्वर्णिम अवसर-प्रस्तुत नवरात्रि पर्व
14. चमत्कार और सिद्धियों के भ्रम जंजाल मे न भटकें-यथार्थता को समझे
15. सुपात्र पर ही दैवी अनुदान बरसते हैं
16. मनुष्य की सूक्ष्म आध्यात्मिक संरचना एक वैज्ञानिक विवेचन-1
17. अध्यात्म उपचारों की वैज्ञानिक साक्षी एवं ब्रह्मवर्चस के प्रयास
18. प्रस्तुत अन्तर्ग्रही परिस्थितियाँ और सम्भावित प्रतिक्रियाएँ
19. आन्तरिक परिष्कार का सुवर्ण सुयोग
20. चिन्तन कण-कविता
2. उपासना के तत्वदर्शन को भली भाँति हृदयंगम किया जाय
3. साधना की सफलता में मार्गदर्शक की महत्ता
4. ध्यान साधना का प्रथम चरण-बिखराव का एकीकरण
5. नादयोग द्वारा दिव्य ध्वनियों की संसिद्धि
6. शब्द-शक्ति की प्रचण्ड सामर्थ्य
7. वातावरण अनुकूलन व प्रसुप्त के जागरण हेतु सामूहिक उपासना
8. प्राणमंथन-प्राणाकर्षण प्राणयोग का प्रथम चरण
9. प्राणयोग का उच्चस्तरीय प्रयोग-सोऽम् साधना
10. त्राटक की ध्यान साधना का तत्व दर्शन
11. अन्तः को ज्योतिर्मय-विभूतिवान बनाने वाली बिन्दु योग साधना
12. भावो हि विद्यते देव तस्मात् भावो हि कारणम
13. आत्मिक प्रगति का स्वर्णिम अवसर-प्रस्तुत नवरात्रि पर्व
14. चमत्कार और सिद्धियों के भ्रम जंजाल मे न भटकें-यथार्थता को समझे
15. सुपात्र पर ही दैवी अनुदान बरसते हैं
16. मनुष्य की सूक्ष्म आध्यात्मिक संरचना एक वैज्ञानिक विवेचन-1
17. अध्यात्म उपचारों की वैज्ञानिक साक्षी एवं ब्रह्मवर्चस के प्रयास
18. प्रस्तुत अन्तर्ग्रही परिस्थितियाँ और सम्भावित प्रतिक्रियाएँ
19. आन्तरिक परिष्कार का सुवर्ण सुयोग
20. चिन्तन कण-कविता
अखण्ड ज्योति जनवरी 1982
1. संसार की सर्वश्रेष्ठ सामर्थ्य-आत्मशक्ति
2. आत्मसत्ता-परमात्म सत्ता का मिलन संयोग
3. दिव्य अनुदानों का सुयोग सुअवसर
4. योगाभ्यास-एकत्व अद्वेत का
5. ध्यान योग की दार्शनिक पृष्ठभूमि
6. आत्मिक प्रगति का सर्व समर्थ अवलम्बन प्रज्ञा
7. जीवन सम्पदा का मूल्यांकन और सदुपयोग
8. मानवी चुम्बकत्व-प्रतिभा का उद्गम स्त्रोत
9. शरीर संस्थान में बहती प्रचण्ड विद्युत धारा
10. अचेतन में मानवी गरिमा का उद्गम स्त्रोत
11. उत्थान-पतन का आधार-आकांक्षाओं का परिष्कार
12. दृश्य से भी अधिक विलक्षण और सामर्थ्यवान अदृश्य जगत
13. तपश्चर्या सरल भी सत्परिणामदायम भी
14. कर्मफल की सुनिश्चितता और प्रायश्चित की आवश्यकता
15. वर्तमान की तप साधना-भविष्य निर्माण के लिए
16. समस्त व्याधियों का निराकरण आध्यात्मिक उपचार से
17. चान्द्रायण कल्प की आहार-साधना
2. आत्मसत्ता-परमात्म सत्ता का मिलन संयोग
3. दिव्य अनुदानों का सुयोग सुअवसर
4. योगाभ्यास-एकत्व अद्वेत का
5. ध्यान योग की दार्शनिक पृष्ठभूमि
6. आत्मिक प्रगति का सर्व समर्थ अवलम्बन प्रज्ञा
7. जीवन सम्पदा का मूल्यांकन और सदुपयोग
8. मानवी चुम्बकत्व-प्रतिभा का उद्गम स्त्रोत
9. शरीर संस्थान में बहती प्रचण्ड विद्युत धारा
10. अचेतन में मानवी गरिमा का उद्गम स्त्रोत
11. उत्थान-पतन का आधार-आकांक्षाओं का परिष्कार
12. दृश्य से भी अधिक विलक्षण और सामर्थ्यवान अदृश्य जगत
13. तपश्चर्या सरल भी सत्परिणामदायम भी
14. कर्मफल की सुनिश्चितता और प्रायश्चित की आवश्यकता
15. वर्तमान की तप साधना-भविष्य निर्माण के लिए
16. समस्त व्याधियों का निराकरण आध्यात्मिक उपचार से
17. चान्द्रायण कल्प की आहार-साधना
अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1981
1. विज्ञान से भी अधिक उपयोगी अध्यात्म
2. मानवी काया आत्मविज्ञान की बहुमूल्य प्रयोगशाला
3. आत्म-सत्ता का अस्तित्व और वैभव
4. आत्म-सत्ता में ईश्वर का अवतरण
5. अदृश्य जगत की सम्पर्क साधना
6. ब्रह्म सम्बन्ध जोड़ने का आरम्भिक उपचार
7. साधना के लिए उपयुक्त साधनों की आवश्यकता
8. सामान्य जीवन में असामान्य स्तर की तपश्चर्या
9. आत्मिकी विभूतिवान बनाने वाली विद्या
10. मणि-मुक्तकों से भरा चेतन शक्ति का भाण्डागार मानव-मन
11. मनो यस्य वशे तस्य भवेत्सर्व जगद्वशे
12. अन्तर्निहित विभूतियों का प्रत्यक्षीकरण
13. ऋद्धि-सिद्धियों का रहस्योद्घाटन अपने ही अन्तराल में
14. साधना क्षेत्र में प्रवेश और उसकी पृष्ठभूमि
15. साधना में सफलता के लिए दो अनिवार्य अवलम्बन
16. परिशोधन के लिए चान्द्रायण प्रायश्चित
17. हठीले कुसंस्कारों का निराकरण चान्द्रायण से
18. चान्द्रायण काल की पुरश्चरण साधना
19. अपनो से अपनी बात
2. मानवी काया आत्मविज्ञान की बहुमूल्य प्रयोगशाला
3. आत्म-सत्ता का अस्तित्व और वैभव
4. आत्म-सत्ता में ईश्वर का अवतरण
5. अदृश्य जगत की सम्पर्क साधना
6. ब्रह्म सम्बन्ध जोड़ने का आरम्भिक उपचार
7. साधना के लिए उपयुक्त साधनों की आवश्यकता
8. सामान्य जीवन में असामान्य स्तर की तपश्चर्या
9. आत्मिकी विभूतिवान बनाने वाली विद्या
10. मणि-मुक्तकों से भरा चेतन शक्ति का भाण्डागार मानव-मन
11. मनो यस्य वशे तस्य भवेत्सर्व जगद्वशे
12. अन्तर्निहित विभूतियों का प्रत्यक्षीकरण
13. ऋद्धि-सिद्धियों का रहस्योद्घाटन अपने ही अन्तराल में
14. साधना क्षेत्र में प्रवेश और उसकी पृष्ठभूमि
15. साधना में सफलता के लिए दो अनिवार्य अवलम्बन
16. परिशोधन के लिए चान्द्रायण प्रायश्चित
17. हठीले कुसंस्कारों का निराकरण चान्द्रायण से
18. चान्द्रायण काल की पुरश्चरण साधना
19. अपनो से अपनी बात
अखण्ड ज्योति नवम्बर 1981
1. सदाशयता का प्रतिभाओं का आमन्त्रण
2. प्रेम और मोह का आधारभूत अन्तर
3. अन्तरात्मा-परमात्मा का प्रतीक प्रतिनिधि
4. आस्तिकता जीवन की अनिवार्य आवश्यकता
5. ईश्वर एक हैं-उसे एक ही रहने दे
6. अन्तःकरण का विकास और उज्ज्वल भविष्य
7. प्रगति के लिए मनुष्य को हर सुविधा उपलब्ध
8. युग समस्याओं से निपटने के लिए विज्ञान और अध्यात्म का सहयोग आवश्यक है
9. यह समूचा ब्रह्माण्ड फैल और फूल रहा हैं
10. सूर्य कलंको का अपनी दुनिया पर प्रभाव
11. बलिदान जो सार्थक हो गया
12. धरती से लोक-लोकान्तरों का आवागमन मार्ग
13. ये अप्रत्याशित घटनायें क्यों ?
14. बुद्धि न सर्वज्ञ हैं और न ही सर्व सर्मथ
15. उद्धत महत्वाकांक्षायें अवांछनीय
16. जीवन दर्शन की तीन स्वर्णिम सूत्र
17. जीवन देवता की आराधना और उपलब्धि
18. मनुष्य से महान् और कुछ नहीं
19. षट्-चक्रों की स्थिति एवं जागरण से उपलब्धि
20. आहार की भ्रान्तियाँ और उनका निवारण
21. रूग्णता हमारी ही उच्छ्रंखलता का प्रतिफल
22. अपनो से अपनी बात
2. प्रेम और मोह का आधारभूत अन्तर
3. अन्तरात्मा-परमात्मा का प्रतीक प्रतिनिधि
4. आस्तिकता जीवन की अनिवार्य आवश्यकता
5. ईश्वर एक हैं-उसे एक ही रहने दे
6. अन्तःकरण का विकास और उज्ज्वल भविष्य
7. प्रगति के लिए मनुष्य को हर सुविधा उपलब्ध
8. युग समस्याओं से निपटने के लिए विज्ञान और अध्यात्म का सहयोग आवश्यक है
9. यह समूचा ब्रह्माण्ड फैल और फूल रहा हैं
10. सूर्य कलंको का अपनी दुनिया पर प्रभाव
11. बलिदान जो सार्थक हो गया
12. धरती से लोक-लोकान्तरों का आवागमन मार्ग
13. ये अप्रत्याशित घटनायें क्यों ?
14. बुद्धि न सर्वज्ञ हैं और न ही सर्व सर्मथ
15. उद्धत महत्वाकांक्षायें अवांछनीय
16. जीवन दर्शन की तीन स्वर्णिम सूत्र
17. जीवन देवता की आराधना और उपलब्धि
18. मनुष्य से महान् और कुछ नहीं
19. षट्-चक्रों की स्थिति एवं जागरण से उपलब्धि
20. आहार की भ्रान्तियाँ और उनका निवारण
21. रूग्णता हमारी ही उच्छ्रंखलता का प्रतिफल
22. अपनो से अपनी बात
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1981
1. समुद्र मन्थन की पुनरावृति
2. चरित्र रक्षा के लिए सौन्दर्याहुति
3. सच्चिदानन्द की आस्था और अनुभूति
4. अन्तःकरण ही वास्तविक भाग्य-विधाता
5. हम सब एक महान श्रंखला के घटक भर हैं
6. सम्पदा एवं महानता में से एक चयन
7. सृष्टि के विस्तार एवं नियम के पीछे चेतनात्मक तथ्य
8. काम बीज का उन्नयन, ज्ञानबीज में परिवर्तन
9. मानवी विकास-परम्परा के आधारभूत कारण
10. बड़प्पन की नहीं, तेजस्विता भी
11. मानवी चेतना की रहस्यमय परतें
12. अपने विश्व ब्रह्माण्ड की संक्षिप्त जन्म कुण्डली
13. संकल्प शक्ति के साक्षी पिरामिड
14. जलयान जो सदा दुर्भाग्यग्रस्त ही रहा
15. हमारे अदृश्य किन्तु शुभ चिन्तक सहायक
16. मरणोत्तर जीवन का वैज्ञानिक पर्यवेक्षण
17. अतीन्द्रिय चेतना निराधार नहीं, विज्ञान सम्मत
18. अपनी सामर्थ्य को समझे और काम में लायें
19. स्वास्थ्य सन्तुलन बनाने, बिगाड़ने वाले रहस्यम स्त्रोत
20. ब्रह्म तेजो बलम् बलम्
21. रूग्णता का आग्रहपूर्वक आमन्त्रण
22. प्रचण्ड ऊर्जा के दो प्रवाह कुण्डलिनी में
23. गायत्री मन्त्र की भावनात्मक पृष्ठभूमि
24. उपासना सम्बन्धी भ्रान्तियों की जड़ मूल से निरस्त
2. चरित्र रक्षा के लिए सौन्दर्याहुति
3. सच्चिदानन्द की आस्था और अनुभूति
4. अन्तःकरण ही वास्तविक भाग्य-विधाता
5. हम सब एक महान श्रंखला के घटक भर हैं
6. सम्पदा एवं महानता में से एक चयन
7. सृष्टि के विस्तार एवं नियम के पीछे चेतनात्मक तथ्य
8. काम बीज का उन्नयन, ज्ञानबीज में परिवर्तन
9. मानवी विकास-परम्परा के आधारभूत कारण
10. बड़प्पन की नहीं, तेजस्विता भी
11. मानवी चेतना की रहस्यमय परतें
12. अपने विश्व ब्रह्माण्ड की संक्षिप्त जन्म कुण्डली
13. संकल्प शक्ति के साक्षी पिरामिड
14. जलयान जो सदा दुर्भाग्यग्रस्त ही रहा
15. हमारे अदृश्य किन्तु शुभ चिन्तक सहायक
16. मरणोत्तर जीवन का वैज्ञानिक पर्यवेक्षण
17. अतीन्द्रिय चेतना निराधार नहीं, विज्ञान सम्मत
18. अपनी सामर्थ्य को समझे और काम में लायें
19. स्वास्थ्य सन्तुलन बनाने, बिगाड़ने वाले रहस्यम स्त्रोत
20. ब्रह्म तेजो बलम् बलम्
21. रूग्णता का आग्रहपूर्वक आमन्त्रण
22. प्रचण्ड ऊर्जा के दो प्रवाह कुण्डलिनी में
23. गायत्री मन्त्र की भावनात्मक पृष्ठभूमि
24. उपासना सम्बन्धी भ्रान्तियों की जड़ मूल से निरस्त
अखण्ड ज्योति सितम्बर 1981
1. आदर्शवादी महत्वाकांक्षाओं के फलितार्थ
2. सौन्दर्य-बोध
3. आत्मा का अस्तित्व विवेक की कसौटी पर
4. ईश्वर दर्शन पवित्र अन्तःकरण में
5. प्रगति और पूर्णता का लक्ष्य बिन्दू ‘देवत्व’
6. धर्म क्यों उपयोगी ? क्यों अनुपयोगी ?
7. वास्तविक और अवास्तविक हित साधन
8. बुद्धिवाद और नीति-निष्ठा का समन्वय युग की परम आवश्यकता
9. महामानवों की नई पीढ़ी परिष्कृत बीजकोषों से जन्मेंगी
10. प्रगति पथ पर कैसे बढ़ा जाय
11. ऊँचाई की मनःस्थिति और परिस्थिति
12. अन्दर छिपी पड़ी अलौकिक सामर्थ्य
13. अन्तरिक्ष से आये अपरिचित अतिथि
14. विश्व वसुधा के मुकुट पर चमकते ये मुक्तक मणि
15. व्यक्तित्व की रहस्यमय परतें
16. समझते हैं आप अपने मन की भाषा
17. आयुर्वेद की गरिमा भुलाई न जाये
18. रोग-शोकों की उत्पति का कारण ‘प्रज्ञापराध’
19. जीवित रहते मौत न आने दे
20. अदृश्य का अनुकूलन प्रयोगों द्वारा
21. यज्ञ विश्व का सर्वोत्कृष्ट दर्शन
22. गायत्री महाशक्ति की एक धारा कुण्डलिनी
23. साधना सत्र पत्राचार के रूप में भी
24. अग्निहोत्र थेरेपी अमेरिका में
2. सौन्दर्य-बोध
3. आत्मा का अस्तित्व विवेक की कसौटी पर
4. ईश्वर दर्शन पवित्र अन्तःकरण में
5. प्रगति और पूर्णता का लक्ष्य बिन्दू ‘देवत्व’
6. धर्म क्यों उपयोगी ? क्यों अनुपयोगी ?
7. वास्तविक और अवास्तविक हित साधन
8. बुद्धिवाद और नीति-निष्ठा का समन्वय युग की परम आवश्यकता
9. महामानवों की नई पीढ़ी परिष्कृत बीजकोषों से जन्मेंगी
10. प्रगति पथ पर कैसे बढ़ा जाय
11. ऊँचाई की मनःस्थिति और परिस्थिति
12. अन्दर छिपी पड़ी अलौकिक सामर्थ्य
13. अन्तरिक्ष से आये अपरिचित अतिथि
14. विश्व वसुधा के मुकुट पर चमकते ये मुक्तक मणि
15. व्यक्तित्व की रहस्यमय परतें
16. समझते हैं आप अपने मन की भाषा
17. आयुर्वेद की गरिमा भुलाई न जाये
18. रोग-शोकों की उत्पति का कारण ‘प्रज्ञापराध’
19. जीवित रहते मौत न आने दे
20. अदृश्य का अनुकूलन प्रयोगों द्वारा
21. यज्ञ विश्व का सर्वोत्कृष्ट दर्शन
22. गायत्री महाशक्ति की एक धारा कुण्डलिनी
23. साधना सत्र पत्राचार के रूप में भी
24. अग्निहोत्र थेरेपी अमेरिका में
अखण्ड ज्योति अगस्त 1981
1. ‘स्व’ का विकास और समष्टिगत हित साधन
2. मनःक्षेत्र की ढलाई-वास्तविक पुरूषार्थ
3. ‘‘ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या’’ का तत्व दर्शन
4. ईश्वर हैं, यह कैसे जानें ?
5. अपनी अनुभतियों के सृष्टा-हम स्वयं
6. क्रिया-प्रतिक्रिया, ध्वनि-प्रतिध्वनि का शाश्वत सिद्धान्त
7. संघर्ष पर उतरे या सहयोग करें
8. जो हम जानते हैं, मानते हैं, वह सत्य नहीं हैं
9. दुर्बल-दमन या उपयोगितावाद
10. सुव्यवस्थित ब्रह्माण्ड के अव्यवस्थित ‘ब्लेक होल’
11. धरती की चुम्बकीय शक्ति से खिलवाड़ न करें
12. अभिशप्त वस्तुओं से उत्पन्न संकट
13. भविष्य विज्ञान सम्बन्ध में कुछ तथ्य
14. अन्तरंग दृष्टि के विलक्षण क्षमता
15. आनन्द का अक्षय भण्डार मानव-मन
16. सपने पढि़ये, गुत्थियाँ सुलझाइये
17. सुसंस्कारों की संचित सम्पदा
18. गायत्री तीर्थ अतीत की वापसी का अभिनव प्रयास
19. तीर्थ परम्परा के साथ धर्म सम्मेलनों का सुयोग
20. गायत्री तीर्थ और सुसंस्कारिता सम्वर्द्धन
21. साधना का स्वरूप और प्रवेश अनुबन्ध
22. सामर्थ्यवानों से
2. मनःक्षेत्र की ढलाई-वास्तविक पुरूषार्थ
3. ‘‘ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या’’ का तत्व दर्शन
4. ईश्वर हैं, यह कैसे जानें ?
5. अपनी अनुभतियों के सृष्टा-हम स्वयं
6. क्रिया-प्रतिक्रिया, ध्वनि-प्रतिध्वनि का शाश्वत सिद्धान्त
7. संघर्ष पर उतरे या सहयोग करें
8. जो हम जानते हैं, मानते हैं, वह सत्य नहीं हैं
9. दुर्बल-दमन या उपयोगितावाद
10. सुव्यवस्थित ब्रह्माण्ड के अव्यवस्थित ‘ब्लेक होल’
11. धरती की चुम्बकीय शक्ति से खिलवाड़ न करें
12. अभिशप्त वस्तुओं से उत्पन्न संकट
13. भविष्य विज्ञान सम्बन्ध में कुछ तथ्य
14. अन्तरंग दृष्टि के विलक्षण क्षमता
15. आनन्द का अक्षय भण्डार मानव-मन
16. सपने पढि़ये, गुत्थियाँ सुलझाइये
17. सुसंस्कारों की संचित सम्पदा
18. गायत्री तीर्थ अतीत की वापसी का अभिनव प्रयास
19. तीर्थ परम्परा के साथ धर्म सम्मेलनों का सुयोग
20. गायत्री तीर्थ और सुसंस्कारिता सम्वर्द्धन
21. साधना का स्वरूप और प्रवेश अनुबन्ध
22. सामर्थ्यवानों से
अखण्ड ज्योति जुलाई 1981
1. करूणा में भगवान
2. हृदय परिवर्तन
3. मुक्ति और ईश्वर प्राप्ति पृथक नहीं एक हैं
4. मानवोत्कर्ष का मूल मन्त्र-जिज्ञासा
5. ‘‘सर्व खिल्विदं ब्रह्म’’ को विज्ञान की मान्यता
6. धर्म धारणा हर दृष्टि से उपयोगी
7. प्रेम ही परमेश्वर है
8. स्नेह और सहानुभूति आत्मा की भूख प्यास
9. प्रत्यक्ष ही सब कुछ नहीं हैं
10. विग्रह की सहयोग और सहकार में परिणति
11. अहिंसा वीरों का भूषण
12. सत्य को खोजना हो तो दुराग्रह छोड़ें
13. आँखे कुछ भी देखती हो, मन कुछ भी करता हो, तथ्य कुछ ओर ही हैं
14. अन्तराल में प्रतिष्ठित-प्रतिभा क्षेत्र
15. आत्म-परिष्कार का राजपथ-स्वप्न लोक
16. पक्षी जिन्हे पुरूषार्थ के बिना चैन नहीं
17. कुण्डलिनी दिव्य स्तर की प्रचण्ड सामर्थ्य
18. मानवी काया-कितनी अद्भुत, कितनी सशक्त
19. गायत्री महाशक्ति का तत्वज्ञान
20. अपनो से अपनी बात
21. तीर्थ चेतना को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता
22. शान्तिकुंज गायत्री नगर बनाम गायत्री तीर्थ
23. गायत्री तीर्थ का स्वरूप और कार्यक्रम
2. हृदय परिवर्तन
3. मुक्ति और ईश्वर प्राप्ति पृथक नहीं एक हैं
4. मानवोत्कर्ष का मूल मन्त्र-जिज्ञासा
5. ‘‘सर्व खिल्विदं ब्रह्म’’ को विज्ञान की मान्यता
6. धर्म धारणा हर दृष्टि से उपयोगी
7. प्रेम ही परमेश्वर है
8. स्नेह और सहानुभूति आत्मा की भूख प्यास
9. प्रत्यक्ष ही सब कुछ नहीं हैं
10. विग्रह की सहयोग और सहकार में परिणति
11. अहिंसा वीरों का भूषण
12. सत्य को खोजना हो तो दुराग्रह छोड़ें
13. आँखे कुछ भी देखती हो, मन कुछ भी करता हो, तथ्य कुछ ओर ही हैं
14. अन्तराल में प्रतिष्ठित-प्रतिभा क्षेत्र
15. आत्म-परिष्कार का राजपथ-स्वप्न लोक
16. पक्षी जिन्हे पुरूषार्थ के बिना चैन नहीं
17. कुण्डलिनी दिव्य स्तर की प्रचण्ड सामर्थ्य
18. मानवी काया-कितनी अद्भुत, कितनी सशक्त
19. गायत्री महाशक्ति का तत्वज्ञान
20. अपनो से अपनी बात
21. तीर्थ चेतना को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता
22. शान्तिकुंज गायत्री नगर बनाम गायत्री तीर्थ
23. गायत्री तीर्थ का स्वरूप और कार्यक्रम
अखण्ड ज्योति जून 1981
1. उत्तरोत्तर विकास एक सहज जीवनक्रम
2. तप, करूणा और त्याग
3. सातों लोक अपने ही इर्द-गिर्द
4. प्राण-शक्ति द्वारा कठिन रोगों का उपचार
5. सत्यं, शिवं, सुन्दरम् से युक्त जीवात्मा
6. सरलता मनुष्य का गौरव
7. वैभव ही सब कुछ नहीं, पराक्रम भी चाहिए
8. अनुशासित विश्व व्यवस्था और ईश्वरी सत्ता
9. धर्म धारणा की उपेक्षा, उसकी विकृतियों के कारण
10. मात्र विज्ञान नहीं, सद्ज्ञान भी चाहिए
11. अविज्ञात प्राणियों की अन्तरिक्षीय खोजबीन
12. तप का दुःख, परम सुख का सृजेता
13. प्रेत भी भले और उदार होते हैं
14. जन्मजात प्रतिभा, पूर्व जन्म के संस्कार
15. सफलता संकल्पवानों को मिलती हैं
16. प्रसन्न रहिए ताकि स्वस्थ रह सके
17. धरती की तरह ही आत्म-सत्ता भी सामर्थ्य पुंज
18. यज्ञ की अनिवर्चनीय महत्ता
19. गायत्री उपासना से माया मुक्ति
20. सूर्य सान्निध्य से जीवन शक्ति का अजस्र लाभ
21. योगाभ्यास मानवोपचार की अति महत्वपूर्ण प्रक्रिया
22. व्यंग्य जो वरदान बना
23. अपनो से अपनी बात
24. साधना का स्वर बनू में
2. तप, करूणा और त्याग
3. सातों लोक अपने ही इर्द-गिर्द
4. प्राण-शक्ति द्वारा कठिन रोगों का उपचार
5. सत्यं, शिवं, सुन्दरम् से युक्त जीवात्मा
6. सरलता मनुष्य का गौरव
7. वैभव ही सब कुछ नहीं, पराक्रम भी चाहिए
8. अनुशासित विश्व व्यवस्था और ईश्वरी सत्ता
9. धर्म धारणा की उपेक्षा, उसकी विकृतियों के कारण
10. मात्र विज्ञान नहीं, सद्ज्ञान भी चाहिए
11. अविज्ञात प्राणियों की अन्तरिक्षीय खोजबीन
12. तप का दुःख, परम सुख का सृजेता
13. प्रेत भी भले और उदार होते हैं
14. जन्मजात प्रतिभा, पूर्व जन्म के संस्कार
15. सफलता संकल्पवानों को मिलती हैं
16. प्रसन्न रहिए ताकि स्वस्थ रह सके
17. धरती की तरह ही आत्म-सत्ता भी सामर्थ्य पुंज
18. यज्ञ की अनिवर्चनीय महत्ता
19. गायत्री उपासना से माया मुक्ति
20. सूर्य सान्निध्य से जीवन शक्ति का अजस्र लाभ
21. योगाभ्यास मानवोपचार की अति महत्वपूर्ण प्रक्रिया
22. व्यंग्य जो वरदान बना
23. अपनो से अपनी बात
24. साधना का स्वर बनू में
अखण्ड ज्योति मई 1981
1. उत्थान या पतन का स्वेच्छा -वरण
2. आसक्ति से निवृत्ति
3. सच्चिदानन्द स्वरूप-अन्तरात्मा
4. सृष्टि के स्वरूप में झाँकती अदृश्य सत्ता
5. प्रकृति परिवार के प्रत्येक घटक में प्रचूर सामर्थ्य
6. वरदायी अभिशाप
7. संस्कार भी चेतना के साथ चलते हैं
8. चेतना के विकास में परिवेश का महत्व
9. सान्निध्य की सार्थकता अनुशासन में
10. शत्रुता जब हार गई
11. प्रकृति स्वयं आपकी चिन्ता करती है
12. धर्म का अन्धविश्वासों से क्या सम्बन्ध
13. स्वतन्त्र चिन्तन-औचित्य का अवलम्बन
14. दुष्टता के दमन की सृष्टि व्यवस्था
15. बुद्धिमान ही नहीं सम्वेदनशील भी बने
16. सन् 1982 में भूकम्पों की श्रंखला
17. निराश होने का कोई कारण नहीं
18. सर्व समर्थ शक्ति के अवतरण का उद्घोष
19. स्वस्थ मन-स्वस्थ शरीर
20. निरर्थक दीखने वाली नाभि-दिव्य शक्तियों की गंगोत्री
21. तनाव की रामबाण चिकित्सा-योग साधना
22. अपनो से अपनी बात
2. आसक्ति से निवृत्ति
3. सच्चिदानन्द स्वरूप-अन्तरात्मा
4. सृष्टि के स्वरूप में झाँकती अदृश्य सत्ता
5. प्रकृति परिवार के प्रत्येक घटक में प्रचूर सामर्थ्य
6. वरदायी अभिशाप
7. संस्कार भी चेतना के साथ चलते हैं
8. चेतना के विकास में परिवेश का महत्व
9. सान्निध्य की सार्थकता अनुशासन में
10. शत्रुता जब हार गई
11. प्रकृति स्वयं आपकी चिन्ता करती है
12. धर्म का अन्धविश्वासों से क्या सम्बन्ध
13. स्वतन्त्र चिन्तन-औचित्य का अवलम्बन
14. दुष्टता के दमन की सृष्टि व्यवस्था
15. बुद्धिमान ही नहीं सम्वेदनशील भी बने
16. सन् 1982 में भूकम्पों की श्रंखला
17. निराश होने का कोई कारण नहीं
18. सर्व समर्थ शक्ति के अवतरण का उद्घोष
19. स्वस्थ मन-स्वस्थ शरीर
20. निरर्थक दीखने वाली नाभि-दिव्य शक्तियों की गंगोत्री
21. तनाव की रामबाण चिकित्सा-योग साधना
22. अपनो से अपनी बात
अखण्ड ज्योति अप्रेल 1981
1. हम सब उनके पुत्र
2. नैतिकता का सम्बन्ध धर्म धारणा से
3. सिद्ध न होना ही चेतना का प्रमाण
4. निष्काम की कामना
5. दीप्तिमान आत्मसूर्य की विलक्षण सामर्थ्य
6. ब्रह्मसत्ता की तीन मूल शक्तियाँ त्रिदेव
7. जन सहयोग की सम्पदा
8. आत्म-विस्तार की प्रकृति प्रेरणा
9. हिंसा पर साहस की विजय
10. मरणोत्तर जीवन के लिए चुनाव की स्वतन्त्रता
11. प्रेतात्माओं का अस्तित्व काल्पनिक नहीं
12. गतिशीलता विश्व व्यवस्था की चिरन्तन नीति
13. समर्थता, गरिमा से युक्त होती हैं
14. स्वास्थ्य का आधार आहार नहीं, मस्तिष्क
15. असन्तुलन और विक्षेप सर्वथा अहितकर
16. उचित से अधिक की आकांक्षा मत कीजिए
17. आध्यात्मिक चिकित्सा, विज्ञान की कसौटी पर
18. आत्मशक्ति अभिवर्द्धन का श्रेष्ठतम उपाय-गायत्री
19. गायत्री सिद्धि के मूलभूत आधार
20. कुण्डलिनी का ज्योति दर्शन
21. परिव्राजक का बचन
22. नादयोग और शब्द ब्रह्म की साधना
23. अग्निहोत्र अर्थात् प्राणोद्धीपन
24. महाकाल का गतिचक्र और अनुशासन
25. अपनो से अपनी बात
26. विशिष्ट विभूतिवान इन कार्यों में सहयोग दे
27. अगर हम समय पर जाग पायें
2. नैतिकता का सम्बन्ध धर्म धारणा से
3. सिद्ध न होना ही चेतना का प्रमाण
4. निष्काम की कामना
5. दीप्तिमान आत्मसूर्य की विलक्षण सामर्थ्य
6. ब्रह्मसत्ता की तीन मूल शक्तियाँ त्रिदेव
7. जन सहयोग की सम्पदा
8. आत्म-विस्तार की प्रकृति प्रेरणा
9. हिंसा पर साहस की विजय
10. मरणोत्तर जीवन के लिए चुनाव की स्वतन्त्रता
11. प्रेतात्माओं का अस्तित्व काल्पनिक नहीं
12. गतिशीलता विश्व व्यवस्था की चिरन्तन नीति
13. समर्थता, गरिमा से युक्त होती हैं
14. स्वास्थ्य का आधार आहार नहीं, मस्तिष्क
15. असन्तुलन और विक्षेप सर्वथा अहितकर
16. उचित से अधिक की आकांक्षा मत कीजिए
17. आध्यात्मिक चिकित्सा, विज्ञान की कसौटी पर
18. आत्मशक्ति अभिवर्द्धन का श्रेष्ठतम उपाय-गायत्री
19. गायत्री सिद्धि के मूलभूत आधार
20. कुण्डलिनी का ज्योति दर्शन
21. परिव्राजक का बचन
22. नादयोग और शब्द ब्रह्म की साधना
23. अग्निहोत्र अर्थात् प्राणोद्धीपन
24. महाकाल का गतिचक्र और अनुशासन
25. अपनो से अपनी बात
26. विशिष्ट विभूतिवान इन कार्यों में सहयोग दे
27. अगर हम समय पर जाग पायें
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