सुभाष चन्द्र बोस एक जगह भाषण दे रहे थे। अचानक एक युवक ने उत्तेजित होकर उन पर जूता फैंक दिया। उन्होनें जूते को उठाते हुए भरी सभा से कहा- मेरे देश के लोग कितने अच्छे हैं जो बिना जूते वाले को जूते भी दे देते हैं। मेरा उस युवक से निवेदन हैं कि उसके तो एक जूता काम आएगा नहीं इसलिए वह दूसरा जूता भी फैंक दे क्योंकि पिछली सभा में मेरे जूते खो गए थे।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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