गुरुवार, 27 जनवरी 2011

अब समझा हूँ तुम्हें जब नहीं हो तुम!

याद है मुझे
तुम डाँटकर, डराकर सिखाते थे मुझे तैरना
और मैं डरता था पानी से
मैं सोचता...बाबूजी पत्थर हैं !
इसी पानी में तुम्हारी अस्थियाँ बहाईं
तब समझा हूँ...
तैरना ज़रूरी है इस दुनिया में !
बाबा...मैं तैर नहीं पाता
आ जाओ वापस सिखा दो मुझे तैरना
वरना दुनिया डुबो देगी मुझे!

बाबा..अब समझा हूँ मैं
थाली में जूठा छोड़ने पर नाराज़गी,
पेंसिल गुमने पर फटकार,
और इम्तहान के वक़्त केबल निकलवाने का मतलब!
कुढ़ता था मैं.....बाबूजी गंदे हैं!
मेरी खुशी बर्दाश्त नहीं इनको
अब समझा हूँ तुम्हें जब नहीं हो तुम!

तुम दोस्त नहीं थे मेरे माँ की तरह..
पर समझते थे वो सब जो माँ नहीं समझती
देर रात.. दबे पाँव आता था मैं
अपने बिस्तर पर पड़े छुपकर मुस्कुरा देते थे तुम
तुमसे डरता था मैं!
बाबा...तुम्हारा नाम लेकर अब नहीं डराती माँ नहीं कहती बाबूजी से बोलूँगी...
बस एक टाइम खाना खाती है!

बाबा....याद है मुझे
जब सिर में टाँकें आए थे
तुम्हारी हड़बड़ाहट....पुचकार रहे थे तुम मुझे
तब मैंने माँ देखी थी तुममें!
विश्वास हुआ था मुझे माँ की बात पर..
बाबूजी बहुत चाहते हैं तुझे
आकर चूमते हैं तेरा माथा जब सो जाता है तू!
बाबा..
तुम कहानी क्यों नहीं सुनाते थे?
मैं रोता माँ के पास सोने को
और तुम करवट लेकर
ज़ोर से आँखें बंद कर लेते!
तुम्हारी चिता को आग दी
तबसे बदली-सी लगती है दुनिया
बाबा..
तुमने हाथ कभी नहीं फेरा
अब समझा हूँ तुम्हारा हाथ हमेशा था
मेरे सिर पर!
कल रात माँ रो पड़ी उधेड़ती चली गई .
तुम्हारे प्रेम की गुदड़ी यादों की रूई निकाली
फिर धुनककर सिल दी वापस!

बाबा..
तुम्हारा गुनहगार हूँ मैं नहीं समझा तुम्हें..
तुमने भी तो नहीं बताया
कैसे भरी थी मेरी फीस!
देखो.....दादी के पुराने कंगन छुड़वा लिए हैं मैंने
जिन्हें गिरवी रखा था तुमने..
मेरे लिए!
बाबा.. मैं रोता था अक्सर
यह सोचकर....बाबूजी गले नहीं लगाते मुझे
अब समझा हूँ सिर्फ़ जतलाने से प्यार नहीं होता!
बाबा.. आ जाओ वापस
तुमसे लिपटकरजी भर के रोना है मुझे एक बार
बाबा...अब समझा हूँ तुम्हें जब नहीं हो तुम!!

(Written By: SN Sikhwal (Tripathi).

माँ

1. ऊपर जिसका अंत नहीं, उसे आसमां कहते हैं, जहाँ में जिसका अंत नहीं, उसे माँ कहते हैं। 
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2. बचपन में गोद देने वाली को बुढ़ापे में दगा देने वाला मत बनना .....। 

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3. जिन बेटों के जन्म पर माँ ने हँसी-खुशी पेड़े बाँटे ...वही बेटे जवान होकर कानाफूसी से माँ-बाप को बाँटे ...! 

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4. माँ ! पहले आँसू आते थे और तू याद आती थी। आज तू याद आती हैं और आँसू आते हैं। 
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5. माँ ! ‘‘कैसी हो ...’’ इतना ही पूछ, उसे मिल गया सब कुछ। 

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6. मंगलसूत्र बेचकर भी तुम्हें बड़ा करने वाले माँ-बाप को ही घर से निकालने वाले ऐ युवान् ! तुम तुम्हारे जीवन में अमंगल सूत्र शुरू कर रहे हो। 

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7. माँ, तूने तीर्थंकरों को जना हैं, संसार तेरे ही दम से बना हैं, तू मेरी पूजा है।, मन्नत हैं मेरी, तेरे ही कदमों में जन्नत हैं मेरी ...। 

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8. बँटवारे के समय घर की हर चीज पाने के लिए झगड़ा करने वाले बेटों- दो चीजों के लिए उदार बनो, जिनका नाम हैं ‘‘माँ-बाप’’। 

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9. मातृभाषा, मातृभूमि व माँ का कोई विकल्प नहीं। 

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10. डेढ़ किलो दूधी डेढ़ घण्टे तक उठाने से तुम्हारे हाथ दुख जाते हैं ! माँ को सताने से पहले इतना तो सोचो ... तुम्हें नौ-नौ महिने उसने पेट में कैसे उठाया होगा ? 

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11. जो मस्ती आँखों में हैं, मदिरालय में नहीं, अमीरी दिल में कोई महालय में नही, शीतलता पाने के लिए कहाँ भटकता है मानव ! जो माँ की गोद में हैं वह हिमालय में नहीं ... ! 

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12. बचपन के आठ साल तुझे अंगुली पकड़कर जो माँ-बाप स्कूल ले जाते थे, उस माँ-बाप को बुढ़ापे के आठ साल सहारा बनकर मंदिर ले जाना ... शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा होगा। 

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13. माँ बाप को सोने से न मढ़ो, तो चलेगा। हीरे से न जड़ो, तो चलेगा। पर उनका जिगर जले और अंतर आँसू बहाएँ, यह कैसे चलेगा ? 

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14. जब छोटा था तब माँ की शय्या गीली रखता था, अब बड़ा हुआ तो माँ की आँखे गीली रखता हैं। हे पुत्र ! तुझे माँ को गीलेपन में रखने की आदत हो गई हैं...! 

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15. माँ-बाप की आँखों में दो बार आँसू आते हैं। लड़की घर छोड़े तब ...और लड़का मुँह मोड़े तब ...।

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16. माँ और क्षमा दोनों एक हैं क्यों कि माफ करने में दोनों नेक हैं ! 

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17. घर का नाम मातृछाया व पितृछाया मगर उसमें माँ-बाप की परछाई भी न पड़ने दे ... तो उस मकान का नाम पत्नीछाया रखना ठीक होगा ...। 

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18. माँ-बाप की सच्ची विरासत पैसा और प्रासाद नहीं, प्रामाणिकता और पवित्रता हैं ...। 

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19. बचपन में जिसने तुम्हें पाला, बुढ़ापे में उसको तुमने नहीं सम्हाला तो याद रखो ... तम्हारे भाग्य में भड़केगी ज्वाला । 

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20. माँ-बाप को वृद्धाश्रम में रखने वाले ऐ युवान् ! तनिक सोच कि, उन्होंने तुझे अनाथाश्रम में नहीं रखा उस भूल की सजा तो नहीं दे रहा हैं ना ? 

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21. चार वर्ष को तेरा लाड़ला यदि तेरे प्रेम की प्यास रखे तो पचास वर्ष के तेरे माँ-बाप तेरे प्रेम की आस क्यों न रखें ? 

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22. घर में माँ को रूलाएँ और मंदिर में माँ को चुनरी ओढ़ाएँ ... याद रख ... मंदिर की माँ तुझ पर खुश तो नहीं ... शायद खफा जरूर होगी ! 

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23. जिस मुन्ने को माँ-बाप ने बोलना सिखाया था ... वह मुन्ना बड़ा होकर माँ-बाप को मौन रहना सिखाता हैं !!! 

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24. जिस दिन तुम्हारें कारण माँ-बाप की आँखों में आँसू आते हैं, याद रखना ... उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म आँसू में बह जाता हैं ! 

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25. तुमने जब धरती पर पहला श्वास लिया, तब तेरे माता-पिता तेरे पास थे। माता-पिता अंतिम श्वास लें, तब तुम उनके पास रहना ...। 

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26. पत्नी पसंद से मिल सकती हैं, माँ पुण्य से ही मिलती हैं। पसंद से मिलने वाली के लिए पुण्य से मिलने वाली को मत ठुकराना। 

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27. पेट में पाँच बेटे जिसे भारी नहीं लगे थे, वह माँ ... बेटों के पाँच फ्लेट्स में भी भारी लग रही हैं ! बीते जमाने का यह श्रवण का देश ... कौन मानेगा ? 

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28. संसार की दो बड़ी करूणता - माँ के बिना घर और घर के बिना माँ। 

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29. प्रेम को साकार होने का मन हुआ और माँ का सृजन हुआ। 

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30. जीवन के अँधेरे पथ में सूरज बनकर रोशनी बनने वाले माँ-बाप की जिन्दगी में अंधकार मत फैलाना ...। 

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31. आज तू जो कुछ भी हैं, वो ‘‘माँ’’ की बदौलत हैं ... क्योंकि उसने तुझे जनम दिया ...माँ तो देवी हैं ... गर्भपात कराके वह राक्षसी नहीं बनी, इतना तो सोच ...! 

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- आचार्य विजय यशोवर्म सूरि

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