डा. प्रणव पण्डया काया के भी चिकित्सक है और मन के भी। एम.जी.एम. मेडिकल कालेज, इंदौर से १९७२ में एम.बी.बी.एस.उत्तीर्ण किया। इसी संस्था से दिसम्बर, १९७५ में एम.डी.की उपाधि तथा स्वर्ण पदक प्राप्त किया। अमरीका से आकर्षक पद का प्रस्ताव आया, किन्त भारत में ही रहकर सेवा करना उचित समझा। विद्यार्थी काल में स्नायु विज्ञान तथा हृदयरोग के प्रख्यात विशेषज्ञा से जुड़कर विशिष्ट मार्गदर्शन प्राप्त किया। अनेक अनुसंधान-पत्र प्रकाशित हुए। जून, १९७६ से सितम्बर, १९७८ तक भारत हैवी इलेक्टिकल्स, हरिद्वार तथा भोपाल के अस्पतालों के सघन चिकित्सा इकाई के प्रभारी रहे। वे मानव शरीरों की चिकित्सा करते-करते समाज के चिकित्सक भी बन गए, गायत्री परिवार के प्रमुख के नाते। बचपन से स्वयंसेवक रहे। फिर गायत्री परिवार से प्रभावित होकर उसमें सम्मिलित हो गए। उनका विवाह गायत्री परिवार के आद्य संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा ‘आचार्य’ की सुपुत्री शैलबाला जी से हुआ जो इस समय सम्पूर्ण गायत्री परिवार की प्रमुख संचालिका हैं। करोड़ों अनुयायियों के माध्यम से देश और विदेश में धर्म के सही स्वरूप के साथ-साथ राष्ट-प्रेम जागरण का कार्य कितना दुरूह है, यह कोई समाज-संगठक ही समझ सकता है। स्वभाव से अत्यंत विनम्र और मृदुल डा. प्रणव पण्डया और श्रीमती शैलबाला एक विशाल परिवार को संचालित कर रहे हैं ।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
शनिवार, 18 जुलाई 2009
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुवरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात ॥
उस प्राणस्वरूप,
दुःखनाशक, सुखस्वरूप,
श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक् देवस्वरूप
परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण
करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को
सन्मार्ग में प्रेरित करे ।
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