सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

सहयोग

एक गाँव में आग लग गई।सभी आदमी तो सुरक्षित भाग निकले, पर दो वृद्ध ऐसे थे जो भाग नहीं सकते थे,एक अंधा और एक पंगा। दोनो ने एकता स्थापित की, अंधे ने पंगे को कंधे पर बैठा लिया, पंगा रास्ता बताने लगा और अन्धा तेज दौड़ने लगा, दोनो सकुशल बाहर आ गये।


सहयोग का अर्थ ही हैं-अनेक तरह की समर्थता से एक परिपूर्ण शक्ति का उद्भव



ऐसे थे वे लोग


एक बार गाँधी जी स्कूल देर से पहुंचे । बादल छाए रहने और वर्षा होने के कारण उन्हें समय का ठीक पता न चला। स्कूल में अध्यापक ने उनसे देर से आने का कारण पूछा, तो उन्होंने सच बात बता दी। इससे अध्यापक को संतोष न हुआ। उन्होंने इसे बहाना समझकर एक आना जुर्माना कर दिया।

गांधी जी रोने लगे। साथियों ने कहा- एक आना के लिए क्यों रोते हो, आपके पिता तो अमीर हैं। एक आना कौन-सी बड़ी बात है। गाँधी जी ने कहा- मैं एक आना के लिए नहीं रोता, वरन् इसलिए रोता हूँ कि मुझे झूठा समझा गया।

श्रेष्ठ कौन ?

ज्ञान और धन दोनों में एक दिन अपनी श्रेष्ठता के प्रतिपादन पर झगड़ा उठ खड़ा हुआ। दोनों अपनी-अपनी महत्ता बताते और दूसरे को छोटा। आत्मा ने कहा- ``तुम दोनों कारण मात्र हो, इसलिए श्रेष्ठ बात ही तुम में क्या है ? सदुपयोग किये जाने पर ही तुम्हारी श्रेष्ठता है अन्यथा दुरुपयोग होने पर तो तुम दोनों ही घृणित बनकर रह जाते हो।´´

मीठी बानी बोलिये

एक लड़की ने पूछा-``पिताजी ! कौआ और कोयल दोनों काले हैं, पर लोग कौवे को मारते और कोयल को प्यार करते हैं, यह क्यों ? ´´बालिका पर एक करुण दृष्टि डालकर पिता ने उत्तर दिया- ``कोयल सबको प्यार करती हैं, इसलिए मीठा बोलती है। वाणी और भावनाओं की मधुरता के कारण ही वह सर्वप्रिय बन गई है और कौआ तो अपने स्वार्थ और धूर्तता के कारण ही उस आदर से वंचित है।´´

संयम


महर्षि दयानन्द की बीकानेर महाराज से मित्रता थी। वे अक्सर स्वामी जी से अपने ब्रह्मचर्य की शक्ति के प्रदर्शन की बात कहा करते थे, पर स्वामी जी उसे हँसकर टाल देते थे। एक दिन महाराज चार घोड़ों की बग्घी जोतकर प्रात:भ्रमण के लिए तैयार हुए। कोचवान ने घोड़ों को चलने के लिए बहुतेरा चाबुक फटकारा। घोड़े पूरी ताकत लगाकर बढे, किन्तु एक इंच भी आगे न बढ़ सके। बात क्या है, यह देखने के लिए नरेश ने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि महर्षि ने एक हाथ से बग्घी पकड़ रखी है। वे संयम की इतनी शक्ति देखकर आश्चर्यचकित रह गए।

समय की पाबंदी

महात्मा गांधी के जीवन की एक घटना है। एक बार एक परिषद् की कार्यवाही आरंभ करने में उन्हें 45 मिनट की प्रतीक्षा करनी पड़ी। कारण था एक अन्य नेताजी, जिन्हें कार्यक्रम की अध्यक्षता करनी थी, उनका देरी से आना। उनके मंच पर आते ही गांधी जी कह उठे, ``यदि हमारे अग्रगामी नेतागणों की यही स्थिति रही तो स्वराज्य भी 45 मिनट देरी से आएगा।´´ समय के पाबंद, कर्तव्य की यह अभिव्यक्ति उनके अंत:करण से सहज ही स्फुरित हुई थी।



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