(पं0 श्री देवेन्द्र कुमार जी पाठक ‘अचल’)
दान ही को मान होत, दान ही महान होत,
दान ही से नम्रता, विनम्रता फरत हैं।
दान से अभाव जात, वैरी दुर्भाव जात,
दान की सुबेलि ही से सुमन झरत है।।
दान ही से ज्ञान होत दान ही से ध्यान होत,
दान ही से द्वेष दम्भ जियत जरत है।
दान ही से हारे देव दान से विजय स्वमेव,
दान द्वारे भोर होत ध्वजा फहरत हैं।।1।।
राखी दान मरजाद डोम के बिकानो हाथ,
मृत पुत्र देख हरीचंद नहीं गीलो है।
कर्र कर्र चीरो अरकसिया चला के पुत्र,
मोरध्वज दृढ़, दान हित गर्वीलो है।।
साढे़ तीन पग भूमि बलि दियो बामन को,
शेष पै नपायो तन अलग हठीलो हैं।
दान-दानी मारग को कहाँ लौं बखान करौं,
सुनत में सूदो चलिबे मे पथरीलो हैं।।2।।
साभार - कल्याण (दानमहिमा अंक-जनवरी 2011)