शिष्य जयद्रथ ने एक बार गुरू द्रोणाचार्य से पूछा- गुरूदेव, आखिर क्या कारण हैं कि एक ही गुरू से शिक्षा लेने के बावजूद एक धनुर्धारी अर्जुन बन गया और दूसरा जयद्रथ रह गया। गुरू द्रोण ने कहा- जयद्रथ, मैने तो समान भाव से दोनों को शिक्षा दी थी, पर तुमने मेरे द्वारा दिये गए ज्ञान में संतोष कर लिया और अर्जुन ने संतोष न करने की बजाय दिन-रात मेहनत करके उसे बढ़ाने का काम किया और इसी के चलते तुम तो पीछे रह गए और अर्जुन तुमसे आगे निकल गया। जो बच्चे पुरूषार्थ करके अपनी सोई हुई प्रतिभा को जगा देते हैं वे ही आने वाले कल में पूजे जाते हें।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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