राजा पुरू के दरबार में दो महिलाएँ एक बच्चे को लकर पहुँची और उस पर अपना-अपना हक जताने लगी। पुरू आश्चर्य में पड़ गया। थोड़ी देर बाद उसने कहा- धन की तरह इस बच्चे के भी दो हिस्से करके दोनों में बराबर बाँट दिए जाएँ। जल्लाद दोनों के दो टुकड़े करने वाला ही था कि पहली महिला बोली- इसे मारो मत, यह बच्चा मेरा नहीं हैं, इसको मारने की बजाय इसे उसको दे दिया जाए।
क्योंकि असली माँ कभी-भी अपने सामने अपने बच्चे को मरता हुआ नहीं देख सकती। इसे कहते हैं माँ की ममता।
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