बुधवार, 11 जुलाई 2012

Let us encourage virtue and integrity

ऐसी सामाजिक रीति-नीति, प्रथा-परम्परा हमें विकसित करनी चाहिए । धन का मान घटाया जाय और मनुष्य का मूल्यांकन उसके उच्च-चरित्र एवं लोक-मंगल के लिए प्रस्तुत किये त्याग, बलिदान के आधार पर किया जाये । सभी को सम्मान इसी आधार पर मिले । कोई व्यक्ति कितना ही धनी क्यों न हो इस कारण सम्मान प्राप्त न कर सके कि वह दौलत का अधिपति है । उचित तो यह है कि ऐसे लोगों का मूल्य और सम्मान लोक-सेवियों की तुलना में बहुत घटाकर रखा जाय । धन के कारण सम्मान मिलने से लोग अधिक अमीर बनने और किसी भी उपाय से पैसा कमाने को प्रेरित होते हैं । यदि धन का सम्मान गिर जाय, संग्रह को कंजूसी और स्वार्थपरता का प्रतीक मानकर तिरस्कृत किया जाय तो फिर लोग धन के पीछे पागल फिरने की अपेक्षा-सामाजिक सम्मान प्राप्त करने के लिए सत्कर्मों की और प्रवृत होने लगेंगे ।

सादगी को सराहा जाय और उद्धत वेशभूषा एवं भडक़ीली श्रृंगार-सज्जा एवं चित्र-विचित्र बनावट को ओछेपन का प्रतीक माना जाय और जो बचकानी श्रृंगारिकता, भौंड़ी फैशन, अर्द्धनग्ना, हिप्पी साज-सज्जा पनपी है उसे तिरस्कृत किया जाना चाहिए । केवल सत्त्प्रवृत्तियॉं सराही जायें, उन्हीं की चर्चा की जाये और उन्हीं को ही सम्मानित किया जाय ।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

क्या हम ईश्वर को मानते है ?

ईश्वर और परलोक आदि के मानने की बात मुँह से न कहिये । जीवन से न कहकर मुँह से कहना अपने को और दुनिया को धोखा देना है । हममें से अधिकांश ऐसे धोखेबाज ही हैं । इसलिये हम कहा करते है कि हजार में नौ-सौ निन्यानवे व्यक्ति ईश्वर को नहीं मानते । मानते होते तो जगत में पाप दिखाई न देता ।

अगर हम ईश्वर को मानते तो क्या अँधेरे में पाप करते ? समाज या सरकार की आँखों में धूल झोंकते ? उस समय क्या यह न मानते कि ईश्वर की आँखों में धूल नहीं झोंकी गई ? हममें से कितने आदमी ऐसे हैं जो दूसरों को धोखा देते समय यह याद रखते हों कि ईश्वर की आँखें सब देख रही हैं ? अगर हमारे जीवन में यह बात नहीं है, तो ईश्वर की दुहाई देकर दूसरों से झगड़ना हमें शोभा नहीं देता ।

धर्म तत्त्व का दर्शन एवं मर्म (53)-2.70"
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 

सद्व्यवहार सब चाहते हैं

संसार की हर एक जड़ चेतन वस्तु चाहती है कि मेरे साथ सद्व्यवहार हो । जिसके साथ दुर्व्यवहार करेंगे वही बदला लेगी । अगर छाते को लापरवाही से पटक देंगे तो जरूरत पड़ने पर उसकी तानें टूटी और कपड़ा फटा पायेंगे । जूते के साथ लापरवाही बरतेंगे तो वह या तो काट लेगा या जल्दी टूट जायेगा । सूई को यहाँ-वहाँ पटक देंगे तो वह पैर में चुभ कर अपनी उपेक्षा का बदला लेगी, कपड़े उतार कर जहाँ-तहाँ डाल देंगे तो दुबारा तलाश करने पर वे मैले, सलवट पड़े हुए, दाग-धब्बे युक्त मिलेंगे । यदि आप घर की सब वस्तुओं को संभाल कर रखेंगे तो वे समय पर सेवा करने के लिए हाजिर मिलेंगी । इसी प्रकार स्त्री, पुरुष, भाई, बहिन, माता, पिता, मित्र, सम्बन्धी, परिचित, अपरिचित यदि आपसे भलमनसाहत का व्यवहार पायेंगे तो बदले में उसी प्रकार का वर्ताव लौटा देंगे ।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 

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