सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

बुढ़ापे को दीजिए सार्थक दिशा.....


1. बुढ़ापा जीवन का अभिशाप नहीं, अनुभवों की कुंजी हैं। इसे विषाद नहीं, प्रभु का प्रसाद बनाइए।
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2. बचपन में ज्ञानार्जन कीजिए और जवानी में धनार्जन, पर बुढ़ापे को पुण्यार्जन के लिए समर्पित कर दीजिऐ। बचपन माँ को दिया, जवानी पत्नी को दी और बुढ़ापा पोते-पोतियों को दे देंगे तो सोचिए अपनी सद्गति की व्यवस्था कब करेंगे। 
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3. आसक्ति की जड़ों को थोड़ा ढीला कीजिये। राजा दशरथ सिर के एक सफेद बाल को देखकर वैराग्य वासित हो गए और हमारे सारे बाल ही सफेद हो गए है, फिर हम इतने आसक्त क्यों बने हुए है।
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4. घर के बेटे और बहुओं को सलाह दूंगा कि अगर घर में कोई वृद्ध हैं तो उन्हें भार मानने की बजाय भाग्य मानिऐ। याद रखें, बूढ़ा पेड़ फल नहीं देता, पर छाया तो देता ही हैं। 
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5. अपने माता-पिता को भाग्य भरोसे मत छोड़िए। उनके बुढ़ापे को सुखमय बनाने की कोशिश कीजिए। जब उन्होंने हमें प्रेम से पाला तो हम उन्हें विवशता में क्यों पाल रहे हैं। उनकी दुआएँ लीजिए और आने वाली पीढ़ी को संस्कार दीजिए।
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6. अनाथालय और अस्पताल में जाकर सेवा करना सरल हैं, पर घर के बुढ़े लोंगों की सेवा करना मुश्किल हैं आप पहले अपने घर की आग बुझाइए फिर औरों के घर पर पानी छिड़किए, इसी में आपकी भलाई हैं। 
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7. बुढ़ापे को बेकार मत समझिए। इसे सार्थक दिशा दीजिए। तन में बुढ़ापा भले ही आ जाए, पर मन में इसे मत आने दीजिए। आप जब 21 के हुए थे तब आपने शादी की तैयारी की थी, अब अगर आप 51 के हो गए हैं तो शान्ति की तैयारी करना शुरू कर दीजिए। 
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8. सुखी बुढ़ापे का एक ही मन्त्र हैं - दादा बन जाओ तो दादागिरी छोड़ दो और परदादा बन जाओ तो दुनियादारी करना छोड़ दो। अगर आप जवान हैं तो गुस्से को मन्द रखो, नही तो केरियर बेकार हो जाएगा और बूढ़े हैं तो गुस्से को बंद रखो नहीं तो बुढ़ापा बिगड़ जाएगा। 
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9. बुढ़ापे को स्वस्थ, सक्रिय और सुरक्षित रखिए। स्वस्थ बुढ़ापे के लिए खानपान को सात्त्विक और संयमित कीजिए, सक्रिय बुढ़ापे के लिए घर के छोटे-मोटे काम करते रहिए और सुरक्षित बुढ़ापे के लिए सारा धन बेटों में बाँटने के बजाय एक हिस्सा खुद व खुद की पत्नी के नाम भी रखिए। 
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10. दवाओं पर ज्यादा भरोसा मत कीजिए। भोजन में हल्दी, मैथी और अजवायन का उचित मात्रा में सेवन करते रहिए, हल्के-फुल्के व्यायाम अवश्य कीजिए अथवा आधा घण्टा टहल लीजिए। घरवालों पर हम भार न लगे और शरीर भी भारी न लगे इसलिए कुछ-न-कुछ करते रहिए। 
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11. समय-समय पर स्वास्थ्य की जाँच भी करवा लीजिए ताकि कोई बड़ी बीमारी हम पर अचानक हमला न कर बैठे और पचास की उम्र में ही शेष बुढ़ापे की आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ कर लीजिए ताकि बच्चों के सामने हाथ फैलाने की नौबत न आए। 
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12. घर में ज्यादा दखलंदाजी न करे क्योंकि बार-बार की गई टोकाटोकी बेटे-बहुओं को अलग घर बसाने के लिए मजबूर कर देगी।
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13. कमल के फूल की तरह घर में रहते हुए भी अनासक्त रहिए, थोड़ा समय प्रभु भक्ति, सत्संग, स्वाध्याय और ध्यान में बिताइये। हो सके तो साल में कम से कम एक बार संबोधि सक्रिय योग शिविर में अवश्य भाग लीजिए, इससे आपको मिलेगी जीवन की नई ऊर्जा, नया विश्वास और अद्भुत आनन्द।
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संतप्रवर श्री ललितप्रभ जी

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