रामानुजाचार्य को उसके गुरु ने कई विद्या सिखाईं। ज्ञानदीक्षा सम्पन्न करते हुए उनके आचार्य ने कहा, ``रामानुज नीच जाति के लोगों को यह ज्ञान मत देना।´´ इस पर रामानुज बोले, ``गुरुदेव ! जिसका गिरे हुओं को उठाने में उपयोग न हो, वह क्षिक्षा मुझे नहीं चाहिए।`` शिष्य की विशाल भावना देखते हुए आचार्य ने स्वेच्छा से उसके उपयोग करने की स्वीकृति दे दी।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य