रविवार, 5 अक्टूबर 2008

भावना

रामानुजाचार्य को उसके गुरु ने कई विद्या सिखाईं। ज्ञानदीक्षा सम्पन्न करते हुए उनके आचार्य ने कहा, ``रामानुज नीच जाति के लोगों को यह ज्ञान मत देना।´´ इस पर रामानुज बोले, ``गुरुदेव ! जिसका गिरे हुओं को उठाने में उपयोग न हो, वह क्षिक्षा मुझे नहीं चाहिए।`` शिष्य की विशाल भावना देखते हुए आचार्य ने स्वेच्छा से उसके उपयोग करने की स्वीकृति दे दी।


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