शनिवार, 1 मई 2010

शांतिकुंज (गायत्री तीर्थ)

संस्थान की स्थापना 
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा द्वारा इस आश्रम की स्थापना 1971 में की गई थी। 

संस्थान का विवरण 
गंगा की गोद, हिमालय की छाया में विनिर्मित गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज, हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर रेलवे स्टेशन से छह किलोमीटर दूरी पर स्थित है, जो युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य (1911-1990) एवं माता भगवती देवी शर्मा (1926-1994) की प्रचंड तप साधना की ऊर्जा से अनुप्राणित है। यह जागृत तीर्थ लाखों-करोड़ों गायत्री साधकों का गुरुद्वारा है।

1971 में स्थापित शांतिकुंज एक आध्यात्मिक सैनिटोरियम के रूप में विकसित किया गया है, जहाँ शरीर, मन एवं अंतःकरण को स्वस्थ, समुन्नत बनाने के लिए अनुकूल वातावरण, मार्गदर्शन एवं शक्ति अनुदानों का लाभ उठाया जा सकता है।यहाँ गायत्री माता का भव्य देवालय, सप्तर्षियों की प्रतिमाओं की स्थापना के साथ एक भटके हुए देवता का मंदिर भी है। गायत्री साधक यहाँ के साधना प्रधान नियमित चलने वाले सत्रों में भाग लेकर नवीन प्रेरणाएँ तथा दिव्य प्राण ऊर्जा के अनुदान पाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायता पाते हैं। 

सन्‌ 1926 से प्रज्ज्वलित अखंड दीप यहाँ स्थापित है, जिसके सान्निध्य में पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने कठोर तपस्या करके इसे विशाल गायत्री परिवार की सारी महत्वपूर्ण उपलब्धियों का मूल स्रोत बनाया। इसके सान्निध्य में 2400 करोड़ से अधिक गायत्री जप संपन्न हो चुके हैं। इसके दर्शन मात्र से दिव्य प्रेरणा एवं शक्ति संचार का लाभ सभी को मिलता है।

आश्रम की तीन विराट यज्ञशालाओं में नित्य नियमित रूप से हजारों साधक गायत्री यज्ञ संपन्न करते हैं। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत सभी संस्कार जैसे- पुंसवन, नामकरण, अन्नप्राशन, मुंडन, शिखास्थापन, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत, विवाह, वानप्रस्थ तथा श्राद्ध कर्म आदि यहाँ निःशुल्क संपन्न कराए जाते हैं। इनके व्यावहारिक तत्वदर्शन से प्रभावित होकर यहाँ नित्य बड़ी संख्या में संस्कारों के लिए लोग आते हैं।

शांतिकुंज के भव्य जड़ी-बूटी उद्यान में 300 से भी अधिक प्रकार की दुर्लभ-सर्वोपयोगी वनौषधियाँ लगाई गई हैं। विश्वभर के आयुर्वेद कॉलेजों के शिक्षार्थी तथा वैज्ञानिक यहाँ का वनौषधि उद्यान देखने आते हैं। विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों के लिए भिन्न प्रकार की दिव्य औषधियों का एक ज्योतिर्विज्ञान सम्मत उद्यान यहाँ की एक विलक्षणता है। सभी आगंतुकों की शारीरिक-मानसिक जाँच-पड़ताल निष्णात चिकित्सकों द्वारा यहाँ निःशुल्क की जाती है तथा साधना के साथ-साथ वनौषधि प्रधान उपचार-परामर्श भी दिया जाता है। 

यहाँ के विशाल भोजनालय में प्रतिदिन प्रायः पाँच हचार से अधिक आगंतुक श्रद्धालु तथा अनुमति लेकर आए शिक्षार्थी बिना मूल्य भोजन प्रसाद पाते हैं। यहाँ का पत्राचार विद्यालय भारत एवं विश्वभर में बैठे जिज्ञासुओं, प्रज्ञा परिजनों को दिनोदिन जीवन की उलझनों को सुलझाने का मार्गदर्शन देता रहता है।

अध्यात्म के गूढ़ विवेचनों की सरल व्याख्या कर उन्हें जीवन में कैसे उतारा जाए, अपने चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार में उत्कृष्टता लाकर व्यक्तित्व को कैसे प्रभावकारी बनाया जाए, इसका सतत प्रशिक्षण यहाँ के नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्रों में चलता है, जो यहाँ वर्षभर संपादित होते रहते हैं।

ये सत्र 1 से 9, 11 से 19, 21 से 29 की तारीखों में प्रति माह चलते हैं।पाँच दिवसीय मौन अंतः ऊर्जा जागरण सत्र यहाँ की विशेषता है। इनमें 60 साधक प्रति सत्र उच्चस्तरीय साधना करते हैं। ये ठंडक में आश्विन से चैत्र नवरात्र तक चलते हैं।

केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों के विभिन्न पदाधिकारियों को यहाँ नैतिक बौद्धिक तथा व्यक्तित्व परिष्कार का शिक्षण पाँच दिवसीय सत्रों में दिया जाता है। अब तब अस्सी हजार से अधिक अधिकारीगण इन मूल्यपरक शिक्षणों से लाभ पा चुके हैं। यहाँ हिमालय की एक दिव्य विराट प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसमें सभी तीर्थों का दिग्दर्शन साधकों को वहाँ के इतिहास की पृष्ठभूमि के साथ मल्टीमीडिया प्रोजेक्शन पर किया जाता है। प्रायः साठ फुट चौड़ी, पंद्रह फुट ऊँची प्रतिमा के समक्ष बैठकर ध्यान करने का अपना अलग ही आनंद है। समीप स्थित देवसंस्कृति दिग्दर्शन में मिशन के वर्तमान स्वरूप व भावी योजनाओं का चित्रण किया गया है।

यहाँ से 'अखंड ज्योति' एवं 'युग निर्माण योजना' नामक हिंदी मासिक तथा ‘युग शक्ति गायत्री’ गुजराती, मराठी, उड़िया, बांग्ला, तमिल, अंग्रेजी एवं तेलुगू भाषाओं में तथा ‘प्रज्ञा अभियान’ पाक्षिक हिंदी व गुजराती में प्रकाशित होती हैं। भारत और विश्व में इन सभी पत्रिकाओं के पाठकों की संख्या लगभग पच्चीस लाख है।कृषि मंत्रालय भारत सरकार द्वारा शांतिकुंज को 'आपदा निवारण सलाहकार परिषद' की सदस्यता प्रदान की गई है। भूकंप व अन्य दैवी आपदाओं में केंद्र ने जन व शक्ति से सदैव मदद की है। कारगिल संकट पर पूरे भारत से गायत्री परिवार ने सवा करोड़ रुपए की राशि राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दी। भुज कच्छ में प्रायः पाँच करोड़ रुपए से पुनर्वास के कार्य किए गए। 

लगभग एक हजार उच्च शिक्षित कार्यकर्ता शांतिकुंज में स्थायी रूप से सपरिवार निवास करते हैं। निर्वाह हेतु वे औसत भारतीय स्तर का भत्ता मात्र संस्था से लेते हैं।इस प्रकार शांतिकुंज एक ऐसी स्थापना है, जिसे सच्चे अर्थों में युग तीर्थ कहा जा सकता है। यहाँ आने वाला व्यक्ति कृतकृत्य होकर जाता है एवं नैसर्गिक सौंदर्य तथा आध्यात्मिक ऊर्जा से अनुप्राणित वातावरण में बार-बार आने के लिए लालायित रहता है। 

संसाधन 
लगभग हजार वर्गमीटर में निर्मित, निर्माणाधीन और प्रस्तावित भवनों का क्षेत्र है। आवास, आयुर्वेद-अनुसंधान, फार्मेसी, प्रशासनिक, स्वावलंबन, सभागार, ध्यान कक्ष आदि भवनों के स्थान सुरक्षित हैं, जो दिव्य स्वरूप प्रदान करते हैं।

कर्मचारियों हेतु आवास की पूर्ण व्यवस्था है। अतिथिगृह के साथ-साथ यज्ञशाला की व्यवस्था है। खेलकूद तथा व्यायामशाला के लिए आवश्यक सुविधाएँ विद्यमान हैं। 

कैसे पहुँचें 
रेलवे स्टेशन/बस स्टैण्ड से हर की पौड़ी पहुंचें यहाँ से बाई पास रोड़ में सूखी नदी तथा भारतमाता मन्दिर पार करके उसी मार्ग पर शांतिकुंज स्थित है। यहाँ पर कार से पँहुचने में 15 मिनट, रिक्शा से पँहुचने में 30 मिनट, एवं पैदल पँहुचने में 45 मिनट लगते है। 

पता 
गायत्री तीर्थ-शांतिकुंज,
हरिद्वार - 249401
फोन नं. : +91-1334 260602, 260309, 261485
फैक्स नं. : +91-1334 260866 

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