रविवार, 2 अक्टूबर 2011

संत सौ युगों का शिक्षक होता है।

1) संवेदनशीलता जहा कहीं भी हैं, वहा अपने आप सद्गुणों की कतार खडी हो जायेगी। इसके विपरीत निष्ठुरता जहा हैं, वहा दुर्गुणो की लाइन लगते देर न लगेगी।
----------------
2) संत शिरोमणि तुलसीदास जी की दृष्टि में परहित के समान कोई धर्म नहीं है तथा दूसरे के उत्पीडन एवं शोषण के समान कोई अधमता नहीं है। मनुष्य-शरीर धारण कर जो दूसरों को पीडित करते हैं, उन्हे महान् कष्ट सहन करने पडते है।
----------------
3) संत जिज्ञासाओं का समाधान ही नहीं हैं, तुम्हारी समस्याओं की पूर्ति भी है।
----------------
4) संत परम्परा का पुनरोदय ही उज्ज्वल भविष्य का आधार है।
----------------
5) संत सौ युगों का शिक्षक होता है।
----------------
6) संत वे हैं जो भूले-भटके को रास्ते पर लाता है।
----------------
7) संतुलित रहने वालों की जीवन-यात्रा सहज गति में चलती है।
----------------
8) संग करना हो तो सज्जनो का संग करो।
----------------
9) सब विद्याओं में शिरोमणि वह विद्या हैं, जो हमें पवित्रता और निकृष्ट विचारों से मन को साफ करना सिखाती है।
----------------
10) सब रोगों की एक दवाई, हॅसना सीखो मेरे भाई।
----------------
11) सब अधिकारी रखें ध्यान, कर्तव्यों का हो हमें भान, अधिकारों में नहीं हैं शान, मूल तथ्य को अब तो जान।
----------------
12) सबको प्यार बाटो, आत्मीयता दो।
----------------
13) सबको नमस्कार करने से सब विकार नष्ट हो जायेंगे।
----------------
14) सबके साथ आत्मवत् व्यवहार करो।
----------------
15) सबके सुख में जो सुख पाते, वही प्रबुद्ध व्यक्ति कहलाते।
----------------
16) सबमें भगवान को देखना तथा भगवान मे सबको देखना चाहिये।
----------------
17) सबमें परमात्म तत्व को देखना और हृदय में राग-द्वेष न होना-यही सार बात है।
----------------
18) सबसे बड़ा बल मनुष्य का अपना सामर्थ्य है।
----------------
19) सबसे बड़ा पुरस्कार वह हैं जो बिना माँगे अपनी काबिलियत पर मिले।
----------------
20) सबसे बडे सौभाग्यशाली वे हैं, जिन्हे भगवान के काम में हाथ बॅंटाने का मौका मिला।
----------------
21) सबसे कम खर्चीला, लाभदायक और आनन्दप्रद मनोरंजन सत्साहित्य का अध्ययन है।
----------------
22) सबसे निकट तपोवन अपना अन्तःकरण ही हैं, यही एकनिष्ठ होकर ब्रह्मचेतना में तादात्म्य स्थापित करने का जो प्रयत्न किया जाता हैं, वही सच्ची साधना है।
----------------
23) सबसे प्रमुख पाठ जो इस काया रुपी चोले में रहकर हमारी आत्मसत्ता ने सीखा हैं, वह हैं सच्ची उपासना, सही जीवन साधना, एवं समष्टि की आराधना। यही वह मार्ग हैं, जो व्यक्ति को नर मानव से देव मानव, ऋषि, देवदूत स्तर तक पहुचाता है।
----------------
24) सबसे अधिक खराब दिन वे हैं जब हम एक बार भी हॅंसी के ठहाके नहीं लगाते हैं।

अखण्ड ज्योति फरवरी 2004



























अखण्ड ज्योति दिसम्बर 2003


























अखण्ड ज्योति नवम्बर 2003





























अखण्ड ज्योति अक्टूबर 2003



























अखण्ड ज्योति सितम्बर 2003


























अखण्ड ज्योति अगस्त 2003





























अखण्ड ज्योति जुलाई 2003




























अखण्ड ज्योति जून 2003


























अखण्ड ज्योति मई 2003













13. पर्यावरण-संरक्षण: पर्यावरण सरंक्षण का मार्गदर्शन कराते हमारे वेद












LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin