पूज्यवर का जन्मस्थान अब युगतीर्थ बन चुका है । जहाँ संवत १९६८ आश्विन कृष्ण त्र्योदशी बुधवार (२ सितम्बर १९११) को उनका प्राकटय हुआ । यहीं की धूल में खेले, बड़े हुए । यहीं 15 वर्ष की किशोर अवस्था (वसंत पंचमी-सन् १९२६) में हिमालयस्थ ऋषिसत्ता-गुरुसत्ता का साक्षात्कार हुआ । इसी के साथ प्रारंभ हो गया २४-२४ लक्ष के महापुरश्चरण का सिलसिला । यहीं वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप उभरे तथा श्रीराम मत्त (मस्त) या मत्त जी के नाम से प्रसिद्ध हुए । उनके द्वारा खोदा कुआँ और लगाया गया नीम का पेड़ आज भी स्मृतियाँ ताजा करते हैं ।
यहीं से उनकी सेवा-साधना प्रारंभ हुई । शिक्षा एवं ग्रामीण स्वावलम्बन की कई गतिविधियाँ चलाईं । विरासत में मिली प्रचुर भू-सम्पदा का उपयोग अपने और अपने परिवार के लिये नहीं किया । एक भाग से अपनी माताजी की स्मृति में दान कुँवरि इण्टर कॉलेज की स्थापना कराई, शेष राशि बाद में गायत्री तपोभूमि हेतु समर्पित कर दी ।
सन् १९७९-८० में गायत्री शक्तिपीठ एवं राजकीय कन्या इण्टर कॉलेज का शुभारंभ हुआ, जो आज कन्या महाविद्यालय (डिग्री कॉलेज) बन चुका है । सन् १९९५ में प्रथम पूर्णाहुति समारोह भी यहाँ सम्पन्न हुआ, जिसमें लगभग पचास लाख लोगों ने भाग लिया । माता भगवती देवी शर्मा राजकीय सामुदायिक चिकित्सालय की स्थापना भी हो चुकी है, इस अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री ने एक कीर्ति स्तम्भ का लोकार्पण किया । आँवलखेड़ा आगरा से लगभग २४ किलोमीटर जलेसर रोड पर स्थित है और पुराने बिजलीघर से बसें उपलब्ध रहती हैं । वहाँ पहुँचकर देश-विदेश के भावनाशील साधकगण उसी प्रकार भाव विभोर हो उठते हैं, जैसे चैतन्य महाप्रभु वृन्दावन में पहुँचकर आनंदित हुए थे ।
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