एक साधू नदी किनारे टहल रहे थे , उन्होंने देखा की एक मछुवारा नदी के तट पर बैठा लोहे के काटे में आटे की गोलिया फसा रहा हैं , उत्सुकता से उन्होंने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो वो बोला कि :- "महाराज ! मैं ये काटा नदी में डालूँगा और आटे की लालच में मछलिया गोलिया खाएगी तो कटे में फस जाएगी, तब में उन्हें पकड़ लूँगा "..
साधू ने उससे फिर सवाल किया यदि - यदि मछलिया गोलिया गटककर फिर मुह हटा ले तो क्या होगा ?? "
मछुवारा बोला - "महाराज ! रस की चीजों से चिपकना जादा आसान हैं उनसे दूर जाना उतना ही कठिन हैं " ... यह सुन कर साधू को शास्त्र वचन याद आया कि विषयों मैं मन का लगना स्वभाविक हैं , पर वैराग्य की प्राप्ति के लिए निरंतर अभ्यास कि आवश्यकता हैं ....