एक रोगी राजवैद्य शार्गंधर के समक्ष अपनी गाथा सुना रहा था। अपच, बेचैनी, अनिद्रा, दुर्बलता जैसे अनेक कष्ट व उपचार में ढेरों राशि नष्ट कर कोई लाभ न मिलने के कारण की वह राजवैद्य शार्गंधर के पास आया था। वैद्यराज ने उसे संयमयुक्त जीवन जीने व आहार-विहार के नियमों का पालन करने को कहा। रोगी बोला, `` यह सब तो मैं कर चुका हूँ । आप तो मुझे कोई औषधि दीजिए, ताकि मैं कमजोरी पर नियंत्रण पा सकूँ । पौष्टिक आहार आदि भी बना सकें तो ले लूंगा, पर आप मुझे फिर वैसा ही समर्थ बना दीजिए।´´ वैद्यराज बोले, `` वत्स ! तुमने संयम अपनाया होता तो मेरे पास आने की स्थिति ही नहीं आती। तुमने जीवनरस ही नहीं, जीने की सामर्थ्य एवं धन-संपदा भी इसी कारण खोई है। बाह्योपचारों से, पौष्टिक आहार आदि से ही स्वस्थ बना जा सका होता तो विलासी-समर्थों में कोई भी मधुमेह-अपच आदि का रोगी न होता । मूल कारण तुम्हारे अंदर है, बाहर नहीं। पहले अपने छिद्र बंद करो, अमृत का संचय करो और फिर देखो वह शरीर निर्माण में किस प्रकार जुट जाएगा।´´ रोगी ने सही दृष्टि पाई और जीवन को नए सॉंचे में ढाला। अपने बहिरंग व अंतरंग की अपव्ययी वृतियों पर रोक-थाम की और कुछ ही माह में स्वस्थ समर्थ हो गया।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
मंगलवार, 16 जून 2009
क्रिया की प्रतिक्रिया
एक लड़का जंगल में गया हुआ था। चारों ओर सुनसान, उस बियाबान जंगल में हवाओं और पेड़ों के झूमने की ही आवाज आती थी। वह लड़का डरा और चिल्लाया, ` भूत।´ तो उसकी आवाज पहाड़ियों से टकराकर लौट आई और उसे सुनाई दिया, `भूत।´ लड़का समझा सचमुच भूत है। अब की बार उसने मुटि्ठयॉं कसीं और जोर से चिल्लाया, `` तू मुझे खायेगा।´´ पहाड़ो से टकराकर उसकी आवाज फिर लौट आई और उसने यही समझा कि भूत मुझसे पूछ रहा है। तब वह बोला, `` हॉं मैं तुझे खाउंगा।´´ यही आवाज जब फिर उस तक लौटी तो लड़का डरकर अपने घर चला गया और उसने अपनी मॉं से सारी बात कह दी। मॉं ने वस्तुस्थिति समझकर कहा, `` बेटा अब की बार तुम जंगल में जाओ तो उस भूत से कहना मेरे प्यारे दोस्त मैं तुझे प्रेम करता हूं। दोबारा जब वह जंगल में गया तो चिल्लाया,`` मेरे अजीज दोस्त।´´ पहाड़ों से उन्ही शब्दों की प्रतिध्वनि सुनाई दी और लड़के ने समझा, इस बार भूत उसे डरा नहीं रहा है। फिर वह बोला `` मैं तुझे प्यार करता हूँ।´´ पहाड़ो से यही बात फिर टकराकर लौटी तो लड़का खुशी से नाच उठा। क्रिया की प्रतिक्रिया प्रकृति का एक शाष्वत नियम है।
आपका अनन्य भक्त
देवता वरदान बॉंटने धरती पर आए, तो लोगों की अपार भीड़ अपनी-अपनी मनोकानाएं लेकर आ जुटी। किसी ने यष माँगा, किसी ने धन, किसी ने पद तो किसी ने कुछ और। देवता सबकी वांछित मनोकामनाएं पूरी करते चले गए। एक विद्रुप सा व्यक्ति हाथ जोड़े कोने में खड़ा था। देवता ने पास बुलाकर कहा-``तात् ! तुम्हें भी जो कुछ माँगना हो, माँग लो।उसने कहा-`` मेरी याचना तो छोटी सी है। जिन लोगों ने धन माँगा हैं, उनके पते मुझे बताने की कृपा करें। फिर मैं अपनी मनोकामना स्वयं ही पूरी कर लूँगा।´´
देवता ने आश्चर्य से पूछा-`` आखिर तुम हो कौन ? ´´ उस व्यक्ति ने कहा-`` व्यसन, अनावश्यक धन को विकेंद्रित करने में संलग्न आपका अनन्य भक्त।´´
चोकर की उपयोगिता
गेहूँ के आटे को छानकर जो चोकर अलग किया जाता है, वह कितना गुणकारी है, यह जानना जरूरी है। यह कब्ज की अद्धितीय प्राकृतिक औषधि है। यह आँतों में उत्तेजना पैदा नही करता तथा कैन्सर से दू र रखता है ( यह प्रयोग द्वारा प्रमाणित होगया है। अमाशय के घाव (पेप्टिक अल्सर),आँतों के विभिन्न रोग, उच्च कोलेस्टेरॉल से भी यह बचाता है। चोकर खाने वालों को कभी पाइल्स, भगंदर या मलाशय का कैन्सर नही होता है। मोटापा घटाने के लिए चोकर एक नीरापद औषधि है। मधुमेह निवारण में भी चोकर मदद करता है। चोकर मिश्रित आटा रोटी को और भी स्वादिष्ट बना देता है । गेहू का चोकर एक आदर्श रेशा (फाइबर डाइट) है। हम आज कि जीवन शैली में मैदे वाली रोटी खाते हैं एवं चोकर के इतने लाभों को पाने के लिए बच सकते है।
जड़े मजबूत रखना
एक रात भयंकर तूफान आया । सैकड़ों विशालकाय पुराने वृक्ष धराशायी हो गए। अनेक किशोर वृक्ष भी थे, जो बच गए थे, पर बुरी तरह सकपकाए खड़े थे।
प्रात:काल आया, सूर्य ने अपनी किरणें धरती पर फैलाई । ड़रे हुए वृक्षों को देखकर किरणों ने पूछा-``तात! तुम इतना सहमे हुए क्यों हो ? ´´ किशोर वृक्षों ने कहा-``देवियो! ऊपर देखो ,हमारे कितने पुरखे धराशायी पड़े हैं ।रात के तूफान ने उन्हें उखाड़ फेंका । न जाने कब यही स्थिति हमारी भी आ बने।´´ किरणें हँसी और बोलीं-``तात! आओ, इधर देखो ! यह वृक्ष तूफान के कारण नही, जड़े खोखली हो जाने के कारण गिरे। तुम अपनी जड़े मजबूत रखना तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पायेगा।´´
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