गुरुवार, 26 नवंबर 2009

सच्चे अतिथि

महाराष्ट्र के संत श्री एकनाथ जी को छह मसखरे युवक सदा तंग किया करते थे। एक बार एक भूखा ब्राह्मण उस गांव में आया और भोजन की याचना की। गांव के उन्ही दुष्ट जनो ने उससे कहा कि ``यदि तुम संत एकनाथ को क्रोधित कर दो तो हम तुम्हे 200 रूपये देगे। हम तो हार चुके शरारत कर-करके, पर उन्हें क्रोध आता ही नहीं।´´ दरिद्र ब्राह्मण भला कब मौका चूकने वाला था। फौरन उनके घर गया, वहाँ वे न मिले तो मंदिर में जा पहुँचा, जहाँ वे ध्यान मग्न बैठे थे। वह जाकर उनके कंधे पर चढ़ कर बैठ गया। संत ने नेत्र खोले और शांत मुद्रा में बोले-``ब्राह्मण देवता ! अतिथि तो मेरे यहाँ नित्य ही आते हैं, किन्तु आप जैसा स्नेह आज तक किसी ने नहीं जताया, अब तो मैं आपको बिना भोजन किये नहीं जाने दूंगा।

मैं तो बापू का चपरासी हूं।

बिहार के चम्पारन जिले में महात्मा गांधी का शिविर लगा था। किसानों पर होने वाले सरकारी अत्याचारों की जाँच चल रही थी। हजारों की तादाद में किसान आ-आकर बापू से अपने दुख निवेदन कर रहे थे। उस समय उस जाँच आन्दोलन में कृपलानी जी का बड़ा प्रमुख सहयोग था। 

वे गांधी जी के केम्प सेक्रेटरी के रूप में काम कर रहे थे। इसलिये जिला अधिकारियों की आँख की किरकिरी बने हुए थे।

डाक ले जाने का काम कृपलानी जी ही करते थे। एक बार कलक्टर ने पूछा, आप ही तो वह प्रोफेसर कृपलानी हैं जो इस सब हलचल के प्रमुख हैं। फिर आप यह डाक का काम क्यों करते है. 

कृपलानी जी ने उत्तर दिया - ``मैं तो एक साधारण कार्यकर्ता और बापू का चपरासी हूं।´´ कृपलानी जी का उत्तर सुनकर कलक्टर ने महात्मा गांधी की महानता को समझा और आन्दोलन की गरिमा का अन्दाज लगा लिया।

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