विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
शुक्रवार, 12 सितंबर 2008
श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीता ऐसा सुमधुर गीत हैं, जिसे स्वयं भगवान ने गाया हैं। धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में खड़े विश्वरुप विश्वगुरु श्रीकृष्ण ने कर्म का यह काव्य कहा हैं। इसमें सृष्टि का सरगम हैं, जीवन के बोल हैं। सृष्टिसृजन, स्थिति और विलय का कोई भी ऐसा रहस्य नहीं हैं, जिसे इस भगवद्गान में गाया न गया हो। इसी तरह जीवन के सभी आयाम, सभी विद्याएँ इसमें बड़े ही अपूर्व ढंग से प्रकट हुई हैं। इस दिव्य गीत के सृष्टि सप्तक (सप्तलोक) को प्रकृति अष्टक (अष्टधा प्रकृति) के साथ स्वयं भगवती चित्शक्ति ने अपनी चैतन्य धाराओं में गूँथा हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता का परिचय स्वयं भगवद्गीता के प्रत्येक अध्याय के अंत में कहा गया हैं। “ ओम तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रम्हविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे............. नाम..............अध्याय: । " ओंकार परमेश्वर का तत्-सत् रुप में स्मरण करते हुए बताया गया हैं कि यह भगवद्गान उपनिषद् हैं, यह ब्रम्हविद्या हैं, यह योगशास्त्र हैं, जो कृष्ण और अर्जुन संवाद बनकर प्रकट हुआ हैं। भगवद्गीता के इस परिचय में गहनता और व्यापकता दोनों हैं। यह भगवद्गीता उपनिषदों की परम्परा में श्रेष्ठतम उपनिषद् हैं।
इस उपनिषद् के आचार्य श्रीकृष्ण हैं और शिष्य धनुषपाणि अर्जुन हैं। आचार्य श्रीकृष्ण समस्त ज्ञान का आदि और अन्त हैं। वे स्वयं अनन्त हैं। शिष्य अर्जुन जिज्ञासु हैं, गुरुनिष्ठ हैं और अपने सदगुरु भगवान गुरु को पूर्णत: समर्पित है। सदगुरु व सत्शिष्य की इसी स्थिति में ब्रम्हविद्या प्रकट होती हैं। सृष्टि व जीवन के सभी रहस्य कहे-सुने-समझे व आत्मसात किये जाते हैं, परन्तु इन रहस्यों का साक्षात् व साकार तभी स्पष्ट होता हैं, जब शिष्य योगसाधक बन कर सदगुरु द्वारा उपदिष्ट योग-साधना का अभ्यास करे। योग की विविध तकनीको का इसमें प्राकट्य होने से ही गीता योगशास्त्र हैं। उपनिषद्प्रणीत यह ब्रम्हविद्या-योगशास्त्र तभी समझा जा सकता हैं, जब कृष्ण-अर्जुन संवाद की स्थिति बनें। श्रीमद्भगवद्गीता तो केवल उनके अन्तस् में अपने स्वरों को झंकृत करती हैं, जो भगवान के साथ समस्वरित हैं। ‘गीता जयंती पर्व हमें इसी की स्मृति कराता हैं।
नारी ही सतयुग लायेगी
अपने पीयूष अनुदानो का, जनता को पान करायेगी ।
आया वह पवित्र ब्रह्ममुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
ऊषाकाल का उदभव हो रहा, अरुणोदय की पावन बेला हैं,
यज्ञ की बेदी सजी कहीं, कहीं नर-समूहो का मेला हैं,
ऐसे सुन्दर उपवन में, युग परिवर्तन का बिगुल बजायेगी ।
आया वह पवित्र ब्रह्ममुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
करी जीव सृष्टि की संरचना, चेतना का संचार किया,
प्रसव वेदना को सह, माता बनकर प्यार दिया,
श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठा, बन, इस अनुकम्पा का एहसास दिलायेगी
आया वह पवित्र ब्रह्ममुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
देवयुग्मो में प्रथम नारी, तत्पश्चात नर का आए नाम,
उमा-महेश, ‘शची-पुरन्दर, चाहे हो वह सीता-राम,
मानुषी रुप में देवी हैं, इस तथ्य को ज्ञात करायेगी ।
आया वह पवित्र ब्रह्ममुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
नारी हृदय हैं निर्मल-कोमल, प्रेम भंडार छुपा हैं सारा,
मानवता का सिंचन करने, निकले इससे अमृत-धारा,
मुर्छित वसुन्धरा पर पुन: जाग्रती आएगी ।
आया वह पवित्र ब्रह्ममुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
-साधना मित्तल
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1997
आपका अनन्य भक्त।
देवता वरदान बॉंटने धरती पर आए, तो लोगों की अपार भीड़ अपनी-अपनी मनोकानाएं लेकर आ जुटी। किसी ने यष माँगा, किसी ने धन, किसी ने पद तो किसी ने कुछ और। देवता सबकी वांछित मनोकामनाएं पूरी करते चले गए। एक विद्रुप सा व्यक्ति हाथ जोड़े कोने में खड़ा था। देवता ने पास बुलाकर कहा-``तात् ! तुम्हें भी जो कुछ माँगना हो, माँग लो।
उसने कहा-`` मेरी याचना तो छोटी सी है। जिन लोगों ने धन माँगा हैं, उनके पते मुझे बताने की कृपा करें। फिर मैं अपनी मनोकामना स्वयं ही पूरी कर लूँगा।´´
देवता ने आश्चर्य से पूछा-`` आखिर तुम हो कौन ? ´´ उस व्यक्ति ने कहा-`` व्यसन, अनावश्यक धन को विकेंद्रित करने में संलग्न आपका अनन्य भक्त।´´
आप भी हमारे सहयोगी बने।
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