गुरुवार, 29 जुलाई 2010

ख़ुद पर भरोसा

एक बार बहुत से मेंढक जंगल से जा रहे थे। वे सभी आपसी बातचीत में कुछ ज्यादा ही व्यस्त थे। तभी उनमें से दो मेंढक एक जगह एक गड्ढे में गिर पड़े। बाकी मेंढकों ने देखा कि उनके दो साथी बहुत गहरे गड्ढे में गिर गए हैं। गड्ढा गहरा था और इसलिए बाकी साथियों को लगा कि अब उन दोनों का गड्ढे से बाहर निकल पाना मुश्किल है। साथियों ने गड्ढे में गिरे उन दो मेंढकों को आवाज लगाकर कहा कि अब तुम खुद को मरा हुआ मानो। इतने गहरे गड्ढे से बाहर निकल पाना असंभव है।

दोनों मेंढकों ने बात को अनसुना कर दिया और बाहर निकलने के लिए कूदने लगे। बाहर झुंड में खड़े मेंढक उनसे चीखकर कहने लगे कि बाहर निकलने की कोशिश करना बेकार है। अब तुम बाहर नहीं आ पाओगे। थोड़ी देर तक कूदा-फाँदी करने के बाद भी जब गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाए तो एक मेंढक ने आस छोड़ दी और नीचे की तरफ लुढ़क गया। नीचे लुढ़कते ही वह मर गया।

दूसरे मेंढक ने कोशिश जारी रखी और अंततः पूरा जोर लगाकर एक छलाँग लगाने के बाद वह गड्ढे से बाहर आ गया। जैसे ही दूसरा मेंढक गड्ढे से बाहर आया तो बाकी मेंढक साथियों ने उससे पूछा- जब हम तुम्हें कह रहे थे कि गड्ढे से बाहर आना संभव नहीं है तो भी तुम छलाँग मारते रहे, क्यों ? इस पर उस मेंढक ने जवाब दिया- दरअसल मैं थोड़ा-सा ऊँचा सुनता हूँ और जब मैं छलाँग लगा रहा था तो मुझे लगा कि आप मेरा हौसला बढ़ा रहे हैं और इसलिए मैंने कोशिश जारी रखी और देखिए मैं बाहर आ गया।

जब हमें अपने आप पर भरोसा हो तो दूसरे क्या कह रहे हैं इसकी कोई परवाह नहीं करनी चाहिए और कोशिशों को जारी रखना कहिये ।

ज्ञान का घमंड

एक पढ़ा-लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार हुआ। वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’

नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’दंभी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र यों ही गँवा दी!’’ थोड़ी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?” नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए ‘नहीं’ कहा।

दंभी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।“ मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला।

अचानक तुफान के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया। नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’ सवारी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’ “फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया।

मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर गर्व नहीं करना चाहिए।

पहले दो कदम तो चल

ऊँची पहाड़ी के किनारे एक गाँव बसा था । वह पहाड़ी बहुत हरी-भरी और सुंदर दिखती थी । उसी गाँव में एक नौजवान रहता था जो उन हरियाली से लदी पहाडियों की चोटियों को अपने खेतों से ही देखता था और सोचता था कि एक दिन वह जरूर उन चोटियों पर पहुँच कर रहेगा । पर उसने सुन रखा था कि उन पर जाने के लिए रात के अंधेरे में ही निकलना पड़ेगा क्योंकि सूरज निकलने के बाद चढाई कठिन हो जाती थी, पत्थर तप जाते थे और रस्ते में प्यास बुझाने के भी उपाय नही थे । कुल मिलाकर रात का सफर ही एकमात्र आसान तरीका था ।

उसके पास एक लालटेन थी बस उसे लेकर वह हमेशा दुविधा में रहता था , उसको चिंता होती कि उसके पास जो लालटेन है उसका उजाला दो-चार क़दमों से जयादा नही होता जबकि पहाड़ कि दो मील चढाई करनी है। दो मील दूर मंजिल और दो कदम उजाला भला कैसे बात बनेगी ? इतना से प्रकाश में यात्रा करना कहाँ तक उचित होगा ? ये तो बड़ा मुश्किल लगता है यह सोचकर वह हिम्मत हार जाता ।

एक दिन वह रात्रि में उसी पहाडियों के किनारे से गुजर रहा था तो उसने देखा कि एक साधू लालटेन लिए पहाडियों से उतर रहे है ,आख़िर वो कैसे इतनी छोटी लालटेन लेकर पहाडियों पर चले गए यह जानने के लिए वह उनका बेसब्री से इन्तजार करने लगा और वो जैसे ही नीचे उतरे उसने अपनी मन कि दुविधा और चिंता बताई ।

उस नौजवान कि बातें सुनकर महात्मा जोर से हँसे और बोले ,"पागल ! तू पहले दो कदम तो चल ,जितना दिखता है उतना आगे तो बढ़ । अगर एक कदम भी दिखता है तो सारे धरती कि परिक्रमा की जा सकती है ,और तुझे तो दो कदम दिखाए देते है। 

बहुत दूर के सोच-विचार में अक्सर ही निकट को खो दिया जाता है जबकि निकट ही सत्य है और निकट में ही वह छिपा रहता है जो दूर है। एक छोटे से कदम में ही बड़ी से बड़ी मंजिल का आवास होता है।

जीवन एक वीणा

एक घर में बहुत दिनों पुरानी एक वीणा रखी हुई थी । लोग उसको उपयोग में नही लाते थे जिसके चलते पड़ी-पड़ी वो धूल खाती रहती थी। रात में अगर भूल से कोई बच्चा उसे गिरा देता तो आधी रात में उसके तार झनझना जाते और घर के लोगो की नींद टूट जाती । वह वीणा एक उपद्रव का कारण बन गयी थी ।

अंततः उस घर के लोगो ने यह तय किया की इसे घर के बाहर फ़ेंक दिया जाए क्योंकि यह जगह घेरती है, कचरा इकठ्ठा करती है और घर की शान्ति भी भंग करती है । सब मिलकर वीणा को घर के बाहर कूडेदान में फेकने चल दिए।

अभी वो फेंककर लौट भी न पाये थे की उधर से एक व्यक्ति गुजरा और उसकी नजर उस वीणा पर पड़ी । उसने उस वीणा को उठाकर धुल झाडे और तारो को ठीक से कसा और उनके तारो को छेड़ने लगा । फिर क्या था ? अब तो नजारा ही बदल गया । जो भी उस रास्ते से गुजरता वही ठिठक कर खड़ा हो जाता और उसके मधुर संगीत में खो जाता, चारो ओर भीड़ लग गयी। वह व्यक्ति मंत्रमुग्ध होकर वीणा बजा रहा था चारो तरफ शमां सा बाँध गया । जैसे ही उसने वीणा बजाना बंद किया की फिर सब झपट पड़े, बोले, यह वीणा हमारी है, इसे हमे वापस कर दो।

वह व्यक्ति हंस पड़ा और बोला, 'पहले इसे बजाना तो सीख लो , अन्यथा फिर यह उपद्रव पैदा करेगा । बजाना न आता हो तो वीणा घर की शान्ति भंग कर देती है। और यदि बजाना आता हो तो घर को शांतिपूर्ण एवं संगीतमय बना देती है। '

जीवन भी एक वीणा की तरह है । इस वीणा को बजाना बहुत कम लोग ही जान पाते है इसलिए तो इतनी उदासी है ,दुःख है,इतनी पीडा है। जो जीवन एक संगीत बन सकता था ,वह विसंगतिपूर्ण बन गया है।

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin