विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
मंगलवार, 5 अप्रैल 2011
सकारात्मकता
जीवन हर पल जीने, उत्साह-उमंग के साथ उसे अनुभव करने का नाम है। हर दिन का शुभारम्भ उत्साह के साथ ऐसे हो, जैसे नया जन्म हुआ हो, दिनभर, हर श्वास योगी की तरह जियो, जरा भी नकारात्मकता प्रविष्ट मत होने दो। सकारात्मक, सकारात्मक मात्र सकारात्मक। यही तुम्हारा चिंतन हो। यह चिंतन यदि वर्ष के शुभारम्भ से ही अपनाने का संकल्प ले लो तो तुम्हे सफलताओं के शीर्ष तक पहुँचने में ज्यादा विलम्ब न होगा।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
Positivity in, Negativity out
To be alive is to live each moment to the fullest, with great enthusiasm and zest.
Start each day like it’s a new life, a new birth and all day long live each breath like a yogi, do not allow even a speck of negativity to enter.
Let there be hope, hope and nothing but hope in your thoughts.
Resolve to adopt such a positive and optimistic attitude at the very beginning of a year, or even now and follow it through, you will soon scale the summit of success.
-Pt. Shriram Sharma Acharya
गुरु का अवलंबन
बिजलीघर से तार जोड़ लेने पर नगर के अनेकों पंखे, बल्ब, हीटर, कूलर आदि चलने लगते हैं । भरी टंकी के साथ जुड़ा नल बराबर पानी देता रहता है । हिमालय के साथ जुड़ी हुई नदियाँ सदा प्रवाहित रहती हैं , पति की कमाई पर पत्नी , बाप की कमाई पर औलाद मौज मनाती रहती है । यही बात साधना क्षेत्र में भी है ।
एकाकी साधक अपने बलबूते कुछ तो कर ही सकता है और देर- सबेर में लम्बी यात्रा भी पूरी कर लेता है। इसलिए एकाकी प्रयास को भी झुठलाया तो नहीं जा सकता पर सुविधा इसी में है कि किसी शक्ति भण्डार के साथ जुड़कर अपनी प्रगति सम्भावना को सुनिश्चित किया जाय। गुरु वरण इसी को कहते हैं ।
यह एक अनुबन्ध है जिसमें दोनों पक्ष अपनी -अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते और परस्पर पूरक बनकर दोनों पक्ष प्रसन्नता एवं सफलता उपलब्ध करते हैं । अंधे -पंगे के सयोंग से नदी पार कर लेने वाली बात इसी प्रकार बनती है ।
नारद के साथ जुड़कर पार्वती, सावित्री, वाल्मीकि, ध्रुव , प्रहलाद, आदि ने अपने साधारण स्तर को असाधारण बनाया था । बुद्ध के साथ जुड़कर अंगुलिमाल, आम्रपाली, अशोक जैसों ने अपने स्तर का कायाकल्प कर लिया था। चाणक्य - चन्द्रगुप्त , समर्थ - शिवाजी , परमहंस -विवेकानंद , गाँधी - विनोबा आदि के अगणित युग्म ऐसे हैं जिनमें शक्ति संपन्नों के साथ जुड़कर असमर्थों ने भी उच्चस्तरीय सफलता पायी। गुरु शिष्य का गठबंधन इसीलिए आध्यात्मिक प्रगति के लिए आवश्यक माना गया है ।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
जीवन देवता की साधना- आराधना (२)- १.४५
Get connected NOW...
Electrical things spring to life as soon as they are plugged into a live source. Tap spurts out water as soon as it’s connected to a full tank. Himalayan rivers flow uninterrupted and strong due to their perennial source up in the mountains. A wife shares the abundance of a husband and children make merry on the earnings of their parents. This phenomenon is observed in the field of spirituality as well.
A lone seeker on his own might shall, definitely, manage to achieve something, tread the long road to success and reach his goal sooner or later. Therefore we cannot write off solitary endeavors, but there is a more convenient way to achieve the same i.e. get connected to a Spiritual Powerhouse and ensure our success.
This act is called "choosing" a Guru.
It is a symbiotic relationship between the two, in which both the parties carry out their respective duties while supplementing each other’s efforts, thus gaining blissful success along the way. Lame climbs on to the shoulders of the blind, guiding him directing him, while the blind walks and takes the two to their chosen destination.
History is filled with the examples of successful Guru-disciple partnerships.
Parwati, Savitri, Valmiki, Dhruva, Prahlad and many more transcended from ordinary, unknown people to extraordinary human beings by connecting with Narada - their spiritual mentor.
Buddha’s touch transformed Angulimala, Amrapali, Asoka and countless others.
There are many more examples of Guru-disciple partnerships like Chanakya and Chadragupta, Samarth Guru Ramadas and Shivaji, Ramakrishna Paramhansa and Swami Vivekananda, Gandhi and Vinoba.
There are countless examples of successful unions between a seeker and the powerhouse of energy.
Union by which even an inept person could achieve the acme of success, by joining with an energy powerhouse.
Therefore this union and partnership between a disciple and the master is considered essential for spiritual progress.
-Pt. Shriram Sharma Acharya
Translated from -
Pandit Shriram Sharma Acharya's work
Jivan Devta ki sadhana-aradhana 2:1.44-45
सर्वभूत हितरेता:
आधार उसे कहते हैं, जिसके सहारे कुछ स्थिर रह सके, कुछ टिक सके । हम चारों ओर जो गगनचुम्बी इमारत देखते हैं, उनके आधार पर नींव के पत्थर होते हैं।
बिना आधार के सनातन धर्म भी नहीं है । सनातन धर्म का अपना एक मजबूत आधार है, जिसके ऊपर उसकी भित्ति हजारों वर्षों से मजबूती से खड़ी हुई है ।
वह आधार क्या है ? वह आधार है - 'सर्वभूत हितरेता:'। इसे दूसरे शब्दों में ऎसा भी कह सकते हैं कि सृष्टि के सम्पूर्ण जड़ - चेतन में अपनी आत्मा का दर्शन करना । अपने समान ही सबको मानना ।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
धर्म तत्त्व का धर्षण और मर्म (५३)-१.१३
Do good to one and all
Foundation is the base on which something can be established or something can stay put. We see plenty of skyscrapers around. These gigantic buildings are built on the strength of their strong foundations.
Even Sanātana Dharma, the eternal dharma that has no beginning and no end, couldn't have endured without a foundation. It has been managed to survive unharmed, amidst lots of storms for thousands of years, because of its rock solid foundation.
What could be its rock solid foundation? Its foundation lies in its core belief of sarvabhūta hitaretāh, i.e. do good to one and all, without exception. In other words, this means to visualise our soul in each and every living or non-living entities in the world, to regard everyone just like our own selves, to have an infinite all-inclusive outlook.
-Pt. Shriram Sharma Acharya
Translated from -
Pandit Shriram Sharma Acharya's work
Dharma tattwa kā darśana aura marma 53:1.13
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