शनिवार, 29 जनवरी 2011

सौ प्रतिशत सफलता

1. सौ प्रतिशत सफल होने के लिए खुद को दौ सौ प्रतिशत सक्रिय बनाइए। 
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2. बहादुरी वह शक्ति हैं जिससे आप हिमालय को पार कर सकते हें। 
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3. यदि तुम कमजोर हो तो घबराओ तम, दिमाग को केन्द्रित करो, फिर से कोशिश करो और अपना लक्ष्य साधो। 
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4. कर्तव्य से कर्तव्य का जन्म होता हैं। माता-पिता ने पहले अपना कर्तव्य निभाया, अब हम अपना कर्तव्य निभाएँ।
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5. जीवन का हर दिन होली और दिवाली की तरह हैं। इसके हर पल का आनन्द लीजिए।
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6. ईश्वर पर हमें विश्वास हैं, फिर ईश्वर के द्वारा दिए गए जीवन और सम्बन्धों पर विश्वास क्यों नहीं हैं। विश्वास कीजिए, विश्वासघात नहीं। 
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7. भले ही दूसरे लोग पहनावे से सभ्य बन जाते हों, पर आप अपने आचरण और चरित्र से सभ्य व्यक्ति बनें। 
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8. पहले मन से ईमानदार बनिए, फिर वचन से और उसके बाद अपने कर्म से, ईमानदारी ही महान् व्यक्तियों का पदचिन्ह बनती हैं। 
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9. डेढ़ किलो वजनी दिमाग में बुद्धि के अनमोल खजाने भरे हैं। बुद्धि का जितना इस्तेमाल करोगे, उतने ही महान् और धनवान बनोगे। 
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10. न्याय ही भगवान हैं और अन्याय ही शैतान हैं। तुम न्याय का अनुसरण करो, भगवान स्वतः तुम्हारा साथ देंगे। 
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11. आपकी थोड़ी-सी दया किसी भूखे को भोजन दे सकती हैं, बेघर को बसेरा दे सकती हैं और रोते हुए को हँसा सकती हैं। 
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12. अपने भाई और बहिन से हर रोज इतना प्यार कीजिए कि आपका हर दिन राखी का त्यौहार बन जाए। 
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13. लापरवाह लोग दिन में भी अपने जूते-टाई ढूँढते फिरते हैं, वही सुव्यवस्थित लोग अँधेरे में भी सुई पा लेते हैं। 
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14. अपने विचार, वचन एवं व्यवहार को इतना सुन्दर बनाइए कि भले ही आप चेहरे से सुन्दर न हों, फिर भी आपकी सुन्दरता पूजी जाएगी। 
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15. बड़ों का कहा मानना उनका सबसे बड़ा सम्मान हैं। 
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16. विनम्र व्यक्ति की तो दुश्मन भी प्रशंसा करते हैं, जबकि घमन्डी व्यक्ति को दोस्त भी दुत्कारते हैं।
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17. यदि आपके जीवन में गुणवत्ता हैं तो आप काले और छोटे कद के होकर भी आसमान की ऊँचाइयों को छू सकते हैं।
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18. अपमान देकर तो किसी से ढेला भी नहीं पाया जा सकता, पर सम्मान देकर तो सब कुछ पाया जा सकता हैं। 
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19. अपने काम को इतनी गम्भीरता से पूर्ण करो कि मानो टैगोर गीतांजली की रचना कर हों। 
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20. जिन्दगी में एक बार नहीं, 17 बार असफल हो जाने पर भी हार मत मानो, फिर पुरजोर कोशिश करों, जीत तुम्हारी होगी। 
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21. तुम पाँच हो और सामने वाले सौ, पर यदि एकता रखोगे तो सौ पर भी भारी पड़ोगे। 
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22. विजय पानी हैं तो विक्ट्री से प्रेरणा लीजिए, वी से वीजन (नजरिया) आई से इन्टेलीजेन्स (बुद्धिमानी) सी से करेज (साहस), टी से टेलेन्ट (प्रतिभा), ओ से ओपुर्चुनिटी (अवसर), आर से रेडी (तत्परता) और वाई से यन्ग माइन्ड (उत्साही मन)।
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23. यदि आप स्वस्थ और धनवान हैं तो स्वर्ग आपके कदमों में हैं। 
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24. अपने जीवन को एक्स-रे की तरह साफ-सुधरा रखिए ताकि किसी को अंगुली उठाने का मौका न मिले।
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25. ‘‘हाँ’’ कहने का मतलब ही हैं सकारात्मकता जो हमारे रिश्तों और विचारों का आईना दिखाती हैं। 
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26. उत्साह जीवन की सबसे बड़ी शक्ति हैं। अगर आपके पास यह हैं तो जीत आपकी हैं। 
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27. सुबह आँख खुलते ही एक मिनट तक तबीयत से मुस्कुराइये, यह सुबह का ऐसा विटामीन हैं जो दिनभर आपको प्रसन्न रखेगा। 
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28. पहले ‘‘क’’ आता हैं फिर ‘‘ख’’। पहले करो, फिर खाओ। कर्मयोग से जी मत चुराओ। 
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29. सावधान ! आपका एक पल का गुस्सा आपका पूरा भविष्य बिगाड़ सकता हैं। 
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30. गुटखा खाने से पहले, ‘‘ट’’ हटाकर बोलिए, फिर जी करे, तो प्रेम से खाइए।
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31. ऊँचा लक्ष्य + कार्य-योजना + सकारात्मक नजरिया + लगातार मेहनत + आत्मविश्वास = सौ प्रतिशत सफलता।
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संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी, ललितप्रभ जी

जीने की कला

1. प्रार्थना ! बिना डाकिए के ईश्वर को पहुँचता पत्र ........।
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2. ईश्वर पर सदा भरोसा रखिए, वह निन्यानवे द्वार बंद कर देता हैं, पर भाग्य का एक द्वार फिर भी खुला रखता हैं। 

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3. गुरू विद्यालय भी हैं और मन्दिर भी। हम गुरू की इज्जत भी करें और उनसे नसीहत भी लें। 

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4. दुर्योधन नहीं, युधिष्ठिर बनें। दुर्योधन को किसी में भलाई नहीं दिखती, युधिष्ठिर को किसी में बुराई नहीं दिखती।
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5. घर में कोई बुढ़ा हैं तो उसे भार की बजाय भाग्य मानिए। बूढ़ा पेड़ फल नहीं देता, पर छाया तो देता ही हैं। 

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6. हमेशा प्रेम की भाषा बोलिए। इसे बहरे भी सुन सकते हैं और गूंगे भी समझ सकते हैं। 

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7. जब हम औरों के काम आते हैं तो हम ईश्वर के काफी करीब होते हैं। 

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8. लाखों की कीमत चुकाकर भी जिसे बरकरार रखा जाना चाहिए, वह हैं - मन की शान्ति।

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9. आत्मशक्ति को मजबूत कीजिए ! जिसका आत्मविश्वास मजबूत हैं वह सौ बार हारकर भी नहीं हारता। 

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10. जहाँ हिम्मत समाप्त होती हें, वहीं हार की शुरूआत होती हैं। आप धीरज मत खोइए, अपना कदम फिर से उठाइए .......।

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11. आप जीवन में इतनी ऊँचाइयाँ अवश्य छू लें कि लोग आपके माता-पिता से पूंछे कि आपने ऐसे क्या पुण्य किए जो ऐसी अच्छी सन्तान हुई।

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12. खाली बैठना बहुत अच्छा लगता हैं, पर उसका परिणाम कभी अच्छा नहीं होता।

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13. तुम उतने ही ऊपर उठ सकोगे, जितेन ऊँचे तुम्हारे विचार हैं।

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14. स्वर्ग भले ही आसमान में हो, पर उसका सुकून माँ के चरणों में ही हैं। 

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15. ज्ञान पाने के लिए बचपन, सुख भोगने के लिए जवानी, शान्ति और आनन्द से जीने के लिए बुढ़ापा।

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16. इतनी लालसा मत पालिए, जो मिला हैं, पहले उसका आनन्द लीजिए।

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17. मित्र की भूल अकेले में कहिए, पर प्रशंसा सबके सामने कीजिए।

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18. सुबह जल्दी जगने की आदत डालिए, ताकि आप केवल डूबता हुआ सूरज ही नहीं, भाग्य के उगते हुए सूरज को भी देंख सकें। 

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19. यदि आप जीवन में सफल होना चाहते हैं तो धैर्य को अपना धर्म बना लें। 

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20. अच्छी पत्नी की तरह अच्छे मित्र का चयन कीजिए। गलत पत्नी आपको दुःखी करेगी, पर गलत मित्र आपके घर-परिवार की सुख-शान्ति ही चैपट कर देगा। 

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21. औरों की भलाई कीजिए। भलाई का हर कदम हमें स्वर्ग की ओर बढ़ाता हैं। 

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22. प्रशंसा और प्रसन्नता ऐसे इत्र हैं जिन्हें आप जितना अधिक दूसरों पर छिड़केंगे, उतनी ही सुगन्ध आपके लौटकर मिलेगी। 

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23. कड़क लफ्जों में हल्की बात कहने की बजाय नरम लफ्जों में ठोस बात कहिए।

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24. नशा धीमा जहर हैं। जहर तो पीने वाले का नुकसान करता हैं, पर नशा तो पूरे परिवार का नाश करता हैं। 

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25. जब भी लगे कि तुम चिन्ता और तनाव से भरे हुए हों, तो अपने बचपन को याद कर लो और किसी किलकारी भरते हुए बच्चे की की तरह मुस्करा लो। 

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26. पत्नी गुस्से में कहे- तुम जानवर हो। आप मुस्कुराकर कहिए - तू मेरी जान हैं, मैं तेरा वर हूँ। यह हैं तरीका, गुस्से को मिटाने का।

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27. बीते कल की चर्चा मत कीजिए और आने वाले कल की चिन्ता। सुखी जीवन का राज हैं, आज की सोचिए, आज को सँवारिए, आज को सार्थक कीजिए।

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28. स्वयं पर अनुशासन कीजिए, तभी आप आने वाले कल पर शासन कर सकेंगे। 

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29. डैडी की डाँट-डपट पड़ौसी के दिखावटी प्यार से ज्यादा अच्छी होती हैं। 

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30. ज्ञान धन से ज्यादा महान् हैं, धन की हमें रक्षा करनी पड़ती हैं, जबकि ज्ञान हमारी रक्षा करता हैं। 

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31. लिए हुए नियम और दिये हुए वचन को मरकर भी निभाने की कोशिश कीजिए। 

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-संत प्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी, ललितप्रभ जी

अनुशासित संस्कारवान बच्चे

महर्षि कपिल नित्य गंगास्नान के लिये जाते तो मार्ग मे एक गाँव मे एक वृद्धा का घर पड़ता। विधवा ब्राह्मणी या तो चरखा कातते मिलती या ध्यान करते। एक दिन दयाद्र होकर वे उसके पास पहुँचे और बोले-‘‘बहन ! मै इस आश्रम का कुलपति हूँ। मेरे कई शिष्य राज परिवारों मे है। तुम चाहों तो तुम्हारे लिये स्थाई जीविका की व्यवस्था कर दूँ। तुम्हारी यह असहाय अवस्था वास्तव मे दुःखद है’’ ब्राह्मणी ने आभार व्यक्त किया और बोली - ‘‘देव ! आपका हार्दिक धन्यवाद, पर आपने मुझे पहचानने में भूल की। मै असहाय नही हूँ। मेरे पास पाँच ऐसे रत्न है जिनसे चाहे तो मै राजाओं जेसे वैभव प्राप्त कर सकती हूँ। 

कपिल ने आश्चर्य से पूछा:- ‘‘भद्रे ! कहाँ है वे पाँच रत्न ? क्या में उन्हे देख सकता हूँ।

ब्राह्मणी ने आसन पर कपिल मुनि को बिठाया । थोड़ी देर मे पाँच सुन्दर विन्रम बच्चे घर आये। माँ को प्रणाम किया एवं कपिल को पहचान कर उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। सादगी भरे वस्त्रो मे वे राजकुमारो से भी कम नही लग रहे थे। गुरूकुल से लौटे उन बालकों के गुण पारखी कपिल ने बिना बताये ही जान लिये थे। उनने ब्राह्मणी को प्रणाम किया और और कहा हे भद्रे ! सचमुच तुम्हारे पाँच रत्न बडे अमूल्य हैं। ऐसे अनुशासित संस्कारवान बच्चे जिस घर में, जिस देश में हो, वह अभावग्रस्त रह ही नही सकता।

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