गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009

घोषणा पत्र


सिंख सम्प्रदाय के चौथे गुरू श्री रामदास जी के अनेक शिष्य थे। सभी की अपनी-अपनी विशेषताएं थी। उनमें से एक शिष्य ऐसे से थे, जिनकी विशेषता श्रद्धा और आज्ञापालन ही थी। इनका नाम था-अर्जुनदेव।
अर्जुनदेव ने दीक्षा लेकर आश्रम में प्रवेश किया, तो उन्हें बर्तन माजँने का काम सौंपा गया। वे सवेरे से शाम तक बर्तन माँजने में लगे रहते। अन्य शिष्य जबकि धर्म चर्चा और गुरू पूजा में लगे रहते, तब भी अर्जुनदेव अपने नियत कम्र के अतिरिक्त दूसरी बात नही सोचते। बर्तन माजँना ही उनके लिए सबसे बड़ी साधना बना हुआ था । गुरू ने यही आदेश तो उन्हें दिया था।
गुरूजी के अवसान का समय आया। सब शिष्य यह आशा जगाये हुए थे कि बढ़ी चढ़ी योग्यता के कारण उन्हें ही उत्तराधिकार मिलेगा, वे गुरू की गद्दी पर बैठेंगे। गुरूदेव अपना घोषणापत्र लिख चुके थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् ही उसे खोला जाना था।
समय आया। गुरूदेव दिवंगत हुए। घोषणा पत्र खुला। उसमें अर्जुनदेव को उत्तराधिकारी माना गया था। सुनने वालों ने बड़ा आश्चर्य किया कि इस सबसे कम योग्यता वाले को यह पद कैसे मिला ? समाधान करने वालो ने समझाया कि श्रद्धा और अनुशासन- यही शिष्य की सबसे बड़ी योग्यता है। गुरूदेव की परख ठीक ही थी और निर्णय भी ठीक ही था।
अर्जुनदेव सिंख धर्म के पाँचवें गुरू हुए, उन्होनें अपनी योग्यता के बल पर नही, श्रद्धा के बल पर सिख धर्म की भारी सेवा की और प्रगति की।

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सबसे बढ़कर पूजा

लोकमान्य तिलक कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए लखनऊ आए। लखनऊ कांग्रेस में कार्यक्रम अत्यन्त व्यस्त था, क्योंकि इसके दौरान विभिन्न दलों और गुटो में एकता स्थापित करने के लिए लोकमान्य बहुत तड़के से व्यस्त रहे और दोपहर तक एक क्षण के लिए भी विश्राम ना पा सके। बड़ी कठिनाई से उन्हें भोजन के लिए उठाया जा सका। भोजन के समय परोसने वाले स्वयंसेवक ने कहा-``महाराज ! आज तो आपको बिना पूजा किए ही भोजन करना पड़ा।´´ लोकमान्य गंभीर हो गए। बोले- ``अभी तक जो हम कर रहें थे, क्या वह पूजा नही थी ? क्या घंटी-शंख बजाना और चदंन घिसना ही पूजा है ? समाज सेवा से बढ़कर और कौनसी पूजा हो सकती है ?´´

स्वर्ग प्राप्ति का राजमार्ग

एक दिन एक गृहस्थ ने महात्मा रामानुज से प्रश्न किया कि `` महात्मन् ! क्या ऐसा कोई मार्ग नही है कि यह संसार भी नही छोड़ना पड़े और स्वर्ग भी पा लूँ।´´

रामानुज हँसे और बोले - `` हाँ, हैं ऐसा मार्ग। तुम जो कुछ कमाओ, ईमानदारी से कमाओ और जो कुछ व्यय करो-सदा दूसरों की भलाई के लिए करो।´´

गृहस्थ को संदेह हुआ उसने पूछा-`` मगर ऐसे कठिन मार्ग पर कौन चल सकता है -´´रामानुज ने दृढ़ विश्वास के साथ कहा-`` जो नारकीय यातनाओं से बचना चाहता होगा और जिसे ईश्वर प्राप्ति की सच्ची लगन होगी।´´

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