मंगलवार, 27 जुलाई 2010

सुकरात की पत्नी

सुकरात की पत्नी जेंथीप बहुत झगड़ालू और कर्कशा थी। एक दिन सुकरात अपने शिष्यों के साथ किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। वे घर के बाहर बैठे हुए थे। भीतर से जेंथीप ने उन्हें कुछ कहने के लिए आवाज़ लगाई। सुकरात ज्ञानचर्चा में इतने खोये हुए थे कि जेंथीप के बुलाने पर उनका ध्यान नहीं गया। दो-तीन बार आवाज़ लगाने पर भी जब सुकरात घर में नहीं आए तो जेंथीप भीतर से एक घड़ा भर पानी लाई और सुकरात पर उड़ेल दिया। वहां स्थित हर कोई स्तब्ध रह गया लेकिन सुकरात पानी से तरबतर बैठे मुस्कुरा रहे थे। 

वे बोले“मेरी पत्नी मुझसे इतना प्रेम करती है कि उसने इतनी गर्मी से मुझे राहत देने के लिए मुझपर पानी डाल दिया है।”

सुकरात का एक शिष्य इस पशोपेश में था कि उसे विवाह करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। वह सुकरात से इस विषय पर सलाह लेने के लिए आया। सुकरात ने उससे कहा कि उसे विवाह कर लेना चाहिए।

शिष्य यह सुनकर हैरान था। वह बोला – “आपकी पत्नी तो इतनी झगड़ालू है कि उसने आपका जीना दूभर किया हुआ है, फ़िर भी आप मुझे विवाह कर लेने की सलाह दे रहे हैं?”

सुकरात ने कहा – “यदि विवाह के बाद तुम्हें बहुत अच्छी पत्नी मिलती है तो तुम्हारा जीवन संवर जाएगा क्योंकि वह तुम्हारे जीवन में खुशियाँ लाएगी। तुम खुश रहोगे तो जीवन में उन्नति करोगे और रचनाशील बनोगे। यदि तुम्हें जेंथीप की तरह पत्नी मिली तो तुम भी मेरी तरह दार्शनिक तो बन ही जाओगे! किसी भी परिस्तिथि में विवाह करना तुम्हारे लिए घाटे का सौदा नहीं होगा।”

अनावश्यक भार

गुरु ने शिष्य को हाथ में एक तेल से भरा कटोरा पकड़ा दिया और कहा 'यह तुम्हरी परीक्षा है इसे पकड़ कर पुरे उपवन में घुमो, और फिर मुझे बताओ वहा खिला हुआ सबसे सुन्दर फूल कौन सा है? ध्यान रखना इस कटोरे से एक बूँद भी तेल गिरने नहीं पाए' .

शिष्य ने पुरे उपवन के कई चक्कर लगाये जब वह वापस आया तो गुरु ने पूछा 'अब बताओ सुन्दर फूल का रंग क्या है?'

शिष्य ने कहा'मैं सच कहता हूँ ,उपवन के फूलों को तो मैं ठीक से देख ही नहीं सका मेरा पूरा ध्यान इसी में लगा रहा की तेल की एक भी बूँद कही जमीं पर गिर ना जाये .

तब गुरु ने कहा -'यह तुम्हरी परीक्षा नहीं थी यह तुम्हारी दीक्षा थी.' 

जो अपने साथ अनावश्यक भार ले कर चलता है वह कुछ भी सीख -समझ नहीं पाता . 

अक्लमंद नौकर

सम्राट जहांगीर अपने इन्साफ के लिए बहुत मशहूर थे । एक बार उनका नौकर उनके निकट खड़ा होकर गिलास में शराब डाल रहा था कि एक बूंद शराब की जहांगीर पर गिर गई । जहांगीर को बहुत गुस्सा आया । उसी आवेश में उसने नौकर का सिर काटने का आदेश दे दिया ।

नौकर ने यह आदेश सुनकर पूरा ग्लास जहांगीर पर उड़ेल दिया । अब तो वह और भी क्रोधित हो गया और बोला,'' तुमने इतनी हिम्मत कैसे की?''

नौकर ने शांत स्वर में कहा, जहांपनाहा, आप अपने इंसाफ के लिए बहुत मशहूर हैं । मैं नहीं चाहता कि लोग आरोप लगाएं कि एक बूंद शराब के लिए बादशाह ने सिर काटने का हुक्म दे दिया । मैं आपके इन्साफ पर दाग नहीं लगने देना चाहता । इसलिए मैंने यह गुस्ताखी की।'' 

जहांगीर नौकर की अक्लमंदी पर दंग रह गया । उसने उसे इनाम दिया और अपने विश्वासपात्रों में शमिल कर लिया ।

बदूकें बो रहा हूं

एक बार सरदार किशन सिंह ने अपने खेत में आम के कुछ पौधे लगाए थे। एक दिन वह अपने 3-4 साल के लड़के को साथ लेकर खेत पर गए और पौधों का मुआयना कर रहे थे । लड़का वहीं खेलने लगा । खेलते-खेलते उसने मिट्टी में कुछ गाड़ा और 3-4 पौधे खड़े कर दिए । 

यह देख कर सरदार किशन सिंह ने ने पूछा, ''यह क्या कर रहे हो ?

'' बेटे ने जवाब दिया,'' बदूकें बो रहा हूं, जब ये आप के आमों की तरह बड़ी हो जाएंगी तो इनसे अंग्रेंजो को मारूंगा ।''

यह बालक बाद में सरदार भगत सिंह बना, जिसने अपने जीते जी कभी अंग्रेंजो को चैन से नहीं सोने दिया.

आप अपना पता दीजिये

एक व्यक्ति स्वामी विवेकानंद के प्रवचनों से बहुत प्रभावित हुआ .जब सभी लोग चले गए तो वह स्वामी जी के पास गया और बोला -' लगता है आपकी ईश्वर तक पहुँच है, क्या आप मुझे ईश्वर तक पहुंचा सकते है या उनका पता बता सकते है ?'

इस पर विवेकानंद ने कहा -'आप अपना पता लिखकर दे दीजिये जब भी ईश्वर को फुरसत होगी तो आपके घर भेज दूंगा.'

उसने तुरंत एक कागज पर अपने घर का पता लिख डाला और स्वामी जी को थमाते हुए बोला-'जरा जल्दी ही भेजिएगा.'

स्वामी जी ने उसे ध्यान से पूरा पढ़ा, पढने के बाद बोले- 'ये तो आप अपने ईंट-पत्थर से बने मकान का पता दे रहे है, आप अपना पता दीजिये की आप कौन है ? कहाँ है ? किस काम के लिए आपको भेजा गया है और आप क्या कर रहे है ? '

उस व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास हुआ स्वामी जी के उत्त्कृष्ट दार्शनिकता को अब वह समझ गया था . वह अब जान गया था कि मनुष्य का असली पता, जिसे वो कभी जानने या खोजने का प्रयास नहीं करता वो तो उसके अन्दर ही है जिसे खोज ले, पता कर ले तो ईश्वर से हर पल मुलाकात होती रहे . 

बाहर की चमड़ी

एक बार अष्टावक्र राजा जनक के सभा में गए . उनके हाथ पांव टेढ़े-मेढ़े थे और वो झुक कर भी चलते थे .उनका कूबड़ निकला हुआ था . उन्हें देखते ही राजा के सभी सभासद हंसने लगे . उन्हें हँसता देखकर अष्टावक्र ने राजा से कहा -"क्यों रे राजा ?तुने अपनी सभा में केवल चमारों को ही भर्ती कर रखा है?"

राजा ने तुरंत उत्तर दिया कि ये चमार थोड़ी है इनमें कोई ब्राह्मण है तो कोई ठाकुर है कुछ बनिये भी है.

अष्टावक्र ने बोला नहीं, सब के सब चमार है क्योंकि इन्हें सिर्फ चमड़ा ही नजर आता है इन्हें चमड़े का ही ज्ञान है.हमारे बाहर की चमड़ी को देखा पर हमारे अन्दर जो देखने लायक है इन्होने हमारे ज्ञान को नहीं देखा .इन्होने सिर्फ चमड़े को देखा और चमड़े को देखने परखने वाला तो चमार ही होता है. 

महानता की झांकी

बंगाल के एक छोटे से स्टेशन पर जब रेल रुकी तो एक युवक अपने छोटे से बक्से के लिए कुली को जोर-जोर से आवाज लगाया पर इतने छोटे स्टेशन पर कुली कैसे मिलता ? तभी एक अधेड़ उम्र का आदमी जो ये सब देख रहा था वह उसके पास चला आया. उस युवक ने उसको कुली समझकर पहले डांटा -'तुम लोग बहुत सुस्त हो जी मैं कब से चिल्ला रहा हूँ ,चलो जल्दी से इस बक्से को उठाओ . '

उस आदमी ने बिना कुछ कहे सुने बक्सा उठाकर उस युवक के पोछे चल पड़ा . घर पहुचने पर जब युवक ने पैसे देने चाहे तो तो वह आदमी बोला -'धन्यवाद मुझे पैसे नहीं चाहिए '

तभी घर में से उस युवक का बड़ा भाई निकला और उस आदमी को देखते ही आदर के साथ बोला -'नमस्कार विद्यासागर जी !'

उस युवक के तो होश उड़ गए तुरंत उसने उनके चरणों में लोटकर ईश्वरचंद विद्यासागर जी से माफ़ी माँगा. उसे उठाकर गले लगते हुए बोले-'भाई ! मेरे देशवासी अभिमान त्याग कर अपने हाथो से अपना काम स्वयं करे मेरी यही इच्छा है ,आगे से स्वावलंबी बनो ,यही मेरा मेहनताना है . '

ऐसे प्रसंग व्यक्ति को आत्मावलंबन हेतु प्रेरणा तो देते ही है, बड़ो की उस विनम्रता -निरहंकारिता को भी दर्शाते है जिसके कारण वे महान कहलाते है . 

आत्मविश्वास की डोर

जब बीमारी का पता चला तब वह शख्स 21 वर्ष का था, डॉक्टर ने कह दिया था कि वह 25 वर्ष से अधिक नहीं जी सकेगा यानी वह 4 वर्ष और जी सकता था। लेकिन आज 30 वर्ष से भी ज्यादा समय गुजर गये, वह सिर्फ न अपना कार्य कर रहे है बल्कि चलने और बोलने में नाकाम होने के बावजूद उन्होंने ऐसे कामों को अंजाम दिया जिसका लोहा पूरी दुनिया मानती है। उस व्यक्ति का नाम है " डॉक्टर स्टीफन हॉकिंग ."

ब्रह्मांड के कई रहस्यों को उजागर करने वाले ब्रिटेन के मशहूर वैज्ञानिक डा0 स्टीफन हॉकिंग विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक पेशेवर हैं. स्टीफन हॉकिंग सालों से ALS यानी Amyotrophic Lateral Sclerosis नाम की बीमारी से जूझ रहे हैं। जिसे मोटरन्यूरान भी कहते हैं। 

हॉकिंग विगत 40 वर्षों से व्हील चेयर में कैद हैं। चलने-फिरने में असमर्थ हैं। हाथ-पांव हिलना-डुलना तक बन्द कर चुके हैं। वे 26 वर्षों से बोल नहीं सकते हैं। आज वे स्पीच सिन्थेसाइजर की मदद से बोलते हैं। जिसको उनके लिये एक कम्पनी ने विशेष रूप से तैयार किया है। उनकी व्हील चेयर से एक लैपटॉप से जुड़ा हुआ है।महज कुछ बटन दबाकर वो अपनी बात लोगों तक पहुंचाते हैं।

आत्मविश्वास एवं इच्छाशक्ति के बदौलत कोई भी कार्य किया जा सकता है. ईश्वर डोर नहीं खींचता, आपकी डोर आपके हांथो में है, यह है आत्मविश्वास. 

कुछ भी स्थायी नहीं होता

एक नगर में एक साधू महात्मा पधारे थे। उस नगर के राजा ने जब ये बात सुनी तब उनहोंने साधू महात्मा को राजमहल पधारने के लिए निमंत्रण भेजा साधू जी ने राजा का निमंत्रण स्वीकार किया और राजमहल गए .

राजा ने उनके स्वागत में कोई कसार नहीं छोड़ा, महात्मा जी जब वहां से जाने लगे तब राजा ने उनसे विनती की और कहा - "महात्मन !कुछ सिख देते जाएँ"

तब साधू महात्मा ने उनके हाथों में दो कागज़ की बंद पर्ची देते हुए कहा - " पहला तब खोलना जब आप बहुत सुखी रहो आपके जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ हो, और दूसरा तब खोलना जब आप पर बहुत भारी संकट या मुश्किल आन पड़े". इतना कह कर साधू ने राजा से विदा ली.

राजा का सब कुछ अच्छा चल रहा था चारो तरफ सुख और वैभव से उसका राज्य जगमगा रहा था ,बस उसे अपने उतराधिकारी की चिंता खाई जा रही थी ,वो होता तो उससे सुखी इंसान और भला कौन होता ? कुछ महीनों बाद उसके यहाँ पुत्र ने जनम लिया. अब राजा के जीवन में बस खुशियाँ ही खुशियाँ थी .उसे उस महत्मा की बात याद आयी.उसने पहली पर्ची खोला ,

उसमे लिखा था -"ऐसा नहीं रहेगा". 

कुछ ही सालों बाद राजा के नगर पर दुसरे राजा ने आक्रमण कर दिया ,इस युद्ध के दौरान सारी सम्पति और शाही खजाना खर्च हो गया,राजा पर भारी संकट आ पड़ा .तब राजा को वो साधू महात्मा की दी हुई दूसरी पर्ची याद आयी.उनहोंने पलभर की भी देर किए बगैर उस पर्ची को खोला. 

इस बार उस में लिखा था - " यह भी नहीं रहेगा" 

राजा सब समझ गए. अभी उनका बुरा वक्त चल रहा है. यह ज्यादा दिन नहीं रहेगा. 

सुख हो या दुःख कुछ भी स्थायी नहीं होता इसलिए सुख में इतराना नहीं चाहिए और दुःख में घबराना नहीं चाहिए.

मन की पीड़ा

एक बार राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन जब सीनेट की बैठक में भाग लेने जा रहे थे तो रस्ते में उन्हें कीचड़ में फंसा एक सूअर दिखा जो बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा था. 

राष्ट्रपति ने गाड़ी रुकवाई और सूअर को बाहर खींचकर निकाल दिया. इस प्रयास में उनके कपड़ों पर कीचड़ के छीटें पड़ गए. विलम्ब न हो इसलिए वे उन्ही कपड़ों में सीनेट पहुँच गए.

सदस्यों ने जब उनके कीचड़ सने कपड़े देखे तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ. पूरी घटना पता चलने पर उन्होंने राष्ट्रपति की बड़ी प्रशंसा की. 

अपनी प्रशंसा से सकुचाये लिंकन ने कहा, 'मित्रों, मैंने सूअर को पीड़ा से मुक्त किया या नहीं यह तो भगवान जाने लकिन दुःख देखकर मेरे मन में जो पीड़ा हुई थी उसे दूर करने के लिए ही मैंने उसे कीचड़ से बाहर निकाला था.'

कर्म को सौभाग्य मानो

एक व्यक्ति बन रहे मंदिर के पास से गुजर रहा था ,वहा कुछ मजदूर काम करते हुए दिख रहे थे .उसने एक मजदूर से पूछा ,'क्या कर रहे हो ?' मजदूर ने खीझते हुए ऊँचे स्वर में बोला ,' भाग्य में पत्थर तोडना ही तो लिखा हुआ है सो पत्थर तोड़ रहा हूँ '.

थोड़ी दूर पर एक और मजदूर था उसने उसके नजदीक जाकर उसी प्रश्न को पूछा ,तो दुसरे मजदूर ने बहुत उदासी और निराश भाव से बोला ,' अपना रोजी रोटी कमा रहा हूँ '.

अभी भी उस व्यक्ति असमंजस में था कि यहाँ क्या हो रहा है इसलिए उसने फिर वही काम कर रहे तीसरे मजदूर से पूछा कि 'क्या कर रहे हो ?'

तीसरा मजदूर बड़ा ही उत्साहित और उर्जावान लग रहा था ,उसने बड़े ही आनंदित मुद्राभाव में बोला, ' प्रभु का मंदिर बना रहा हूँ इसी बहाने मेरे श्रम की चार बुँदे प्रभु के काम आ जाएगी. ' 

जीवन में कुछ लोग पहले मजदूर की तरह है जो सिर्फ पत्थर तोड़ते है -मजबूरीवश काम करते है ,कुछ दुसरे मजदूर की तरह है जो रोजी रोटी कमा रहे है -वे लाचार मशीन की तरह काम कर रहे है और कुछ इस तरह के लोग भी मिलते है जो तीसरे मजदूर की तरह अपने कर्म को अपना सौभाग्य और पूजा मान कर पुरे समर्पण से अपना कार्य करते है और तब यही काम उनके कामयाबी का द्वार खोलता है . 

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