1) भगवान की दुकान प्रातः चार बजे से छः बजे तक ही खुलती है।
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2) भगवान का होकर भगवान के नाम का जप करना चाहिये।
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3) भगवान को घट-घट का वासी और न्यायकारी मानकर पापों से हर घडी बचते रहना ही सच्ची भक्ति है।
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4) भगवान के खेत ( दुनिया ) में जो बोओगे वही तो काटोगे।
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5) भगवान के सामने सच्चे हृदय से अपने दोष स्वीकार करने से उनका परिमार्जन हो जाता है।
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6) भगवान शिव के वचन हैं कि गुरुदेव का ध्यान सभी तरह के आनंद का प्रदाता हैं । उससे सांसारिक सुखों के साथ-साथ मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। इसलिए प्रत्येक शिष्य का यह पावन संकल्प होना चाहिए कि ‘‘ मैं अपने सद्गुरु का ध्यान करूँगा।’’
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7) भगवान शिव के मस्तक से गंगा का प्रवाहित होना उत्कृष्ट विचारधारा के प्रवाह का संकेत है।
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8) भगवान हमेशा मनुष्यों के कर्मो की परीक्षा लिया करते हैं कि इस के विचारों में कुछ सच्चाई हैं या नकलीपन ही है।
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9) भगवान पर विश्वास का अर्थ हैं - अपने पुरुषार्थ और उज्ज्वल भविष्य पर विश्वास करना।
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10) भगवान तभी सहायता करते हैं जब मानवीय पुरुषार्थ समाप्त हो जाते है।
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11) भगवान आदर्शो का समुच्चय है।
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12) भगवान् की कृपा को देखो, सुख-दुःख को मत देखो। माता कुन्ती ने विपत्ति का वरदान माँगा था।
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13) भगवान् की वाणी गीता हैं, और भक्त की वाणी रामायण है। शिक्षा दो प्रकार से दी जाती हैं-कहकर और करके। गीता में कहकर शिक्षा दी गयी है और रामायण में करके शिक्षा दी गयी है।
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14) भगवान् के प्रत्येक विधान में प्रसन्न रहने वाले के भगवान् वश में हो जाते है।
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15) भगवान् ने सिद्ध (निषादराज), साधक (विभीषण) और संसारी (सुग्रीव)-तीनो को अपना मित्र बनाया है।
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16) भगवत्प्राप्ति के लिये मनुष्य को पात्र बनना चाहिये।
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17) भलाई करना कर्तव्य नहीं, आनन्द हैं। क्योंकि वह हमारे सुख में वृद्धि करता है।
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18) भलाई चाहना पशुता हैं, भलाई करना मानवता है, भला होना दिव्यता है।
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19) प्यार, प्यार और प्यार यही हमारा मन्त्र हैं। आत्मीयता, ममता, स्नेह और श्रद्धा यही हमारी उपासना है।
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20) पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों का आधार गाय को माना जाता है।
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21) पक्षपात से गुण दोष में और दोष गुण में बदल जाते है।
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22) पढे-लिखों के वास्ते, खुले हजारों रास्ते।
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23) पढने से गुनना श्रेष्ठ हैं, कहने से करना श्रेष्ठ हैं, ज्ञान से अनुभव श्रेष्ठ हैं, शब्द से अनुभूति श्रेष्ठ हैं, भावना से कर्तव्य श्रेष्ठ हैं, दान से दक्षिणा श्रेष्ठ हैं, दमन से संयम श्रेष्ठ हैं, त्याग से अनासक्ति श्रेष्ठ हैं, स्मरण से ध्यान श्रेष्ठ हैं, सत्य से अहिंसा श्रेष्ठ हैं, और अपनी आत्मा के समान ही सबकी आत्मा समझना श्रेष्ठ है।
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24) पंचांग के पाँच अंग - योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि।
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