एक मछुआरा हमेशा मछली पकड़ने जाता। एक दिन वह भोर होने से पहले ही समुद्र पर पहुँच गया। रास्ते में उसे एक पत्थरों से भरी हुई थैली मिली। उसने उसे उठा ली। वह पत्थरों को समुद्र में फेंककर आनन्द लेने लगा। तभी एक सज्जन उसके पास से गुजरे। वह अंतिम पत्थर फेंकने वाला ही था कि सज्जन ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा- मूर्ख, यह पत्थर नहीं हीरा हैं हीरा। यह सुनते ही वह चोक गया। हे भगवान, यह मैंने क्या कर दिया ? हाथ में आई हुई किस्मत को फैंक दिया। वह रोने लगा। सज्जन ने कहा-भाई, दुखी मत हो, भगवान को शुक्रिया दे कि उसने अंतिम हीरा हाथ से जाते-जाते बचा दिया। इसको बेच और जिंदगी का आनन्द उठा। जो चला गया उसका रोना रोने की बजाय जो हैं उसका आनन्द उठाओ।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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