जिज्ञासु की पहली पात्रता है- सत्यनिष्ठा । सत्यकाम अज्ञात कुल के थे, पर सुशील थे। वे महर्षि गौतम के पास ब्रह्मज्ञान ज्ञान हेतु पहुँचे । सत्यकाम ने कुल-गौत्र का नाम पूछे जाने पर यही कहा कि मेरी माँ यौवनवस्था में निराश्रित थी । कई गृहस्थों के यहाँ काम किया । मेरी उत्पति किससे हुई , मुझे नहीं मालुम । मेरा नाम सत्यकाम है, माँ का जाबाला । महर्षि ने सत्यकाम को जाबाल नाम देकर , ब्रह्माविद्या में ऐसे साधक को दीक्षित कर, नया इतिहास रचा ।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य