सोमवार, 7 मार्च 2011

आज के प्रज्ञावतार की, युग-देवता की अपील


गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ 
ॐ र्भूभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। 
देवियों! भाईयों!! 
मनुष्य के जीवन मे अनेक प्रकार के सौभाग्य आते हैं और उन सौभाग्यों के लिए आदमी सदा अपने आपको सराहता रहता है । ऐसे सौभाग्य कभी-कभी ही आते है, हमेशा नहीं । शादी-ब्याह कभी-कभी ही होते हैं, रोज नहीं । 'कन्वोकेशन' में डिग्री रोज नहीं मिलती, वह जीवन में एकाध बार ही मिलती है, जब हाथ में डिग्री लिए और सिर पर टोप पहने हुए फोटो खिंचवाते हैं । सौभाग्य के ऐसे दिन कभी-कभी आते हैं, उनमें लाटरी खुलना और कोई ऊँचा पद पाना भी शामिल है । लेकिन आदमी का सबसे बड़ा सौभाग्य एक ही है कि वह समय को पहचान पाए । आदमी समय को पहचान ले तो मैं समझता हूँ कि इससे बड़ा सौभाग्य दुनियाँ में कोई हो ही नहीं सकता । खेती-बाड़ी सब करते हैं, लेकिन जो किसान वर्षा के दिनों सही समय पर बीज बो देते हैं, वे बिना मेहनत किये अपने कोठे भर लेते हैं । गेहूँ की फसल लेने के लिए जो समय को पहचानकर बीज बोते हैं, वे अच्छी फसल कमा लेते हैं, अगर बीज बोने का समय निकल जाए तब फसल की पैदावार की आप उम्मीद नहीं कर सकते । शादी-ब्याह की एक उम्र होती है और जब समय निकल जाता है, तो आदमी को कई बार बहुत हैरानियाँ बर्दाश्त करनी पड़ती है, लगभग असफलता के नजदीक पहुँच जाता है वह । जो आदमी समय को पहचान लेते हैं, वे बहुत नफे में रहते हैं ।गाड़ियों में रिजर्वेशन होता है । जो समय पर पहूँच जाते हैं, लाइन में लग जाते हैं, उन्हें गाड़ी में सीट मिल जाती है । जो टाइम को पास कर देते हैं, निकल जाने देते हैं, वे बहुत हैरान होते हैं । 

अभी मैं समय की महत्ता बता रहा था आपको । किसलिए बता रहा हूँ? इसलिए कि जिस समय में हम और आप रह रहे हैं, वह ऐसा शानदार समय है कि आपकी जिन्दगी में और इतिहास में फिर नहीं आएगा । आप लोगों की जिन्दगी में तो दूर आने वाले कई पीढ़ियाँ भी इसके लिए तरसती रहेंगी और कहेंगी कि हमारे बाप-दादे ऐसे समय में पैदा हुए थे । जो इसका फायदा उठा लेंगे उनकी, घर-परिवार की सराहना होती रहेगी, समाज में, इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा और जो सनक में बैठे रहेंगे, भूल में बैठे रहेंगे वे स्वयं पछताते रहेंगे और बाद में उनकी पीढ़ियाँ पछताती रहेंगी और कहेंगी कि ऐसे शानदार समय में हमारे बाद-दादे ने क्यों मुनासिब कदम नहीं उठाए? यह कैसा शानदार समय है । चलिए मैं इसके कुछ आपको उदाहरण देना चाहता हूँ, जिससे कि आप समझ सकें कि यह कैसा समय है और इस शानदार समय में आप थोड़े-से मुनासिब कदम बढ़ा सकते हों तो मजा आ जाएगा । 

आपको मैं अवतार के किस्से सुनाता हूँ । जब कभी भी अवतार हुए हैं, जब कभी भी महापुरूष हुए हैं, तब उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले लोगों को मैं बहुत भाग्यवान कहता हूँ और बहुत समझदार मानता हूँ । उनमें से एक का नाम था हनुमान । हनुमान कौन थे? सुग्रीव के वफादार नौकर का नाम था हनुमान । सुग्रीव को जब उसके भाई ने मार-पीट कर भगा दिया, बीवी-बच्चे छीन लिए, तब सुग्रीव अपने वफादार नौकर के साथ ऋष्यमूक पूवर्त पर रहने लगे । एक समय आया जब रामचन्द्र जी आए तो सुग्रीव ने हनुमान को भेजा था । हनुमान जी वामन-ब्राह्मण का रूप बनाकर उनके सामने गए थे कि कहीं ऐसा न हो कि हमारे साथ मारपीट होने लगे । तो क्या हनुमान जी कमजोर थे? न होते तब बालि के साथ लड़ाई की होती और अपने बॉस की बीवी को नहीं छिनने दिया होता और अपनी जायदाद नहीं छिनने दी होती । लेकिन जब हनुमान जी ने समय को पहचान लिया और रामचन्द्र जी के कन्धों से कन्धा मिलाया । कदम से कदम मिलाया तो क्या आप समझ सकते हैं कि किसी महत्वपूर्ण शक्ति के साथ कन्धा मिलाने की क्या कीमत हो सकती है? क्या फायदा हो सकता है? आप तो अन्दाज नहीं लगा पा रहें हैं, लेकिन हनुमान ने लगा लिया था वह हिम्मत दिखाइ थी, जो आदर्शों को जीवन में उतारने के लिए आवश्यक है । आदर्शों को पालन करने के लिए शक्ति की जरूरत नहीं होती है, साधनों की भी जरूरत नहीं है । साधन तो आप सबके पास है, पर अध्यात्म को हनुमान जी ने पकड़ लिया और पकड़ने के बाद में रामचन्द्र जी से कहा कि हम आपके काम आएँगे और आपकी मदद करेंगे । बस, यह शानदार हिम्मत हनुमान जी ने दिखाई और उस समय को पहचानने के बाद में आपको नहीं मालूम वे शक्ति के स्रोत बन गए और गजब के काम करने लगे । पहाड़ उखाड़ने लगे, समुद्र छलाँगने लगे । समुद्र छलाँगने लगे और लंका में रावण और उसके सवा दो लाख राक्षसों को चैलेंज करने लगे । कुम्भकरण जैसों के साथ हनुमान जी अकेले लड़ने लगे । 

क्यों साहब, क्या बात थी कि हनुमान जी में इतनी ताकत कहाँ से आ गई? यह वहाँ से आ गई जहाँ से उन्होंने आध्यात्म को अपने जीवन में उतार लिया था । अध्यात्म जीभ की नोक तक, पूजा की चौकी तक सीमित नहीं रहता । अध्यात्म उस चीज का नाम है याद रखना-'ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत को अध्यात्म कहते हैं ।' इससे कम भी कोई अध्यात्म नहीं है और इससे ज्यादा भी कोई अध्यात्म नहीं है । हनुमान जी ने वही अध्यात्म ग्रहण कर लिया । पूजा की थी, अनुष्ठान किया था, जप-तप किया था? नहीं, तो फिर कैसे हो गया? ऊँचे उद्देश्यों के लिए भगवान के कन्धे से कन्धा मिलाकर वे चल पड़े थे और निहाल हो गए । इससे बड़ी कोई तपस्या नहीं होती है । नल-नील ने पत्थरों को पुल बनाया था, जो पानी पर तैरता था । इतने बड़े समुद्र पर पत्थरों से ऐसा पुल बना दिया था कि जिसमें न पाये लगे हुए थे, न झूला लगा हुआ था, न गर्डर फँसे थे और न सीमेण्ट की जरूरत हुई । ऐसे ही खाली पत्थर फेंकते गए और उनका बन गया पुल । क्यों साहब, यह हो सकता है? हाँ यह हो सकता है । कैसे हो सकता है? ऊँचे उद्देश्यों के लिए, खासतौर से उस समय जबकि भगवान अवतार लिया करते हैं, तब जो आदमी उनके कन्धे से अपना कन्धा मिला लेते हैं, वे शानदार हो जाते हैं और अपनी भूमिका निभाते हैं । रीछ-वानरों ने भी भगवान की सहायता के लिए वही काम किए थे । लकड़ी, ईंट-पत्थर ढोकर लाते और नील-नील के पास जमा करते जाते थे । क्यों, साहब, यह कोई बड़ा काम था क्या, बताइए? कोई काम नहीं था, लेकिन भगवान के अवतार के साथ, उनकी क्रिया-पद्धति के साथ जुड़ जाने की वजह से वे रीछ-बन्दर भी न जाने क्या से क्या हो गए? हम उनकी जय-जयकार करते हैं रीछ-बन्दरों की । उनकी क्या विशेषता थी? एक तो कि उन्होंने समय को पहचान लिया कि यह सही समय है । सीताजी वापस आ जाती तब कोई हनुमान कहता कि हम तो रामचन्द्र की सेना में भर्ती होंगे और सीता को तलाश करके लाएँगे । यह मौका हमको दीजिए । तब रामचन्द्र जी यह कहते कि नहीं, हनुमान भाईसाहब, अब समय निकल गया । आप समय भी नहीं देखते क्यो? ऐसे समय कभी-कभी ही आते हैं । 
इसी तरह गिलहरी ने क्या किया था? अपने बालों में बालू भरकर लाती और समुद्र में पटक देती थी । बालों में बालू भर लेना कोई मुश्किल और बड़ा काम नहीं है । गिहहरियाँ ऐसे ही घुमती रहती हैं, बालू में बैठी रहती हैं और बालू भर जाती है फिर क्या खास बात थी उसमें? यह थी कि उसने समय को पहचान लिया था कि अब भगवान की जरूरत में, आवश्यकता में मदद करनी चाहिए । यह गिलहरी के लिए सौभाग्य का दिन था । भाई साहब वह कितनी शानदार हो गई भगवान का काम करने से आप नहीं जानते । रामचन्द्र जी ने उठा लिया और छाती से लगाया, उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगे । उससे बहुत मुहब्बत की । किसके लिए? बालू के लिए । नहीं राई भर बालू से क्या होता है? उन्होंने सिद्धान्तों के प्रति उसकी हिम्मत के लिए, निष्ठा के लिए, उसकी जुर्रत के लिए उसको प्यार किया । मैंने सुना है कि जो गिलहरी रामचन्द्र जी की सहायता करने थी, उसकी पीठ पर उन्होंने प्यार से अपनी अँगुलियाँ फिराई थी और वे धारीदार निशान आज भी गिलहरियों की पीठ पर पाए जाते हैं । धन्य हो गई थी वह गिलहरी जो रामचन्द्र जी के लिए बालू लेकर आई थी । उसने समय को पहचान लिया था । समय को आप नहीं जानते क्या? समय को आप नहीं पहचान सकते क्या? 

मित्रों! भगवान जब भी आते हैं तो उसके कई मकसद होते हैं । एक तो आपने पहले ही सुन रखा है कि वह धर्म की स्थापना करने के लिए और अधर्म का नाश करने के लिए आते हैं । यह दो मकसद तो आपको मालूम ही है, रामायण में भी आपने पढ़ा है, सब जगह पढ़ा है । यह दो ही बातें पढ़ी हैं न आपने, अच्छा तो एक और बात हमारी ओर से आप जोड़ लीजिए । रामचन्द्र जी ने या कृष्ण भगवान ने अपनी ओर से तो नहीं कही है, लेकिन हम अपनी ओर से कहते हैं-एक तीसरी बात । क्या कहते हैं? जो सौभाग्यशाली को, उनके सौभाग्य को चमका देने के लिए, निष्ठावानों को, अपने भक्तों के सिर और माथे पर रखने के लिए भगवान आते हैं । उनको उछाल देने के लिए भगवान् आते हैं । उनको इतिहास में अजर-अमर बना देने के लिए भी भगवान आते हैं । जो इस मौके का पहचान लेते हैं वे धन्य हो जाते हैं । केवट को उन्होंने धन्य बना दिया । केवट न क्या काम किया था? नाव में बिठाकर के रामचन्द्र जी को पार लगा दिया था बिना कुछ कीमत लिए । तो गुरुजी चलिए, हम भी आपको कार में बिठाकर घुमा लाएँ और आप हमें केवट बना दीजिए । नही भाईसाहब अब मुश्किल है । अब हम नहीं बना सकते । तब वे खास मौके थे, तब आपने पहचाने नहीं और अब शिकायत करते हैं, अपने कर्म को दोष देते हैं कि ऐसा वक्त आया था और हम कुछ कर नहीं सके । मित्रों! शबरी ने भगवान को बेर खिलाए थे, जिसकी प्रशंसा करते-करते हम थकते नहीं । भगवान ने शबरी से कहा-शबरी हम भूखें हैं । भगवान को जरूरत पड़ी थी, वे भूखे थे । आपकी अपनी जरूरत है, पर कभी-कभी भगवान को भी जरूरत होती है और मनुष्य के लिए वही सौभाग्य के वक्त हैं । शबरी ने मौके को पहचान लिया था और बेर खिलाए थे । केवट ने भी भगवान की जरूरत को पहचान लिया था कि उनके पास नाव नहीं है । वे इन्तजार में खड़े हुए हैं कि कोई आए और हमको नाव में बिठाकर पार लगा दे । 

मित्रों! आदमियों की अपनी जरूरत होती है, यह तो मैं नही कहता कि जरूरत नहीं होती, पर कभी-कभी भगवान को भी आदमियों की जरूरत होती है । हमेशा नहीं कभी-कभी जरूरत पड़ती है और कभी-कभी को, मौके का जो पहचान लेते हैं, वे गिलहरी के तरीके से, केवट के तरीके से, शबरी के तरीके से और रीछ-वानरों के से उनकी सहायता के लिए चल पड़ते हैं और धन्य बन जाते हैं । गिद्धों को आप जानते हैं, जब वे बूढ़े हो जाते हैं तो आपस में लड़ाई-झगड़ा करने लग जाते हैं । गिद्धों का मरना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन एक गिद्ध ने समय को पहचान लिया था कि हमारी जरूरत है । किसको? सीताजी को जरूरत है कि कोई हमारी सहायता करे और चल पड़ा और धन्य हो गया । क्यों साहब, हम भी बूढ़े हो जाएँ और ऐसा कुछ करें? नहीं भाई साहब, अब वह वक्त चला गया, आप समय को तो पहचानते नहीं । भगवान कभी-कभी हाथ पसारता है । आदमी तो भगवान के सामने हमेशा हाथ पसारता रहता है, पर भगवान आदमी के सामने कभी-कभी हाथ पसारता है । और जब कभी वह हाथ पसारता है, तो उसकी हथेली पर कोई भी कुछ रख देता है तो रविन्द्रनाथ की कविता के मुताबिक उसकी झोलियाँ सोने से भर जाती हैं । टैगोर की एक कविता है-''मैं गया द्वार इकट्ठी कर झोली गेहूँ के दानों से, एक आया भिखारी, उसने पसारा हाथ । मैंने एक दाना उसकी हथेली पर रखा, चला गया भिखारी । घर आया तो मैंने अनाज की झोली को पलटा । उसमें एक सोने का दाना रखा हुआ था । '' टैगोर ने बंगला गीत में गाया-'मैं सिर धुन-धुन के पछताया कि मैंने क्यो नही अपनी झोली के सारे दाने उस भिखारी को दे दिए ।' उस भिखारी से मतलब भगवान से है, समय से है । समय-समय पर कभी भगवान हाथ पसारते हैं और जो कोई उस समय को, मौके को पहचान लेते हैं और भगवान के पसारे हुए उस हाथ पर कुछ रख देते हैं, वे न जाने क्या से क्या हो जाते हैं? 

भगवान के और किस्से सुनाऊँ आपको? वक्त बहुत चला गया, इसलिए और भगवान की तो मैं नहीं कहता, पर एक भगवान, उसकी बात मैं कहता हूँ । उसने भी हाथ पसारा था । उसका नाम था-गाँधी । गाँधी जी ने भी हाथ पसारा था और उनकी हथेली पर जिन लोगों ने रखा था, उनका क्या-क्या हो गया आपको मालूम नहीं है । वे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी हो गए, ताम्रपत्रधारी हो गए और तीन-तीन सौ रुपये पेंशन पाने लगे । यह खानदान त्योगियों का खानदान है । मित्रो! मिनिस्टर उसी में हुए हैं । अब तो बात दूसरी है, लेकिन शुरू के दिनों में जब आजादी आई थी तो सिर्फ वे ही मिनिस्टर बने थे, जो स्वाधीनता सेनानी थे । आप वक्त तो नहीं पहचानते, आप भगवान को नहीं जानते कि वह कभी-कभी हाथ पसारता है । जिस समय हमने आपको बुलाया है, आप यकीन रखें यह वह समय है, जिसमें दुनिया बेतरीके से बदल रही है । आप तो यह भी नहीं देख पाते कि पृथ्वी घूम रही है, पर आँखें कहती हैं कि घूम रही होती तो हमारा मकान पूर्व से पश्चिम की ओर हो जाता । किसी को अपनी मौत कहाँ दिखाई देती है? इसी तरह आपको जमाना बदलता हुआ दिखता है क्या? नहीं दिखाई पड़ता । आपको भगवान का चौबीसवाँ अवतार होता हुआ दिखाई पड़ता है क्या कि किस बुरी तरीके से गलाई-ढलाई हो रही है । आपको दिखाई न पड़ता हो तो देखिए कि हिन्दूस्तान का ही पिछले बीस-तीस साल में क्या हो गया? कभी यहाँ राजा छाए हुए थे । तीन चौथाई हुकूमत राजाओं की थी । अब है कोई राजा? पच्ची साल में सब तबाह हो गए । जागीरदार और जमींदार देखे हैं आपने, न देखे हों तो राजस्थान चले जाइए । वहाँ जगह-जगह किले, गाँव-गाँव किले, जो अब खण्डहर के रूप में पड़े हैं, उन्हीं के अवशेष है । सब कुछ समय बहा ले गया । राजा भी चले गए , जमींदार भी चले गए और कौन चले गये । साहूकार भी चले गये जो कभी गिरवी रखने और अच्छा-खासा ब्याज कमाने का धन्धा किया करते थे । बीस साल में बहुत कुछ बदल गया । 

मित्रों! इन दिनों दुनियाँ दो तरीके से बदल रही है । इसे कौन बदल रहा है? बीसवीं सदी का अवतार, जिसे हम प्रज्ञावतार कहते हैं । आदमी की अक्ल बहुत ही वाहियात है । इस अक्ल ने सारी दुनिया को गुत्थियों में धकेल दिया है । जितनी ज्यादा अक्ल बढ़ी है, संसार में उतनी ही ज्यादा हैरानी बढ़ी है । आप कॉलेजों में, विश्वविद्यालयों में चले जाइए । पहले वहाँ अराजक तत्त्व, अवांछनीय तत्त्व कहाँ रहते थे, पर देखिए सारी खुराफातें कहाँ से जन्म ले रही हैं? आपको बदलता हुआ जमाना दिखाई नहीं पड़ता, आजकल बहुत हेर-फेर हो रहा है । इस अक्ल ने दुनिया को हैरान कर दिया है । इस अक्ल की धुलाई करने के लिए एक नई अक्ल पैदा हो रही है, जिसका नाम है-'महाप्रज्ञा' । चौबीसवाँ अतवार प्रज्ञा के रूप में जन्म ले रहा है । आपको तो नहीं दिखाई पड़ता होगा शायद, पर आप हमारी आँखों में आँखें डालकर देखें । हमारी आँखे बहुत पैनी है और बहुत दूर की देखने वाली है । हमारी आँखों में टैलिस्कोप लगे हुए हैं । आप आइए जरा हमारी आँखों में आँखें डालिए, फिर देखिए क्या हो रहा है? जमाना बेहद तरीके से बदल रहा है । यह कौन बदल रहा है? भगवान बदल रहा है । भगवानके अवतार जब कभी भी दुनियाँ में हुए हैं, तब भक्तजनों को अपना सौभाग्य चमकाने का मौका मिल गया है । ऊपर हमने भगवान राम का उदाहरण दूँ आपको? भगवान के अवतारों के साथ में जिन्होंने थोड़े से भी अहसान कर दिए, वे धन्य हो गए, भगवान तो क्या महापुरूषों के साथ भी जिन्होंने कन्धा लगा दिया वे राजगोपालाचार्य हो गए, विनोबा हो गए । उनका नाम पटेल हो गया, नेहरू हो गया, जाकिर हुसेन हो गया, राधाकृष्णन हो गया, राजेन्द्र बाबू हो गया । जिनका नाम मैं गिना रहा हूँ, वे सभी हिन्दुस्तान के बादशाह हो गए । वे इसलिए बादशाह हुए कि कोई खास अवतार युग को बदलने आया है और उसी की बिरादरी में शामिल हो गए, उसके कन्धे से कन्धा मिलाकर साथ-साथ चलने की अपनी जुर्रत-हिम्मत दिखा दी । 

आज का वक्त भी ऐसा ही है आप देखिए न । उस अवतार के साथ अगर आप कन्धे मिला सकते हों, चरण मिला सकते हों, आप उसके पीछे चल सकते हों, उसका भार बँटा सकते हों तो मैं आपसे हर आदमी से कहूँगा कि अगले दिनों आप इतने शानदार, इतने भाग्यवान व्यक्ति कहलाएँगे कि आपका सौभाग्य आपके लिए सहायक ही देगा । हमने क्या किया है? आप क्या समझते हैं कि हमने किताबें लिखी हैं, लेख लिखे हैं, लेक्चर देते हैं, पूजा करते हैं, अरे भाईसाहब, पूजा तो हम चार ही घण्टे करते हें, पहले छह घण्टे करते थे, पर अब चार ही घण्टे करते हैं । आपको हम ऐसे आदमी बता सकते हैं, जो हमसे चौगुनी पूजा करते हैं । दुनिया में और दिल्ली में चले जाइए वहाँ ढेरों के ढेरों आदमी रहते हैं और अपने बाल-बच्चों का पेट पालते हैं । स्कूलों में, कॉलेजों में लेक्चर होते हैं, लेक्चर देना उनका धन्धा ही है, रोटी ही इस बात की मिलती हे उनको । फिर आपको इस तरह के मौके क्यों मिलते चले जा रहे हैं? क्या वजह है इसकी? इसकी एक ही वजह है कि हमने यह पहचान लिया है कि भगवान का अवतार होता हुआ चला आ रहा है । अवतार के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर, उसके कदम से कदम बढ़ाकर चलने का हमने निश्चय कर लिया कि साथ-साथ रहेंगे । उसके साथ अपनी जान की बाजी लगाएँगे । तब परिणाम क्या होता है? वही जो आग-लकड़ी का होता है । दो कौड़ी की नाचीज लकड़ी जब आग के साथ मिल जाती है तो उसकी कीमत आग के बराबर हो जाती हे । जिस लकड़ी को कल बच्चे उछाले फिर रहे थे, आग के साथ रिश्ता हो जाने की वजह से आज वही कहती है कि हमें छूना मत, आप हमारा इस्तेमाल मत करना । आज आपने यदि हमको फेंक दिया तो हम आपके छप्पर को जला देंगे, गाँव को जला देंगे । एक घण्टे पहले मैं लकड़ी थी, पर अब मैं आग हूँ । तो आग कैसे हो गई आप? हमने एक ही हिम्मत की है कि अपने आपको आग के साथ घुला दिया है, मिला दिया है । अगर आप भी ऐसा कर सकते हों तो मैं आपको सौभाग्यवान कहूँगा । 

साथियों! भगवान तो अपना काम करेंगे ही, आप करें तो, न करें तो भी । तो क्या रामचन्द्र जी रावण को मार सकते थे? बिल्कुल मार सकते थे । रामचन्द्र जी में इतनी शक्ति थी कि रावण सहित एक-एक राक्षस को मार डालते और अपने बलबूते पर सीता जी को छुड़ा लाते । लेकिन उनको श्रेय देना था । भक्तों को श्रेय ऐसे ही मौके पर होती है और वे समय शानदार होते हैं । इम्तहान रोज-रोज कहाँ होते हैं? भक्तों के भी इम्तहान हमेशा नहीं होते, बहुत दिनों बाद होते हैं । जिसमें आपको बुलाया गया है, उसमें नवरात्र का अनुष्ठान करने के लिए ही आपको नहीं बुलाया है । आप अनुष्ठान करते हैं बहुत अच्छी बात है । यहाँ गंगा का किनारा, हिमालय की गोद, गायत्रीतीर्थ के पवित्र वातावरण मे आप गायत्री का जप कर रहे, यह बहुत ही प्रसन्नता और सफलता की बात है । पर आप याद रखिए हमने केवल अनुष्ठान करने के लिए ही आपको नहीं बुलाया है । हमारे मकसद बड़े हैं और वे यह है कि आप ऐसे सौभाग्य वाले समय में क्या कुछ लाभ उठा सकते हैं? क्या आप समय को पहचानते हैं? हम इसीलिए बुलाते हैं और हर एक आदमी से बार-बार यही सवाल पूछते रहते हैं कि क्या आप इन शानदार समय को पहचान सकते हैं? क्या आपकी अक्ल इतनी मदद करेगी कि आप इन शानदार समय को पहचान लें? अगर आपकी अक्ल इतनी सहायता कर दे और यह बता दे कि यह बहुत ही शानदार समय है, तो फिर हम आपको एक और सलाह देते हैं कि ऐसे वक्त आप एक हिम्मत कर डालना । कौन-सी हिम्मत? आप भगवान की माँग को तलाश करें और उसको पूरा करने की कोशिश करें । भगवान की भी कुछ माँगे होती हैं । उन्होंने आप से भी कुछ माँग है । उन माँगों को पूरा करने के लिए जरा आप कोशिश करें तो मजा आ जाए । 

क्या माँगे हैं भगवान की? आप अखण्ड-ज्योति के सब पाठक हैं और जानते हैं कि प्रज्ञावतार ने क्या माँगा है? प्रज्ञावतार ने यह माँगा है कि हम लोगों के दिमागों की सफाई करें, विचारों की सफाई करें । प्रज्ञा इसी का नाम है । आदमियों के दिमाग पैने तो हो गए हैं, अक्ल तो बहुत पैनी हो गई है । अक्लमन्द तो इतने हो गए हैं कि आप देखेंगे तो हैरान रह जायेंगे । अक्लमन्द आदमियों ने जहाँ एक ओर बड़ी-बड़ी इमारतें बनाई है, बड़े-बड़े पुल बनाए हैं, बाँध बनाए हैं, वही दूसरी ओर इन्ही अक्लमंदों ने लोहा, सीमेन्ट सबके सब हजम कर लिए हैं । जहाँ भी, जिस भी डिपार्टमेंट में चले चाइए सब जगह अक्लमन्द, लोग मिलेंगे । बेअक्ल लोग तो बेचारे चप्पल चुरा सकते हैं । अक्लमन्द लोगों ने सारी दुनियाँ को धोखा दिया है । दुनियाँ का सफाया करने की पूरी जिम्मेदारी अक्लमन्दों की है । हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का बँटवारा कराकर लाखों आदमियों को खून करा देने की जिम्मेदारी अक्लमंदों की ही है । आम बेचने वालों की नहीं । यह सब बड़े दिमाग वालों की है । इसलिए बड़े दिमाग वालों के मस्तिष्क की सफाई करने के लिए ही तो ऐसी लहर आ रही है, जो दुनिया में सोचने के तरीके को बदल देगी । प्रज्ञावतार इसी का नाम है । प्रज्ञावतार की क्या माँगें है, इसको हम बराबर छापते रहे हैं । इसको फिर से कहने की जरूरत नहीं है, पर प्रज्ञा अभियान के रूप में आप इस लहर को समझ सकते हैं । यह प्रज्ञा अभियान इन्सान का नहीं है, अगर इनसान का होता तो हमारे जैसे आदमी इसके लिए कमजोर पड़ते । लेकिन उस महाशक्ति का काम करने के लिए जब हम आमादा हैं तो फिर आप हमारी सफलताओं को नहीं देखते । आपको हमारी सफलताएँ नहीं पड़तीं । आप देखिए । हमारी सामथ्र्य, प्रतिभा, क्षमता और अक्ल को भी देखिए, सिद्धियों को भी देखिए । सब कुछ देखिए । पर मैं एक और बात कहता हूँ आपसे कि आप तो इसको देखने की परिस्थिति में भी नहीं हैं, क्योंकि जिस आँख से आप देखना चाहते हैं वह आँखें ऐसी नहीं हैं कि हमारी आध्यात्मिक सफलताओं को और हमारे प्रयासों द्वारा संसार में जो हेर-फेर हो रहे हैं और होने जा रहे हैं, उनको आप देखने मे समर्थ हो सकें । 

मित्रो! आप देखें या न देखें, पर सारी सफलताएँ शानदार हैं । आप जरा फिर देखना, अभी तो हम हैं, कब तक जिएँगे कह नहीं सकते, लेकिन आप लोगें में से अधिकांश आदमी जिएँगे । जिएँगे तो देखना और नोट करना कि हमारी सफलताएँ कितनी शानदार होती हैं? क्यो होती हैं? क्योंकि हमने अवतार के साथ में कन्धे से कन्धा मिलाकर हनुमान के तरीके से काम करने का निश्चय कर लिया है । राधा एक साधारण से ग्वाले की लड़की का नाम था, किन्तु नाचने के लिए वह थोड़े दिन तक कृष्ण का साथ देती रहीं और राधा हो गयीं । किस-किस को कहें, शानदार शक्तियों का साथ देने वाले न जाने कहाँ से कहाँ पहुँच गए और क्या से क्या हो गए? इसलिए इस शिविर में हमने आपको खासतौर से यह दावत देने के लिए बुलाया है कि अगर आपका मन बड़े फायदे उठाने का है और बड़े फायदे लायक अगर आपका व्यक्तित्व है, हिम्मत है तो आप आइए, इस मौके को गँवाइए नहीं । इस मौके से पूरा-पूरा फायदा उठाइये । आप लोगों में से हर एक को हम झकझोरते हैं ओर कहते हैं कि जो घर से निवृत्त हो चुके हैं, जिनके पास कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ नहीं हैं, उन सबसे हम प्रार्थना करते हैं, अनुरोध करते हैं कि अगर आप किसी तरीके से अपना गुजारा कर सकते हों तो आप आइए और हमारी मिलिट्री में भर्ती हो जाइए । आप में से हर आदमी को प्रज्ञावतार के कन्धे से कन्धा मिलाने के लिए हम दावत देते हैं, विशेषकर उन लोगों को जिन्होंने अपनी आदतें ठीक कर रखी है, परिश्रमी हैं, चरित्रवान हैं और जिनका वजन भारी नहीं है अर्थात् जिम्मेंदारियों का बोझ हल्का है । ऐसे लोगों के लिए सबसे बेहतरीन काम यह है कि अपना गुजारा करने के बाद में वे समाज के काम आएँ, देश के काम आएँ । 

मित्रों! आपमें से हर उन आदमियों को भी हम दावत देते हैं जो भावनाशील हैं, जिनके ऊपर बहुत भारी वजन नहीं है, तब तो हम ठहरने के लिए कहेंगे । लेकिन थोड़ा वजन है तो उनकी भी सहायता करेंगे । हमें २४ हजार शक्तिपीठों के लिए उतने ही कार्यकर्ता चाहिए । इन इमारतों में प्राण भरने के लिए हमें । कार्यकर्ताओं की जरूरत है । चौबीस हजार की भर्ती करनी है हमें आप स्वयं अपना इन्तजाम कर सकने की स्थिति में हों तो ठीक है, अन्यथा हम आपके खाने का, कपड़े का, जेबखर्च का इन्तजाम बिठा देंगे । आपके बीबी-बच्चों के लिए भी जो मुनासिब खर्च होगा, वह भी हम देंगे । कौन है हमारी पीठ पीछे, आपको तो दिखाई नहीं पड़ता । आप आँख खोलिए और देखिए कि हमारे पीछे बहुत शानदार शक्ति है । हम खाली हाथ हैं तो क्या हुआ हमारा गुरु तो खाली हाथ नहीं है । हम अपने 'बॉस' के बारे में विश्वास करते हैं । हमें यह भी विश्वास है कि अगर हमे दो हजार कार्यकर्ता रखने पड़े तो भी पैसों को इन्तजाम हम कर देंगे उनमें से अधिकांश नौकर रखने पड़े तो भी पैसों को इन्तजाम कर देंगे । इसलिए एक विज्ञापन निकाल देंगे कि जिसे नौकरी करनी हो सीधे शांतिकुंज चले आवें । एक लाख आदमी अगले ही महीने में एप्वाइंट करके दिखा दूँ आपको । युग-परिवर्तन के लिए बहुत बड़े काम करने पड़ेंगे, परन्तु यह काम नौकरों से नहीं हो सकेगा । यह काम भावनाशीलों का है, त्यागियों को है । इसलिए हम आपकी खुशामदें करते हैं कि हमको भावनाशील आदमियों की जरूरत है, जिनको हम प्रामाणिक कह सकें, जिसको हम परिश्रमी कहें । जो परिश्रमी हैं वे प्रामाणिक हैं और वे जो प्रामाणिक एवं परिश्रमी हैं, उनको मिशन की जानकारी है । हम इनको कब तक सिखायेंगे, कितना सिखाएँगे, इनको सिखाने में कितना समय लगेगा? हमारे पास समय बहुत कम है । हमको आदमियों की जरूरत है, अगर आप स्वयं उन आदमियों में शामिल होना चाहते है, तो आइए हम स्वागत करते हैं और आपको यह विश्वास दिलाते हैं कि आप जो भी काम करते हैं, उन सब कामों की बजाय यह बेहतरीन धन्धा है । इससे बढ़िया कोई धन्धा नहीं हो सकता । हमने किया है, इसलिए आपको भी यकीन दिला सकते हैं कि यह बहुत फायदे का धन्धा है । 

इन दिनों हमारे पास केवल दस लाख आदमी है जो बहुत कम हैं । सारी दुनियाँ में चार सौ पचास करोड़ आदमी रहते हैं । अकेले हिन्दुस्तान में इन दिनों सत्तर करोड़ से ज्यादा आदमी हो गए हैं । इन सब तक पहुँचने के लिए दस लाख आदमी बहुत थोड़े हैं । अब हमें अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करने के लिए आपकी सहायता की जरूरत है । इसके लिए अब हमको वह वर्ग ढूँढ़ना पड़ेगा,जिसको विचारशील वर्ग कहते हैं, भावनाशील वर्ग कहते हैं, त्याग और बलिदान के लिए आगे बढ़ने वाला वर्ग कहते हैं । सिपाहियों की जरूरत है, ओवरसियरों की जरूरत है । हमको उनकी जरूरत है,  जो राष्ट्र  निमार्ण के काम आ सकें । 

नए वर्ग में, क्षेत्र में जाने के लिए आप सब हमारी मदद कर दीजिए । क्या काम करेंगे? हमने एक बहुत ही शानदार भवानी तलवार निकाली है । ऐसी शानदार योजना दुनिया में आज तक नहीं बनीं । क्या बनी है? हमने हर दिन हर पढ़े-लिखे को योजना नियमित रूप से बिना मूल्य युगसाहित्य पढ़ाने की योजना बनाई है । आप पढ़े-लिखे लोगों तक हमारी आवाज पहुँचा दीजिए, हमारी जलन को, हमारी चिंगारियों को पहुँचा दीजिए । लोगों से आप यह मत कहना कि गुरुजी बड़े सिद्धपुरुष हैं, बड़े महात्मा हैं और सबको वरदान देते है । वरन् यह कहना कि गुरुजी एक ऐसे व्यक्ति का नाम है, जिसके पेट मे से आग निकलती है, जिसके आँखों से शोले निकलते हैं । आप ऐसे गुरुजी का परिचय कराना, सिद्धपुरुष का नहीं । विचारक्रान्ति अभियान को हमने युगसाहित्य के रूप में लिखना शुरू कर दिया है और हर आदमी को स्वाध्याय करने के लिए मजबूर किया है । हमारे विचारों को आप पढ़िए और हमारी आग की चिनगारी को जो प्रज्ञा अभियान के अन्तर्गत युग साहित्य के रूप में लिखना शुरू किया है, उसे लोगों में फैला दीजिए । जीवन की वास्तविकता के सिद्धान्त को समझिए, ख्वाबी दुनिया में से निकलिए और आदान-प्रदान की दुनियाँ में आइए । आपके नजदीक जितने भी आदमी हैं, उनमें आप हमारे विचार फैला दीजिए । यह काम आप अपने काम करते हुए भी कर सकते हैं । आप युग साहित्य लेकर अपने सर्किल में पढ़ाना शुरू कर दीजिए, अपने पड़ोसियों को पढ़ाना शुरू कर दीजिए । उनको हमारे विचार दीजिए हमको आगे बढ़ने दीजिए, और आप हमारी सहायता कर दीजिए ताकि हम उन विचारशीलों के पास, शिक्षितों के पास जाने में समर्थ हो सकें, इससे कम में हमारा काम चलने वाला नहीं है और न ही हमें संतोष होगा । मित्रों! हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए । जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है । हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं । हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में सीमाबद्ध है । दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं । आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए । अब हमको नई पीढ़ी चाहिए इसके लिए आपे पढ़े-लिखे विचारशीलों में जाइए, उनके घरों में जाइए, खुशामदें करिए, करिए जन्मदिन मनाइए, दरवाजा खटखटाइए और हमारी विचारधारा उन तक पहुँचाइए । यह हमारा नया कायर्क्रम है । 

मित्रों! युग साहित्य पढ़ाना, प्रज्ञा अभियान पढ़ाना, जन्मदिन मनाना-यह तीन कायर्क्रम प्रज्ञा अभियान के अन्तर्गत आते हैं । आपमें से जो आदमी प्रज्ञापुत्रों के रूप में हमारे साथ शामिल हो सकते हैं, वे अंगद के तरीके से आएँ , नल-नील के तरीके से आएँ, हनुमान के तरीके से आएँ, गिलहरी के तरीके से आएँ । शबरी के तरीके से आएँ । केवट के तरीके से आएँ । आएँ तो सही, कुछ करें तो सही हमारे लिए । हम आपके लिए करेंगे आप हमारे लिए करिए । हमने गायत्री गायत्री माता के लिए किया है और गायत्री माता ने हमारे लिए किया है । हमने अपने गुरु के लिए किया है और गुरु ने हमारे लिए किया है । क्या आप हमारे काम आएँगें? आप हमारे काम आइए और हम आपके काम आएँगें । अब हमारा हर एक कायर्क्रम में जाना नहीं हो सकेगा, लेकिन आपमें से हर एक सक्रिय कार्यकर्ता को सालभर में एक बार अपने गुरुद्वारे में अवश्य आना चाहिए । अभी तक आप हमारे पास वरदान माँगने के लिए आते रहे हैं, पर अब हम आपसे माँगते हैं । आपसे पसीने का वरदान, आपकी मेहनत का वरदान । अब आप देने के लिए आना, कुछ पसीना बहाने के लिए आना, कुछ समय देने के लिए आना, कुछ अक्ल देने के लिए आना । मित्रों! अब हमें उन लोगों को बुलाना है, जो आशीर्वाद देने में समर्थ हो सकें, हमारे कन्धे से कन्धा मिला सकें । जो हमारा गोवर्धन उठाने में लाठी का टेका लगा सकें । जो हमारे समुद्र पर पुल बाँधने में ईंट और पत्थर ढो सकें और गाँधी जी के कन्धे से कन्धा मिलाकर जेल जा सकें । हमने सारे विश्व को अपना कुरूक्षेत्र बना लिया है । अब हम हर एक आदमी का बुलाएँगे और उसी स्तर के लिए उसमें प्राण फूँकेंगे । आप लोग इन योजनाओं में हमारी सहायता करना । भगवान ने हाथ पसारा है । हमारे गुरुदेव ने हमारे सामने हाथ पसारा था । विवेकानन्द के सामने रामकृष्ण ने हाथ पसारा था, चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के सामने और समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी के सामने हाथ पसारा था । भगवान की हथेली पर रखने वाला आदमी कभी घाटे में नहीं रहा । आप भी घाटे में नहीं रहेंगे । हम आपके आगे हाथ पसारते हैं, आपका श्रम माँगने के लिए, समय माँगने के लिए । अगर आप देंगे तो विश्वास कर सकते हैं कि हमारे खेत में अगर बीज बोएँगे तो हमारी जमीन उसको खाने वाली नहीं है । हम आपको हजार गुना फल उगाकर देंगे और आपको निहाल कर देंगे । आप कुछ दीजिए तो सही हमको । आप देना नहीं चाहते क्या? आप दीजिए, अपना श्रम दीजिए, समय दीजिए, भावना दीजिए, यही है आपके सामने आज के प्रज्ञावतार अपील, युग के देवता की अपील, महाकाल की अपील और हमारी अपील । आप कुछ करना चाहते हों तो करना । 
आज की बात अब खत्म करते हैं । 
ॐ शांति 
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

अध्यात्म का मर्म समझने हेतु बालिग बनिए-४ (समापन किश्त)
हमारी पूजा-उपासना का मूल आधार क्या हो? इस पर युगऋषि की अमृतवाणी को तीन अंकों से पढ़ रहे हैं । वे कहते हैं कि कर्मकाण्ड गौण हैं, उनके पीछे जो शक्ति काम करती है वह है आत्मबल । सबसे महत्वपूर्ण है आत्मपरिष्कार एवं फिर गुणों का समुच्चय भगवद्सत्ता का सामीप्य । नाला-गंगा, बेल-वृक्ष, पतंग-डोर आदि के उदाहरणों से उपासना का मर्म समझाने का प्रयास किया गया था । पूज्यवर कर्मव्यवस्था को सर्वोपरि वरीयता देते हैं एवं इसके अनुशासन को मानना अध्यात्म का पहला पाठ बताते हैं । समर्पण और भावनाओं के महत्त्व को उनने समझाया । नारद-प्रकरण के माध्यम से बताया कि मनोकामनाए इस तरह पूरी नहीं होतीं । अब पढ़ें समापन किश्त में मर्मस्पर्शी प्रतिपादन उनकी ही अमृतवाणी के माध्यम से-

अध्यात्म मँहगा है 
मित्रो! जितने भी आदमी भगवान के भक्त हुए हैं, योगी हुए हैं, उनकी भक्ति और योग क्या योगाभ्यास तक, प्राणायाम तक या उपासना तक ही सीमित रही? नहीं, मैं आपको बताना चाहूँगा कि विवेकानन्द आधा घंटा उपासना करते थे-डेढ़ घंटा ध्यान करते थे । और गाँधी जी आधा घंटा सामूहिक प्रार्थना करते थे । लेकिन विवेकानन्द से लेकर गाँधी जी तक का सभी का सारा का सारा जीवन भगवान के क्रियाकलापों को पूरा करने के लिए समर्पित हो गया । बाकी भी जो महामानव हुए हैं, उनके जीवन की ओर जब हम देखते हैं, तो भगवान बुद्ध ने क्या उपासना की, क्या पूजा की, हमें नहीं मालूम । नहीं साहब! आप बताइये कि भगवान ने क्या पूजा की और कोन सा मंत्र जपा? बेटे, हमें नहीं मालूम, लेकिन हाँ उन्होंने अपनी जिंदगी के सारे सुखों को, संसार को, जो उनके जीवन में शामिल थे, हर सुख को अलग फेंक दिया । बच्चे को अलग फेंक दिया । और भगवान की इच्छा पूरी करने के लिए और भगवान की दुनिया को सुन्दर बनाने के लिए अपनी सारी जिंदगी खतम करदी । यही उनका असली मंत्र था । 

नहीं महाराज जी! उसे उहने दीजिए और ये बताइये कि वे कौन सी माला से जप करते थे? बेटे-तू पागल आदमी है, केवल माला पूँछता रहता है, मंत्र पूछता रहता है । असली माला नहीं पूछता, जो बड़ी मँहगी पड़ती है । नहीं साहब । सस्ती माला बताइये । सस्ती माला कहीं नहीं बिकती है । अध्यात्म वाली माला मँहगी है, अध्यात्म मँहगा है । गांधी जी कौन सा मंत्र जपते थे, बेटे हमें नहीं मालूम है । हमने उन्हें 'हरे राम-हरे कृष्ण' ये कहते देखा था । 'ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम । सबको सन्मति दे भगवान ।' कहते सुना था । नहीं महराज जी! कोई तो मंत्र जपते होंगे, उसी से ऐसा चमत्कार वे दिखा सके । यह तो हमें नहीं मालूम, लेकिन इतना मालूम है कि उन्होंने अपने जीवन का एक-एक अंश और एक-एक अंग इतना परिष्कृत बनाया था कि राम और गाँधी में कोई फर्क नहीं रह गया था । नानक जी ने कौन सा मंत्र जपा था? बेटे हमको नहीं मालूम । नहीं साहब! कोई तो किया होगा? बेटे तुम तो बेकार की बहस करते हो, तुझसे हम यह कह सकते हैं कि उन्होंने अपने सारे जीवन का क्रम और स्वरूप ऐसा बना लिया था, जिससे कि भगवान को मजबूर हो करके उनके समीप आना पड़ा ।
जीवन साधना महत्वपूर्ण-विधि या माला नहीं 
महाराज जी! नरसी मेहता ने कौन सा जप किया था? बेटे तू बड़ा पागल है । हर दम मंत्र-तंत्र पूछता रहता है । यह नहीं पूछता कि नरसी मेहता ने जिंदगी कैसी जी थी । सुदामा जी ने भक्ति की थी, तो श्रीकृष्ण भगवान के पास कौन सा चावल लेकर के गये थे? महाराज जी आप बता दीजिए कि कितना ले जाऊँ तो मैं भी ले जाऊँ । बेटे, तू बासमती का डेढ़ किलो चावल लेकर श्रीकृष्ण भगवान के मंदिर में चले जाना और फिर यों कहना कि साहब! मैं नहीं देता हूँ...... । जब भगवान तुम्हारी पोटली छीन लें, तब कहना कि लाइये, राजपाट दीजिए । मित्रो! पोटली नहीं, सुदामा जी की जिंदगी को देखिये । यह नहीं कि वे कौन सा मंत्र जपते थे, वरन् यह देखिये कि शुरु से अंत तक का उनका जीवन कैसा रहा? जीवन साधना कैसी रही? मित्रो! सारी जिंदगी में साधना करनी पड़ती है । साधना आधे घंटे में नहीं होती । आधे घंटे में तो केवल नशा किया जाता है, जिसका असर कुछ घंटे तक रहता है, किंतु साधना की मस्ती, भक्ति की मस्ती सारे दिन-सारी जिंदगी छायी रहती है । शराब का नशा पाँच मिनट में भी हो सकता है और पन्द्रह मिनट में भी हो सकता है । इसी तरह भजन का नशा जल्दी भी हो सकता है और देर में भी हो सकता है, पर नशा होना चाहिए । अगर नशा नहीं आवे तब? तब तो बैठा रह घंटे भर तक, छः घंटे तक बैठा रह, नशा तो आना चाहिए । भक्ति का नशा हमारे जिंदगी में आना चाहिए । 

आए जिन्दगी में भक्ति का नशा 
मित्रो! भक्ति का नशा अगर हमारी जिंदगी में आयेगा, तो आप पायेंगे कि आपके चिंतन और आपके स्वरूप सब बदलने हुए चले जायेंगे । आप सारे के सारे भक्तों के क्रिया-कलापों को मत पूछिये, जप की विधि मत पूछिये, वरन् आप उनके जीवन को देखिये । आप देखिये कि उन्होंने कौन सी भक्ति की थी और किस ढंग से की थी । सुदामा की भक्ति को देखिये । सुग्रीव की भक्ति को देखिये कि उसने किस तरह की भक्ति की थी । अंगद की भक्ति को देखिये, हनुमान की भक्ति को देखिये । हनुमान जी का जीवन देखिये । नहीं साहब! कौन से मंत्र का जप किया था और कौन सा अनुष्ठान किया था और कुंडलिनी कहाँ से जगायी थी? हनुमान चालीसा का पाठ कैसे किया था । बेटे तू बड़ा पागल और जाहिल आदमी है । जाहिल और पागल मैं इसलिए कहता हूँ कि तू केवल कर्मकांडो की बावत मालूम करना चाहता है । कमर्काण्डों के साथ में जीवन की जो प्रक्रियायें जुड़ी हुई हैं उनको सुनना नहीं चाहता, देखना नहीं चाहता, बोलना नहीं चाहता और सोचना नहीं चाहता । नहीं साहब! आप तो हनुमान चालीसा को गालियाँ देते हैं । नहीं, बेटे मैं गालियाँ नहीं देता, वरन् मैं तो बीसों से कहता रहता हूँ कि जिनको रात में खराब सपने दिखाई पड़ते हैं, बीसों आदमियों से मैंने ये कहा है कि हनुमान चालीसा सिर के नीचे रखकर सोया कर । रात में मुझे जो वो भूत-प्रेत दिखाई पड़ते हैं और घर के चक्कर लगाते रहते हैं, जो गायत्री माता के जप से भी नहीं डरते, तो फिर तू हनुमान जी का जप किया कर । हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ सो जाया कर, निकल जाया कर । कोई आया भूत, बस बुला लिया हनुमान जी को । 

जीवन क्रम को बदलना होगा 
महाराज जी! तो फिर आप हनुमान जी की भक्ति को गाली क्यों दे रहे थे? गाली इसलिए दे रहा था कि आप तो हनुमान चालीसा का पाठ करने तक सीमित हो गये? आपने यह विचार नहीं किया या नहीं करना चाहते कि भक्त को हनुमान जी जैसा होना चाहिए । भक्त को अपने जीवन का स्वरूप इस तरीके से बनाना चाहिए, जिस तरह से कि हनुमान जी का श्रेष्ठ जीवन, आदर्श जीवन, उत्कृष्ट जीवन, आकांक्षाओं से रहित जीवन रहा है । 'राम काज कीन्हें बिना, मोहि कहाँ विश्राम'-यह हनुमान जी का आदर्श है । राम के काम में दिन और रात लगे बिना आप हनुमान जी की पूजा करना चाहते हैं । नहीं साहब! मैं तो हनुमान चालीसा का पाठ करूँगा । भाड़ करेगा हनुमान चालीसा का पाठ, अपने जीवन को सुधारना नहीं चाहता और पाठ करेगा । मित्रो! आप योगाभ्यास का मतलब समझिए । आप जहाँ कहीं भी जाइये, ध्रुव को देख लीजिए, विभीषण को देख लीजिए, हनुमान जी को देख लीजिए, अर्जुन को देख लीजिए, हर एक को देख लीजिए । आप सांसारिक गुरु भक्ति को देखना चाहें, तो शिवाजी को देख लीजिए कि समर्थ गुरु रामदास का चेला कैसा हो सकता है? इन सबको आप देख लीजिए । 

वास्तविक चेला कौन? 
नहीं महाराज जी! मैं तो आपका चेला हूँ । आपसे इसलिए गुरुदीक्षा ली थी कि आपकी कृपा हो जायेगी । कहाँ ली थी गुरुदीक्षा? महाराज जी! जब आप वहाँ कोटा-बूँदी गये थे । हाँ बेटे, तब ली होगी, लेकिन बेटे, गुरुदीक्षा ले तो इस तरह की ले, जैसे शिवाजी ने, समर्थ गुरु रामदास से ली थी । मैं तो ऐसी ही गुरुदीक्षा देता हूँ । नहीं साहब! हम तो आप से आशीर्वाद मांगने के लिए गुरुदीक्षा लेते हैं । चालाक कहीं का, हमसे आशीर्वाद पाने के लिए दीक्षा लेता है? हमारा तीस साल का तप ले जाना चाहता है और हमें चवन्नी की माला पहनाना चाहता है, धूर्त कहीं का । तू चेला नहीं, हमारा असली गुरु है । इसलिए मित्रो । चेला बनने के लिए आपको इन खेल-खिलौनों की बात नहीं करनी चाहिए । आपको शिष्य बनना हो तो, मांधाता जैसा शिष्य बनना चाहिए । मांधाता किसका शिष्य बना था? शंकराचार्य का । और भगवान बुद्ध का शिष्य बने थे -अशोक और हर्षवर्धन । आप ऐसे शिष्य बनिये । नहीं महाराज जी! आप तो हमारे गुरु हैं? नहीं बेटे, तू क्या जाने गुरु और चेला । तू बेकार में गुरु और चेला बकता फिरता है । तूने ये दो शब्द कहीं से सुन लिए हैं कि कोई गुरु होता है और कोई चेला होता है, किन्तु इनका मतलब नहीं समझता है, कि गुरु-चेला का अर्थ क्या है? 

बेटे, गुरु ओर चेला का मतलब होता है-गाँधी और जवाहरलाल नेहरू जैसा, रामकृष्ण और विवेकानन्द जैसा । महाराज जी! हमें भी विवेकानन्द बना दीजिए? हाँ बेटे, वायदा करता हूँ कि मैं किसी को विवेकानन्द बना दूँ, पर पहले तू चेला तो बन । नहीं महाराज जी । आप तो वैसे ही विवेकानन्द बना दीजिए और अमेरिका का टिकट दिलवा दीजिए और जहाँ कहीं भी स्पीच दूँ, वहाँ की फोटो अखबारों में छपवा दीजिए । बेटे तू अपनी चालाकी से बाज नहीं आयेगा । हाँ महाराज जी! मैं तो व्याख्यान देकर आऊँगा और फिर नौकरी कर लूँगा । ब्याह-शादी भी अगले साल कर लूँगा और देखिए फिर मैं तीन बच्चे भी पैदा करने वाला हूँ और विवेकानन्द भी बनने वाला हूँ । हाँ बेटे तू बड़ा होशियार है । सारी होशियारी तो तेरे हिस्से में ही आ गयी है । हाँ महाराज जी! मुझे विवेकानन्द बना दीजिए । तुझे पागल को विवेकानन्द बना दें? 

पात्रता का विकास करें 
मित्रो, क्या करना पड़ेगा? आपको आध्यात्मिकता के उन सिद्धान्तों को जीवन में समाविष्ट करना पड़ेगा और अपनी पात्रता और प्रामाणिकता बढ़ानी चाहिए । स्वाति नक्षत्र में पानी की बूँदें सीप में गिरती हैं और उसमें मोती बनता है । हर जगह मोती नहीं बनता । आपको मोती वाली सीप बनना चाहिए और मुँह खोलना चाहिए, ताकि स्वाति की बूँदें आपके अन्दर प्रवेश करने में समर्थ हो सकें । बरसात होती है, तो किसी बर्तन में केवल उतनी ही मात्रा में पानी जमा होता है, जितनी कि उसके पास जगह होती है । आप अपने बर्तन का आकार बढ़ाइये, ताकि भगवान की कृपा और भगवान का अनुग्रह और गुरु का आशीर्वाद आपके ऊपर छाया रहे और आप उसको हजम कर सकें तथा उसको धारण कर सकें । धारण करने की ताकत इकट्ठी कीजिए । धारण करने की ताकत नहीं है और दुनिया भर से मांगते फिरते हैं । आप उसे रखेंगे कहाँ पर? नहीं साहब! आप तो आशीर्वाद दीजिए । बेटे हम आशीर्वाद तो दे भी दें, पर तू उस आशीर्वाद को रखेगा कहाँ पर? उसे रखने के लिए तेरे पास जगह भी है या नहीं? नहीं महाराज जी! दे दीजिए । अच्छा, बेटे दे देंगे, लेकिन इसे रखेगा किसमें? महाराज जी! कुरते में ले लूँगा । ठीक है, कुरते में ले ले घी, लेकिन इससे तेरा कुरता भी खराब हो जाएगा, धोती भी खराब हो जाएगी और घी भी फैल जाएगा । नहीं महाराज जी! आप तो दे सकते हैं? कैसे दें, लेगा कहाँ? आशीर्वाद को लेने के लिए ताकत चाहिए । हजम करने के लिए शक्ति चाहिए, उसको धारण करने के लिए क्षमता चाहिए । आप अपने भीतर उस क्षमता को पैदा कीजिए, फिर हम दे देंगे आशीर्वाद । 

इच्छा भगवान को सौंप दें 
मित्रों! पात्रता का विकास यही है, जिसके आधार पर हमारी भक्ति सफल होती हुई चली जाती है । भगवान की नाव पर सवार होकर के हम अपने आपको पार कर सकते हैं । हवा की तरीके से ऊँचे उठते हुए चले जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए हमको एक काम करना पड़ेगा । हमको अपनी इच्छाएँ भगवान को सौंपनी पड़ेंगी । आप अपनी इच्छाएँ सौंप दीजिए ओर भगवान की बिरादरी में शामिल हो जाइये और यह कहिये कि अब हमारी कोई इच्छा नहीं है । अब भगवान की इच्छा ही हमारी इच्छा है । आप चलाइये, हम अपने जीवन की नीति का निर्धारण उसी तरीके से करेंगे । हम अपने विचारों का और दृष्टिकोंण का नवीनीकरण इस तरीके से करेंग, जैसे भगवान की शास्त्रों की, आदर्शो और सिद्धान्तों की प्रणाली है । बेटे, हमने यही किया । हम योगी हैं । कौन सा योग करते हैं? बेटे हम शीर्षासन करते हैं । अच्छा तो गुरुजी! आप शीर्षासन में सिर के बल चलना शुरू कर देते हैं? नहीं बेटे, ऐसे तो नट करता है । तो फिर आप नाक में से पानी निकालते हैं? नहीं बेटे । तो फिर आप कैसे योगी हैं । बेटे हम ऐसे योगी हैं कि हमने अपने गुरु को भगवान माना है और उनसे यह कहा है कि आप हुकुम दीजिए और हम आपके साथ-साथ चलेंगे । सारी जिंदगी भर-पचास वर्ष हो गये, पंद्रह वर्ष की उम्र से लेकर के आज सड़सठ वर्ष की उम्र तक हमारे मन में दूसरा कोई ख्याल नहीं आया । एक ही ख्याल आया कि उत्तर की तरफ मुँह करके यह पूछते हैं कि हमारे मागर्दशर्क-हमारे मास्टर हुकुम दें, ताकि हमारी बची हुई हड्डियाँ बचा हुआ मांस, बचा हुआ रक्त, बचा हुआ धर्म और हमारी क्षमताएँ आपके काम आ सकें और हम आपके हुकुम के लिए काम आ सकें । इसके अतिरिक्त हम कुछ और नहीं सोचते हैं । 

कामनाओं का विसर्जन 
मित्रों! उसका परिणाम क्या हुआ? उसका परिणाम यह है कि उनकी शक्तियाँ, उनकी सामर्थ्य, उनका तप, उनकी क्षमता हमारे पास असंख्य मात्रा में उड़ती हुई चली आती है । हमने एक सेर अपना कमाया है, तो निन्यानवे सेर गुरु का खाया है । हमारा संबंध उसी रिजर्व बैंक से है । हमारे बैंक में तो पैसा रहता नहीं है, लेकिन हम ड्राफ्ट काट देते हैं, दूसरों को चेक दे देते हैं । कहाँ से पैसा आ जाता है? रिजर्व बैंक से आ जाता है । हमने अपने आपको रिजर्व बैंक में 'मर्ज' कर दिया है, इसलिए रिजर्व बैंक हमारे 'क्रेडिट' और 'डेबिट'-दोनों को संभालती है । इसलिए मित्रो! आप हिम्मत कीजिए, अपने कलेजे को कड़ा कीजिए, बहादुर बनिये और एक चीज त्याग दीजिए, जिसको इच्छा कहते हैं, कामनायें कहते हैं । आप अपनी कामनायें भगवान के ऊपर मत थोप दीजिए । आप अपनी कामनाएँ खत्म कर दीजिए और भगवान की कामनाओं को अपने रोम-रोम में बसाकर के ले जाइये । आप योग्य हो जाइए । अगर आप भगवान में मिल गये, उनकी कामनाओं में शामिल हो गये, अगर आप बूँद की तरह समुद्र में शामिल हो गये, फिर आप भक्ति का कमाल देखिये, भक्ति का चमत्कार देखिये । फिर भगवान की सामर्थ्य का, भगवान की कृपा का चमत्कार देखिए । फिर योगाभ्यास का चमत्कार देखिये । योग ऐसा ही होना चाहिए । उल्टा चलने वाला, नाक में से पानी पीने वाला, पेट में से हवा निकालने वाला योग नहीं है । आप योगी बनिये, फिर उसका मजा देखिये कि उसका क्या फायदा हो सकता है । 
दुखों को सहना, तप करना 
साथियो! दूसरा हिस्सा है-तप । तप किसे कहते हैं? बेटे, तप उसे कहते हैं कि कुछ मुसीबतें तो हमारे भाग्यवश आती हैं, परिस्थितिवश आती हैं । कुछ मुसीबतें ऐसी होती हैं, जिन्हें हम सिद्धान्तों की वजह से, आदर्शों की वजह से अपने आप बुलाकर स्वीकार करते हैं । इसका नाम है-तप । मुसीबतें किसके पास नहीं बाती, बताना जरा? आपमें से किसी के पास मुसीबतें आई? हाँ महाराज जी । हमारे व्यापार में बहुत घाटा हो गया । आपमें से इन मुसीबतों से कोई बचा हुआ है क्या? कोई एक भी आदमी बताये मुझे । कहा गया है-''रे रे मनुष्यः वदति अतिसुखम्.......'' । अर्थात् अरे मनुष्यों । किंचित तुममें से कोई एक आदमी भी ऐसा हो, जो ये कह सकता हो कि हमने सारी जिंदगी सुख के साथ व्यतीत कर ली, आपमें से कोई हो तो, हमें बताओ । एक भी नहीं है । हर एक के ऊपर मुसीबतें आती हैं, आएँगी और आनी चाहिए । क्योंकि सुख जहाँ हमें उन्नति की ओर ले जाते हैं वहीं दुख और मुसीबतें हमें सावधानी की ओर ले जाती हैं, सतर्क बनाती हैं, मजबूत बनाती हैं, बहादुर बनाती हैं । हमारे ज्ञान और धर्म को सही करती हैं । दुख भी अपने आपमें जरूरी है । शक्कर भी जरूरी है, नमक और मिर्च भी जरूरी है । दोनों के बिना साग नहीं बन सकता । 

आदर्शों के लिए करें गरीबी स्वीकार 
मित्रों! दुखों की अपनी उपयोगिता है तो सुखों की अपनी उपयोगिता है । लेकिन जब हम दुखों को सिद्धान्तों के लिए, आदर्शों के लिए इच्छा पूर्वक स्वीकार करते हैं, जब हम उन्हें बुलाते हैं कि आप आइये, हम सिद्धान्त का जीवन जीना चाहते हैं, आदर्श का जीवन जीना चाहते हैं, तो हमें स्वेच्छा से गरीबी मंजूर करनी पड़ती है । गरीबी के बिना आध्यात्मिक जीवन प्रारंभ नहीं हो सकता । एक गरीबी थोपी हुई होती है और एक गरीबी इच्छानुकूल ली हुई होती है । इसका क्या मतलब होता है? इसका मतलब होता है कि हम अपने आपमें किफायतशाली बनेंकम से कम में, न्यूनतम में जितनी भी हमारी आवश्यकतायें पूरी की जा सकती हैं, उतने में पूरी करें । इसके बाद जो बाकी हमारे पास पैसा बच जाता है, श्रम बच जाता है, समय बच जाता है, अकल बच जाती है, उन सारी की सारी चीजों को बचत करने के पश्चात् उसे भगवान के लिए लगायें, समाज के लिए लगायें, श्रेष्ठ कर्मों के लिए लगायें । ये तप कहलायेगा । कैसे कहलायेगा? क्योंकि इसमें आपको मुसीबतें उठानी पड़ेंगी, अपने आपको तंग करना पड़ेगा । आप किफायतशार बनेंगे, तो आपको तंगी आयेगी कि नहीं? फिर आपको कैसे अच्छा खाना मिल सकता है, जब आपको यह मालूम पड़ेगा कि हम इस गरीब मुल्क में रहते हैं, जिसमें मनुष्यों को दोनों वक्त का भोजन नहीं मिलता । फिर आप मक्खन की डिमाण्ड नहीं कर सकते, दूसरी चीजों की डिमाण्ड नहीं कर सकते । 

अपने लिए कम औरों के लिए ज्यादा 
तप का आरंभ यहीं से होता है, जिसको हम भूखा रहने के माध्यम से शुरू कराते हैं, तप में क्या-क्या नियम पालन करने पड़ते हैं? गायत्री अनुष्ठानों में हम आपको तप के नियम पालने के लिए कहते हैं । हम कहते हैं कि आप तपस्वी बनिये और तप करने के छोटे-छोटे नियम हम आपको बताये देते हैं । जीभ पर काबू रखिये, उपवास कीजिए, भूखे रहिये, ब्रह्मचर्य से रहिये, जमीन पर सोइये, अपने शरीर की सेवा स्वयं कीजिए । यह सारे के सरे तप के नियम हम आपको बताते हैं । इसका क्या मतलब है? इसका मतलब केवल इतना है कि हम मुसीबतों का स्वेच्छा से अभ्यास करें, तितिक्षा का हम स्वेच्छा से अभ्यास करें । अगर हमें गरीबी में रहना पड़ें, कंगाली में रहना पड़े, किफायतशारी में रहना पड़े तो हम कम खर्चे में भी काम चला सकें । तप यहीं से प्रारंभ होता है । तप का दूसरा पक्ष है-''सादा जीवन उच्च विचार'' ।  ब्राह्मण के लिए, साधू के लिए यही नियम बताया गया है कि उसे किफायतशार होना चाहिए, मितव्ययी होना चाहिए, अपरिग्रही होना चाहिए । इसका क्या मतलब है? इसका एक ही मतलब है कि जो कुछ भी आपके पास है, अपने लिए उसका कम से कम इस्तेमाल करें और ज्यादा से ज्यादा समाज को दें । 

प्राणवान बनिये, कष्ट उठाइये 
मित्रो! तप वहाँ से प्रारंभ होता है, जबकि हमको भिन्न-भिन्न कामों के लिए कष्ट उठाने के लिए तैयार रहना पड़ता है । आपने देखा होगा कि अच्छे काम करने वालों को गालियाँ पड़ती हैं । समाज सुधारकों को रोज गालियाँ पड़ती हैं । स्वामी दयानंद को जहर खिला दिया गया । गाँधी जी को गोली मार दी गई । श्रीकृष्ण को तीर से मार दिया गया । वे सब, जिन्होंने समाज की विकृतियों से लोहा लिया, सबको मुसीबतें उठानी पड़ीं । आप स्वेच्छा से तैयार हो जाइये और कहिये कि मुसीबतों आपका स्वागत है । कठिनाइयों आपका स्वागत है । लोग आपको गाली देंगे । गालियाँ देने वालो आपका स्वागत है । बेटे, मैं तो हरदम कहता रहता हूँ कि गाँधी के चेलों ने गोलियाँ खाई थीं । आचार्य जी का जो कोई चेला बनना चाहता है वह कम से कम गालियाँ खाकर के आये । 'बॉस' की गाली खाकर के आये, बीवी की गाली खाकर के आये । पड़ौसी की गाली खाकर के आये । जब आप श्रेष्ठ सिद्धान्तों को कार्य रूप में परिणत करने के लिए खड़े हो गये हों, तो जिन-जिन लोगों के स्वार्थों को आघात पहुँचता होगा, वे सब आपकी बुराई करेंगे और ढेरों गालियाँ देंगे, रात को नुकसान कर जायेंगे । 'बॉस' आपका ट्रांसफर करा देगा, करेक्टर रोल खराब कर देगा, जुर्माना करा देगा । मित्रो! आपको मुसीबतें और कठिनाइयाँ उठाने के लिए तपस्वी का जीवन जीना चाहिए । अपने अंदर क्षमताओं का विकास करना चाहिए । आपको उदार बनना चाहिए, दानी बनना चाहिए । आपको प्राणों से भरा होना चाहिए, ताकि आप मुसीबतें उठा सकें । 

मैं तो कंगाल बना सकता हूँ 
नहीं, महाराज जी! आप तो हमें आमदनी करा दीजिए, बीमा दिलवा दीजिए । नहीं बेटे, मैं ऐसा नहीं करा सकता । तू अध्यात्म मार्ग पर चलने की हिम्मत करता है, तो मैं तुझे कंगाल बना सकता हूँ । देख राजा भृतहरि को कंगाल बनना पड़ा, राजा हरिश्चंद्र को कंगाल बनना पड़ा, ध्रुव को कंगाल बनना पड़ा । गोपीचंद्र को कंगाल बनना पड़ा, बुद्ध को कंगाल बनना पड़ा, रामचंद्र जी को कंगाल बनना पड़ा, भरत जी को कंगाल बनना पड़ा, भगवान के भक्तों में से हर एक को कंगाल बनना पड़ा । नहीं महाराज जी! आप तो हमें अमीर बना दीजिए । नहीं बेटे, मैं अमीर नहीं बना सकता । अमीर बनने की तेरी इच्छा है, तो राम नाम लेना बंद कर, फिर मैं एक और मंत्र तुझे बता सकता हूँ । उसका नाम है रावण । तू रावण के नाम का जप कर, क्योंकि रावण के पास एक सोने की लंका थी । बाल-बच्चे भी थे । तू रावण का पाठ किया कर और 'रावणाय नमः-रावणाय नमः' का जप किया कर । इससे शायद लक्ष्मी जी भी आ सकती हैं । पैसा भी आ सकता है । राम के नाम से नहीं आएगा । राम के नाम से तुझे तपस्वी जीवन जीना पड़ेगा । ब्रह्मचर्य से रहना पड़ेगा और मर्यादाओं का पालन करना पड़ेगा, नहीं साहब! रामचंद्र जी का जप करूँगा और पैसा कमाऊँगा । बेटे, ऐसा नहीं हो सकता । 

तप से आयेगी मजबूती 
मित्रो! तपस्वी का जीवन जीने के लिए आपको हिम्मत और शक्ति इकट्ठी करनी चाहिए । तपाने के बाद हर चीज मजबूत हो जाती है । कच्ची मिट्टी को जब हम तपाते हैं, तो तपाने के बाद मजबूत ईंट बन जाती है । कच्चा लोहा तपाने के बाद स्टेनलेस स्टील बन जाता है । पारे को जब हकीम लोग तपाते हैं, तो पूर्ण चन्द्रोदय बन जाता है । पानी को गरम करते हैं, तो भाप बन जाता है और उससे रेल के बड़े-बड़े इंजन चलने लगते हैं । कच्चे आम को पकाते हैं, पका हुआ आम बन जाता है । जब हम बेल्डिंग करते हैं, तो लोहे के दो टुकड़े जुड़ जाते हैं । उस पर जब हम शान धरते हैं, तो वह हथियार बन जाता है । बेटे, यह सब गलने की निशानियाँ हैं । आपको अपने ऊपर शान धरनी चाहिए और भगवान के साथ बेल्डिंग करनी चाहिए । आपको अपने आपको कितना तपाना चाहिए कि आप पानी न होकर स्टीम-भाप बन जायें । कौन सी वाली स्टीम? जो रेलगाड़ी को धकेलती हुई चली जाती है । यह गर्मी के बिना नहीं हो सकता । गुरुजी! हम तो मुसीबतों से दूर रहेंगे । आप मुसीबतों से दूर नहीं रह सकते । तपस्वी जीवन, आध्यात्मिक जीवन मुसीबतों से दूर नहीं रखा जा सकता । गुरुजी! आप तो ऐसी कृपा कीजिए कि हमारी जिंदगी शांति से व्यतीत हो जाये । शांति से तेरा क्या मतलब है? शांति से मेरा मतलब चैन से है । नहीं बेटे, चैन की जिंदगी नहीं हो सकती । संघर्ष करने के बाद, अशांति को नष्ट करने के बाद जब हमको शांति मिलती है, विजयश्री मिलती है, उसी का नाम 'शान्ति' है । संतोष का नाम शान्ति है । संतोष श्रेष्ठ काम करने वालों को मिलता है । सफल को भी मिल सकता है, असफल को भी मिल सकता है । गरीब को भी मिल सकता है, अमीर को भी मिल सकता है । आपको तपस्वी बनने के लिए यही करना चाहिए । 

योग एवं तप बनें जीवन के अंग 
मित्रो! हमने लोगों को यज्ञ की शिक्षा दी है । हम यज्ञ की प्रक्रिया बताते हैं, यज्ञ का प्रचार करते रहते हैं, गायत्री का प्रचार करते रहते हैं । ''धियो योनः प्रचोदयात्'' की शिक्षा देकर विवेक की शिक्षा देने के लिए, दूरदर्शिता की शिक्षा देने के लिए लोगों को हम योगी बनाते हैं । इसके लिए सबेरे आपको यज्ञ कराते हैं, गायत्री मंत्र का अनुष्ठान भी कराते हैं । यज्ञ का प्रचार हम इसलिए करते हैं कि लोगों में यज्ञीय वृत्ति पैदा हो जाये । यज्ञ में हम अपनी चीजों को हवन कर देते हैं, जला देते हैं, हवा में बिखेर देते हैं । समाज की संपदा बना देते हैं । आग जिस किसी को भी अपने पास पाती है, उसे अपने समान बना लेती है । आग अपना मस्तक नीचे नहीं झुकाती । यज्ञ हमारे इस शरीर में भी चल रहा है । यज्ञ आसमान में भी चल रहा है । पानी बादलों से बरसता है । बादल जमीन में से, समुद्र में से पानी लेकर के बरसते हैं और यह चक्र पानी का चलता रहता है । शरीर में भी चक्र चल रहा है । हाथ बनाते हैं, पेट खाता है । यह चक्र बराबर चल रहा है । इस चक्र को आप कायम रखें । एक दूसरे की मदद करें, एक दूसरे की सेवा करें, एक दूसरे की सहायता करें । हमने आपको तपस्वी बनने के लिए यज्ञ की शिक्षा दी है । यज्ञ का आंदोलन वास्तव में तपस्या का आंदोलन है, कष्ट सहने का आंदोलन है । खुशी-खुशी से कष्ट सहने के लिए, त्याग और बलिदान करने के लिए, खुशी-खुशी से सेवा करने के लिए आपके भीतर से प्रेरणा और उमंग उत्पन्न करने के लिए हमने यह आंदोलन चलाया । इसका अर्थ है-तप । हमने गायत्री मंत्र का विस्तार इसलिए नहीं किया है कि आप मालदार होते हुए चले जायें और अमीर होते हुए चले जायें । हमने गायत्री मंत्र का विस्तार इसलिए किया है कि आपमें विवेकशीलता और समझदारी की शक्ति का विकास हो । अर्थात् योग अर्थात् गायत्री और तप अर्थात् यज्ञ यह हमारे आध्यात्मिकता के दोनों पहलू हैं, जो आपके व्यक्तित्व को श्रेष्ठ बनाते हैं । 
आज की बात समाप्त 
ॐ शान्तिः
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

हम गायत्री माँ के बेटे

हम गायत्री माँ के बेटे, तुम्हें जगाने आये हैं । 
जाग उठो भारत के वीरो, तुम्हें जगाने आये हैं॥ 

एक बनेंगें नेक बनेंगे, प्यार बढ़ाने आये हैं । 
तपोभूमि मथुरा के नारे , तुम्हें सुनाने आये हैं॥ 
हम सुधरेंगे युग बदलेगा, यही बताने आये हैं । 
ऊँच - नीच और जाति-पाँति का, भेद मिटाने आये हैं॥ 

गायत्री के महामंत्र की, महिमा गाने आये हैं । 
युग निर्माण योजना का, संदेश सुनाने आये हैं॥ 
विश्वधर्म को निर्मित करने, नई प्रेरणा लाये हैं । 
हर मानव में सद्बुद्घि का ,दीप जलाने आये हैं॥ 
अत्याचार का अंत करेंगे, लोभ मिटाने आये हैं । 
कुरीतियाँ और पाखण्डों को, जड़ से मिटाने आये हैं॥ 

नया उजाला नई रोशनी,जग में लेकर आये हैं । 
अनाचार के अंधकार को,जड़ से मिटाने आये हैं॥ 
ज्ञानयज्ञ की लाल मशाल, तुम्हें थमाने आये हैं । 
श्रीराम शर्मा जी का, संदेश सुनाने आये हैं॥ 
हम गायत्री माँ के बेटे, तुम्हें जगाने आये हैं । 

जागेगा इन्सान जमाना देखेगा

जागेगा इन्सान जमाना देखेगा । 
नवयुग का निर्माण जमाना देखेगा॥ 

देवता बनेंगे मेरे , धरती के प्यारे । 
हम सुधरें तो , जग को सुधारें॥ 
चमकेगा देश हमारा , मेरे साथी रे । 
आँखों में कल का नजारा, मेरे साथी रे॥ 
धरती पे भगवान् , जमाना देखेगा॥ 

मिलजुल के होंगे सारे, खुशियों के मेले । 
कोई न रो पायेगा, दुख में अकेले । । 
जागेगा देश हमारा, मेरे साथी रे । 
आँखों में कल का नजारा, मेरे साथी रे । 
कल का हिन्दुस्तान जमाना देखेगा । 
जागेगा...........................................॥ 

हम बदलेंगे, युग बदलेगा

हम बदलेंगे, युग बदलेगा, यह संदेश सुनाता चल । 
आगे कदम बढ़ाता चल, बढ़ाता चल, बढ़ाता चल॥ 

अंधकार का वक्ष चीरकर ,फूटे नव प्रकाश निर्झर । 
प्राण-प्राण में गूँजे शाश्वत,सामगान का नूतन स्वर॥ 
तुम्हें शपथ है हृदय हृदय में,स्वर्णिम दीप सजाता चल । 
स्नेह सुमन बिखराता चल तू, आगे कदम बढ़ाता चल॥ 

पूर्व दिशा में नूतन युग का, हुआ प्रभामय सूर्य उदय । 
देव दूत आया धरती पर, लेकर सुधा पात्र अक्षय॥ 
भर ले सुधा पात्र तू अपना, सबको सुधा पिलाता चल । 
शत-शत कमल खिलाता चल तू, आगे कदम बढ़ाता चल॥ 

ओ,नवयुग के सूत्रधार,अविराम सतत बढ़ते जाओ । 
हिमगिरि के ऊँचे शिखरों पर,स्वर्णिम केतन फहराओ॥ 
मंजिल तुझे अवश्य मिलेगी,गीत विजय के गाता चल । 
नव चेतना जगाता चल तू, आगे कदम बढ़ाता चल॥ 

गायत्री आरती

जयति जय गायत्री माता , जयति जय गायत्री माता । 
आदि शक्ति तुम अलख- निरंजन जग पालन कर्त्री॥ 
दुःख शोक,भय-क्लेश कलह,दारिद्रय दैन्य हर्त्री॥ जयति..॥
 
ब्रह्मरूपिणी प्रणत पालिनी, जगत धातृ अम्बे । 
भवभय हारी जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥ जयति...॥
 
भय हारिणि भव तारिणि अनघे , आनन्द राशी । 
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले अविनाशी॥जयति..॥ 

कामधेनु सत् चित् आनन्दा , जय गंगा गीता॥ 
सविता कि शाश्वती शक्ति तुम, सावित्री सीता॥ जयति..॥ 

ऋग,यजु,साम अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे । 
कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्ना, शोभागुण गरिमे॥ जयति...॥ 

स्वाहा स्वधा शची ब्रह्माणी, राधा रूद्राणी । 
जय सतरूपा, वाणी, विद्या,कमला कल्याणी॥ जयति..॥ 

जननी हम हैं दीन-हीन ,दुख दारिद के घेरे । 
यद्यपि कुटिल कपटी कपूत तऊ, बालक हैं तेरे॥ जयति..॥ 

स्नेह सनी करूणामयि माता , चरण शरण दीजै । 
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे,दया दृष्टि कीजै॥ जयति..॥ 

काम, क्रोध, मद लोभ,दम्भ, दुर्भाव ,द्वेष हरिये । 
शुद्घ बुद्घि निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥ जयति..॥ 

तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि पुष्टि त्राता । 
सत मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता ॥ जयति..॥

इतने रतन दिये हैं कैसे

इतने रतन दिये हैं कैसे , जिससे देश महान् है । 
भारत की परिवार व्यवस्था, ही रतनों की खान है । 

इसी खान के रतनों के, इतिहास चाव से पढ़े गये । 
अध्यायों की अँगूठियों में, यही नगीने जड़े गये॥ 
सजे हुए हैं यही रतन तो , जन मंगल के थाल में । 
दमक रहे हैं ये हीरे ही, मानवता के भाल में 
इसी खान के रतनों की तो, सदा निराली शान है॥ 

इसी खान में ध्रुव निकले थे, माँ ने उन्हें संवारा था । 
इस हीरे को नारद जी ने, थोड़ा और निख्रारा था 
तप की चमक लिये जा बैठा, परम पिता की गोद में । 
कितनों का बचपन कट जाता, है आमोद प्रमोद में॥ 
नभ में ध्रुव परिवार कीर्ति का शाश्वत अमर निशान है॥ 

जाना था बनवास राम को, लक्ष्मण सीता साथ गये । 
कीर्तिमान स्थापित सेवा, स्नेह त्याग के किये नये॥ 
सौतेली माँ का मुख उज्ज्वल, किया सुमित्रा माता ने । 
था सोहार्द सगे भाई से, ज्यादा भ्राता भ्राता में॥ 
वह संस्कारित परिवारों का, ही अनुपम अनुदान है॥ 

ऐसे ही परिवार चाहिए, फिर से नव निर्माण को । 
जहाँ देव संस्कार मिले, धरती के इन्सान को॥ 
राम-भरत का स्नेह चाहिए, घर-घर कलह मिटाने को । 
दशरथ जैसा त्याग चाहिए, राष्ट्र धर्म अपनाने को॥ 
हो परिवार जहाँ नन्दनवन, वह भू, स्वर्ग समान है॥ 

- माया वर्मा 

दुनियाँ आगे बढती जाए

दुनियाँ आगे बढती जाए , रहे क्यों पिछे नारी रे । 
रहे क्यों पिछे नारी रे, रहे क्यों पिछे नारी रे ॥ 

नारियों को आगे आना , 
काम कुछ करके दिखलाना । 
मार्ग उन्नति का अपनाना, 
न बाधाओं से घबराना॥ 
समझ लें मिल-जुलकर हम आज, हमारी जिम्मेदारी रे । 
दुनियाँ आगे बढती जाए........................................ 

करें आओ हम नव निर्माण, 
व्यक्ति का करें चलो उत्थान । 
बनायें अपने को गुणगान, 
करे जग नारी का गुणगान । 
मिले हर नारी को सम्मान , करें इसकी तैयारी रे, 
दुनियाँ आगे बढती जाए........................................ 

अगर सारी बहिनें जागें, 
हमारे सारे दुख भागें । 
नारियाँ आ जायें आगे, 
आज का युग यह ही माँगे॥ 
करें आओ युग का निर्माण, इसी में शान हमारी रे । 
दुनिया आगे बढ़ती जाय, रहे क्यों पिछे नारी रे॥ 

बहुत सो चुकी अब तो जाग

बहुत सो चुकी अब तो जागो, ओ नारी कल्याणी । 
परिवर्तन के स्वर में भर दो, निज गौरव की वाणी॥ 

बन कौशल्या आज देश को, फिर से राम महान् दो । 
और सुनैना बनकर फिर से, सीता-सी संतान दो॥ 
वीर जननि हो तुम संतानें, अर्जुन भीम समान दो । 
भारत माता माँग रही है, वापस उसकी शान दो॥ 
केवल तुम ही बन सकती हो ,नूतन युग निर्माणी । 
बहुत सो चुकी अब तो......................... 

भारत भ्रमित जितने तुलसी हैं, सबको दो ललकार । 
रतनावली तुम्हारा गौरव, तुमको रहा पुकार॥ 
कालिदास सम सोयी प्रतिभा ,सकतीं तुम्हीं निखार । 
महानता की देवी तुमको, जगती रही निहार॥ 
बनो प्रेरणा, राह देखता, जग का प्राणी-प्राणी । 
बहुत सो चुकी अब तो.......................... 

जीजाबाई बनो देश को, वीर शिवा की है फिर चाह । 
सिवा तुम्हारे कौन बताये , बलिदानी वीरों को राह॥ 
जागो अब तो मत होने दो, तुम मानवता को गुमराह । 
वह जौहर दिखलाओ जग के, मुख से बरबस निकले वाह॥ 
नयी सदी की नींव तुम्हीं को है अब तो रखवानी॥ 
बहुत सो चुकी अब तो................................. 

बनो अहिल्याबाई अपनी, आत्म शक्ति फिर दिखलाओ । 
लक्ष्मीबाई बन अनीति का, गर्व चूर कर बतलाओ॥ 
दुर्गावती बनो शासन की, डोर थामने आ जाओ । 
सावित्री बन सत्यवान को, यम से पुनःछुड़ा लाओ॥ 
रच दो अपनी गौरव गरिमा, की फिर नई कहानी । 
बहुत सो चुकी अब तो............................ 

-सुरभि कुलश्रेष्ठ 

यज्ञ महिमा

यज्ञ रूप प्रभो हमारे भाव उज्ज्वल कीजिए । 
छोड़ देवें छल, कपट को,मानसिक बल दीजिए॥ 

वेद की बोले ऋचाएँ, सत्य को धारण करें । 
हर्ष में हो मग्न सारे ,शोक सागर से तरें॥ 

अश्वमेधादिक रचाएँ, यज्ञ पर उपकार को । 
धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को॥ 

नित्य श्रद्घा भक्ति से, यज्ञादि हम करते रहें 
रोग-पीड़ित विश्व के,संताप सब हरते रहें॥ 

कामना मिट जाए मन से, पाप अत्याचार की । 
भावनाएँ शुद्घ होवें, यज्ञ से नर- नारि की॥ 

लाभकारी हो हवन, हर जीवधारी के लिए । 
वायु, जल सर्वत्र हों, शुभ गंध को धारण किए॥ 

स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम-पथ विस्तार हो । 
इदं न मम् का सार्थक, प्रत्येक में व्यवहार हो॥ 

हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वंदना हम कर रहे । 
नाथ करूणा रूप करूणा, आपकी सब पर रहे॥ 

यज्ञ रूप प्रभो हमारे भाव उज्ज्वल कीजिए॥ 

यन्मण्डलम्

यन्मण्डलं दीप्तिकरं विशालम्, रतनप्रभं तीव्रमनादि रूपम् । 
दारिद्रय दुःख क्षय कारणं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं॥ 

यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितम्, विपैः स्तुतं मानवमुक्ति कोविदम् । 
तं देव देवं प्रणमामि भर्गं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥ 

यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यं, त्रैलोक्य पूज्यं त्रिगुणात्मरूपम् । 
समस्त तेजोमय दिव्य रूपम् पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥ 

यन्मण्लं वेदविदोपगीतं, यद्योगिनां योगपथानुगम्यम् । 
तत्सर्ववेदं प्रणमामि दिव्यं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥ 

देवियाँ देश की जाग जायें अगर

देवियाँ देश की जाग जायें अगर । 
युग स्वयं ही बदलता चला जायेगा । 
शक्तियाँ जागरण गीत गाएँ अगर । 
हर हृदय ही मचलता चला जायेगा । 

वीर संतान से कोख खाली नहीं । 
गोद में कौन-सी शक्ति पाली नहीं॥ 
जननियाँ शक्ति को साध पायें अगर । 
शौर्य शिशुओं में बढ़ता चला जायेगा । 

मूर्ति पुरुषार्थ में है सदाचार की । 
पूर्ति श्रम से सहज साध्य अधिकार की । । 
पत्नियां सादगी साध पायें अगर । 
पति स्वयं ही बदलता चला जायेगा॥ 

छोड़ दें नारियाँ यह गलत रूढ़ियाँ । 
तोड़ दें अंध विश्वास की बेड़ियाँ॥ 
नारियाँ दुष्प्रथायें मिटायें अगर । 
दम्भ का दम निकलता चला जायेगा॥ 

धर्म का वास्तविक रूप हो सामने । 
धर्म गिरते हुओं को लगे थामने॥ 
भक्तियाँ भावना को सजा लें अगर । 
ज्ञान का दीप जलता चला जायेगा॥ 

यह धरा स्वर्ग सी फिर सँवरने लगे । 
स्वर्ग की रूप सज्जा उभरने लगे॥ 
देवियाँ दिव्य चिंतन जगायें अगर । 
हर मनुज देव बनता चला जायेगा॥ 

माया वर्मा 

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