1) ध्यान रहे, चिन्तन स्वयं के चरित्र को विनिर्मित करने के लिये होता हैं, न कि दूसरे को तर्क से पराजित करके स्वयं के अहं की तुष्टि करने के लिये।
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2) ध्यान आध्यात्म पथ का प्रदीप है। ध्यान की ज्योति जिसमें जितनी प्रखर हैं, अध्यात्म पथ उसमें उतना ही प्रखर हो जाता है। परमहंस श्री रामकृष्ण देव अपने शिष्यों से कहा करते थे कि ध्यान की प्रगाढता अध्यात्म ज्ञान की परिपक्वता का पर्याय है। वह कहते थे, ‘‘ जिसे ध्यान सिद्ध है, समझना चाहिए उसे अध्यात्म सिद्ध है।
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3) धर्म क्या हैं ?:- धर्म प्रवचन नहीं है। बौद्धिक तर्क-विलास वाणी का वाक्जाल भी धर्म नहीं है। धर्म तप हैं। धर्म तितिक्षा है। धर्म कष्ट-सहिष्णुता है। धर्म परदुःखकातरता है। धर्म सचाइयों और अच्छाइयों के लिए जीने और इनके लिए मर मिटने का साहस हैं धर्म मर्यादाओ की रक्षा के लिए उठने वाली हुकारे हैं धर्म सेवा की सजल संवेदना है। धर्म पीडा-निवारण के लिए स्फुरित होने वाला महासंकल्प है। धर्म पतन-निवारण के लिए किए जाने वाले युद्ध का महाघोष हैं। धर्म दुष्प्रवृतियों, दुष्कृत्यों, कुरीतियों के महाविनाश के लिए किए जाने वाले अभियान का शंखनाद है। धर्म सर्वहित के लिए स्वहित का त्याग हैं। ऐसा धर्म केवल तप के वासंती अंगारो में जन्म लेता हैं। बलिदान के वासंती राग में इसकी सुमधुर गूँज सुनी जाती है।
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4) धर्म की मर्यादा में अर्थ का उपार्जन एवं काम का सुनियोजन करते हुए मोक्ष की ओर बढने का यहा आदर्श निर्धारण रहा है।
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5) धर्म का मार्ग फूलों की सेज नहीं, इसमें बडे-बडें कष्ट सहन करने पडते है।
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6) धर्म का प्रथम आधार आस्तिकता हैं, ईश्वर विश्वास है।
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7) धर्म का उद्धेश्य मानव को पथ भ्रष्ट होने से बचाना है।
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8) धर्म में से दुराग्रह और पाखण्ड को निकाल दो । वह अकेला ही संसार को स्वर्ग बनाने में समर्थ है।
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9) धर्म से आशय श्रेष्ठ गुणों को अपनाना है।
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10) धर्म, सत्य और तप-यही जीवन की सार सम्पत्तियाँ है।
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11) धीर और वीर वे हैं जो निडर रहते हैं, हिम्मत नहीं छोडते, अधीर नहीं होते और हर कठिनाई का हॅसते-मुस्कराते स्वागत करते है।
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12) धरती का श्रंगार पेड है।
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13) धैर्य पूर्वक सभी संरक्षण शक्तियों से अपनी रक्षा करो।
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14) धैर्य प्रतिभा का आवश्यक तत्व है।
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15) धैर्य रखना और अवसर न खोना के बीच संतुलन बहुत जरुरी है।
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16) धैर्य साधना क्षेत्र में अति अनिवार्य है।
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17) धैर्य और संतोष जीवन-नौका के वह पतवार हैं जो उसे मंजिल तक ले जाते है।
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18) धैर्य, क्षमा, मनोनिग्रह, अस्तेय, बाहर-भीतर की पवित्रता, इन्द्रियनिग्रह, सात्विक बुद्धि, अध्यात्म विद्या, सत्यभाषण और क्रोध न करना-ये दस सामान्य धर्म के लक्षण है।
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19) धैर्य, संयम और सहनशीलता अपनावो।
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20) धैर्यवान के क्रोध से बचो।
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21) धैर्यवानो का यह स्वभाव होता हैं कि वह आपत्तियों में और अधिक दृढ़ हो जाते है।
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22) धन या पद पाने की अपेक्षा लोक श्रद्धा प्राप्त करना अधिक मूल्यवान है।
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23) धन बल, जन बल, बुद्धि अपार, सदाचार बिन सब बैकार।
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24) धन की तीन गति होती है - दान, भोग और नाश।