शनिवार, 1 मई 2010

ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान

संस्थान की स्थापना 
इस संस्थान की स्थापना पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा सन् 1979 में की गयी थी। 

संस्थान का ध्यान केंद्र 
यज्ञ से उत्पन्न, ऊर्जा, मंत्र शक्ति से साधक की मस्तिष्कीय तरंगों, जैव विद्युत आदि का परिक्षण किया जाता है। विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी यहाँ किए जाते हैं। द्वितीय तल पर इससे सम्बंधित एक विशाल ग्रंथागार है, यहाँ पर वनौषधियों का विश्लेषण भी किया जाता है। 

संस्थान का विवरण 
मानव मस्तिष्क प्रायः हर बात को वैज्ञानिक संदर्भ से ही समझने का अभ्यस्त हो गया है। इसलिए पूज्य आचार्य श्रीराम शर्मा ने जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक सूत्रों को वैज्ञानिक आधार पर समझाने-स्थापित करने के लिए इस शोध केंद्र का शुभारंभ 1971 की गायत्री जयंती से किया। यह संस्थान अपने अनोखेपन के कारण विश्व स्तर पर प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुका है।

गायत्री तीर्थ-शांतिकुंज के मुख्य परिसर से आधा किलोमीटर दूर गंगा तट पर स्थित यह संस्थान अपनी भव्यता के कारण सहज ही ध्यान आकर्षित करता रहता है। भूतल पर वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित यज्ञशाला विनिर्मित है। चौबीस कक्षों में गायत्री महाशक्ति की चौबीस मूर्तियाँ बीज मंत्रों, फलश्रुतियों सहित स्थापित हैं। प्रथम तल पर वैज्ञानिक प्रयोगशाला है, जहाँ ऐसे उपकरण स्थापित हैं, जिनसे जाँच-पड़ताल की जाती है। साधना से पूर्व व पश्चात, यज्ञादि मंत्रोच्चार के पूर्व व पश्चात क्या-क्या परिवर्तन शारीरिक व मानसिक स्तर पर होते हैं, अब यह देखना आसान हो गया है। इसके आधार पर साधकों को साधना संबंधी परामर्श दिया जाता है। यहाँ पर वनौषधियों का विश्लेषण भी किया जाता है। यज्ञ ऊर्जा, मंत्र शक्ति का क्या प्रभाव साधक की मस्तिष्कीय तरंगों, जैव विद्युत आदि पर पड़ा, यह देखा जाता है। 

विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी यहाँ किए जाते हैं। द्वितीय तल पर इससे संबंधित एक विशाल ग्रंथागार है, जहाँ वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर विश्वभर के शोध ग्रंथ एकत्रित किए गए हैं। यहाँ लगभग 45000 से अधिक पुस्तकें हैं। यहां पर वनौषधियों का विश्लेषण भी किया जाता है। 

यज्ञ से उत्पन्न, ऊर्जा, मंत्र शक्ति से साधक की मस्तिष्कीय तरंगों, जैव विद्युत आदि का परिक्षण किया जाता है। विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी यहां किए जाते हैं, द्वितीय तल पर इससे संबंधित एक विज्ञान ग्रंथागार है। जहां वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर विश्वभर के शोध ग्रंथ एकत्रित किए गए हैं। पुरातन पांडुलिपियां भी हैं। यहां बड़ी संख्या में उच्च शिक्षित निष्ठावान शोधकर्ता औसत भारतीय स्तर पर जीवन यापन करते शोध एवं संपदन कार्यों में लगे हुए हैं। 

संसाधन 
भवन के साथ ही महाकाल मंदिर की स्थापना भी हो चुकी है। 

प्रयोगशालाएँ 
शोध प्रयोगशालाएँ विद्यार्थियों एवं शोध छात्रों के लिए उपलब्ध हैं, जिनमें आधुनिक उपकरणों, कंप्यूटर एवं इलेक्ट्रोनिक्स के विभिन्न यंत्रों के द्वारा तप, तितिक्षा, आहार, साधना, ध्यान, धारणा, योग, कल्प प्रक्रिया, प्रायश्चित विधान आदि के मनोवैज्ञानिक प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है। औषधीय जड़ी-बूटियों की सूक्ष्म शक्ति का शरीर, मन, वातावरण, वनस्पतियों पर प्रभाव तथा यज्ञोपैथी, मंत्रशक्ति, संगीत आदि के प्रभाव के शोधपरक अध्ययन की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। 

आधुनिक प्राचीन विज्ञान 
यह संस्थान आधुनिक तथा प्राचीन विज्ञान का व्यावहारिक मिश्रण है, जो मानव मात्र के लिए स्वास्थ्य तथा प्रसन्नता प्रदान करने के पवित्र लक्ष्य से अभिप्रेरित है। सामान्यजनों पर किए गए अनुप्रयोगों को ध्यान में रखकर यहां औपचारिक वैज्ञानिक शोध चलाए जाते हैं तथा प्राचीन विज्ञान को नए विज्ञान की प्रासंगिकता तथा स्फूर्ति से जोड़ दिया गया है। शोध के मुख्य क्षेत्रों में शामिल है, आयुर्वेद तथा यज्ञोपैथी, संपूर्ण मनोविज्ञान, मंत्र विज्ञान तथा चिकित्सा संबंधी अनुप्रयोग, योगदर्शन तथा विज्ञान साधन मंत्र तथा तंत्र और आध्यात्म विज्ञान इत्यादि। 

शांतिकुंज चिकित्सालय 
इस केंद्र में रक्त विज्ञान, जैव रसायन, तंत्रिका क्रिया विज्ञान, हृदय रोग विज्ञान प्रकाश रसायन, मानसिक शांतिमापी विज्ञान, यज्ञोपैथी इत्यादि की अत्यधिक सुसज्जित प्रयोगशालाएं हैं। यहां इनके अपने चिकित्सक इंजीनियर्स, वैज्ञानिक तथा दार्शनिकों की टीम है। यह केंद्र शांतिकुंज के चिकित्सालयों, आयुर्वेदिक फार्मेसी तथा योग, प्रयोगशाला से तथा हरिद्वार और उसके आसपास के चिकित्सालयों व विश्वविद्यालयों से परस्पर संपर्क बनाए रखता है, जाने-माने शोधकर्ता, व्याख्यात, प्रशिक्षणकर्ता तथा दूसरे विशेषज्ञ नियमित रूप से केंद्र में आते रहते हैं।

यहां हिमालय में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ीबूटियों का संग्रह तथा उनसे प्रयोगिक शोध के उपरांत बनी औषधियों के निर्देशों का भी संग्रह है। यहां बनाई जाने वाली आर्युवेदिक औषधियों की बड़ी मांग है। क्योंकि ये कुछ असाध्य तथा अंतिम अवस्था पर पहुंचे रोगों में अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध हुई है।

यहां भारत के विभिन्न विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई 10 पी.एच.डी. डिगरियों पर शोध अध्ययन किया जा चुका है तथा बड़ी संख्या में अन्य पर काम चल रहा है, इसके विषय वैदिक कास्मीलांजी, वैदिक संस्कृति के बहुआयामों की समीक्षा से लेकर मानव शरीर क्रिया विज्ञान पर जप, प्राणायम, शवासन तथा यज्ञ के प्रभाव आदि है।

अभी तक किए जा चुके शोधों के परिणामों के अब तक विभिन्न उपचारात्मक लक्षणों के लगभग तीन हजार पांच सौ से अधिक अवलोकन किए जा चुके हैं, जिनमें एक महीने के साधना कोर्स कार्यक्रम के प्रशिक्षणार्थियों को चुना गया तथा उनके फेफड़ों की क्रिया तथा जैव रसायन, रक्त संबंधी, इलेक्ट्रोजियोलॉजिकल तंत्रिका संबंधी, मानसिक शक्ति संबंधी माप को सांख्यिकी विश्लेषण के लिए आकस्मिक रूप से लिया गया 1992 से संचालित प्रयोगों के डाटाबेस से)।

साधना कार्यक्रम (अनुष्ठान) के पूर्व तथा पश्चात के 22 विशेष लक्षणों के अवलोकन ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की प्रयोगशालाओं में एकत्रित किए गए।

इन्हें पुनः 10 विभिन्न डाटा से दस में लिंग तथा उम्र के आधार पर बांटा गया।

प्रत्येक समूह से लिए गए आकस्मिक सेंपल से सर्वश्रेष्ठ सांख्यिकी डिजाइंस तैयार की गई। 

गायत्री साधना के प्रभाव के समग्र परिणाम आई.आई.टी. मुंबई के विशेषज्ञों द्वारा किए गए जैव सांख्यिकीय विश्लेषण ने (जिनकी विश्वसनीयता का स्तर 90 से 99.9 प्रतिशत था) साधना के अत्यंत महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभावों को इनके संदर्भ में दर्शाया-

इलेक्ट्रोजियोलॉजिकल तथा न्यूरोलॉजिकल क्रिया जैसे- जी.एस.आर. स्कोर तथा ई.ई.जी.।

साइकोमीट्रिक क्रिया विशेष तौर पर स्मृति में वृद्धि, भ्रम में कमी तथा दृश्य-श्रव्य प्रतिक्रिया समय में कमी। यर्कत संबंधी पैरामीटरस में उच्च संभावनाओं के साथ हीमोग्लोर्वन स्तर में वृद्धि भी अवलोकित की गई। ये प्रभाव 16 से 55 वर्ष की उर्म की महिलाओं तथा 16 से 25 वर्ष के पुरुषों के प्रयोग समूह में बहुत प्रमुखता से देखे गए। फेफड़ों की क्रियाओं, जीवन शांति एम.ई.बी. तथा एम.वी.वी. में साधना के बाद महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई।

शांतिकुंज हरिद्वार (बी.एस.एस. की पैतृक संस्था) के आवासी प्रशिक्षणार्थियों में से 16 से 45 वर्ष की उम्र के लगभग विभिन्न शैक्षणिक पृष्ठभूमि, वैवाहिक स्थिति, व्यवसाय इत्यादि वाले 150 पुरुष तथा महिलाओं को चुना गया। (प्रयोग अध्ययन के केस के रूप में)। इन लोगों की दिनचर्या वही थी, जो पहले अध्ययन किए गए प्रयोग समूह की थी, लेकिन इन लोगों ने गायत्री साधना नहीं की थी। प्रयोग समूह के केस में विभिन्न उपचारात्मक लक्षणों फेफड़ों संबंधी क्रिया तथा जैव रसायन, रक्त संबंधी, इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल, न्यूरोलॉजिकल तथा मानसिक शक्ति संबंधी माप बी.एम.एम. प्रयोगशाला में एकत्र किए गए जिन्हें क्रमशः पहले दिन (प्री-डाटा के रूप में) तथा प्रशिक्षण में भाग लेने के दो से तीन हफ्ते के पश्चात (पोस्ट डाटा) के रूप में एक्तर किया गया। प्रयोग तथा नियंत्रण डाटा के मध्य उच्च, निम्न रक्तचाप समूह उच्च, निम्न रक्तचाप से ग्रस्त लोगों पर अलग-अलग प्रयोग तथा सांख्यिकीय विश्लेषण किए गए। नियंत्रण समूह में उपचारात्मक तथा क्रियात्मक पैरामीटरस पर कोई सांख्यिकीय परिवर्तन नहीं देखा गया। उच्च रक्तचाप तथा निम्न रक्तचाप से ग्रस्त लोगों के केस में परिणाम बहुत बुर देखे गए, जबकि नियंत्रण समूह में अच्छे प्रभाव देखे गए।

नियंत्रण समूह में 16 से 25 वर्ष की उम्र वाले महिला तथा पुरुषों में फेफड़ों संबंधी क्रिया के इंडक्स पीईएमआर को छोड़कर किसी अन्य पैरामीटर में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हो पाए। ईईजी व दृश्य-श्रव्य प्रतिक्रिया समय के नियंत्रण समूह में नकारात्मक प्रवृतियां दिखाई दीं। संक्षेप में कहें तो नियंत्रण समूह के लिए परिणाम प्रयोग समूह की तुलना में या तो नकारात्मक रहे या उदासीन या बहुत ही अल्प मात्रा में सकारात्मक रहे।

यज्ञोपैथी शोध यज्ञोपैथी प्रयोगशाला में एक कांच के कक्ष में हवन कुंड होता है तथा गैस विश्लेषण करने के लिए एक विंग होता है। जिसमें यज्ञ की धूप व वाष्प का संग्रह किया जाता है। हविष्य में विभिन्न वानस्पतिक अंगों की क्षमता तथा समिधा की गुणवत्ता का आंकलन जाइटोकेमेस्ट्री प्रयोगशाला में किया जाता है, जो कि गैस-द्रव क्रोमेटोग्राज जैसी इकाइयों से सुसज्जित है। इसका उद्देश्य प्रारंभ में उपस्थित मूल तत्वों का विश्लेषण तथा इन पदार्थों से धुआं उठने के बाद क्या बचा। इसका विश्लेषण किया जाता है।

रक्त के नमूनों को कांच के कक्ष में तब रखा जाता है, जब इसमें प्रतिदिन होने वाले यज्ञ (हवन) का धूप तथा वाष्प भर जाता है तथा यर्कत की जैव रासायनिकी तथा हीमोटोलॉजिकल पैरामीटरस को इन निर्देशों के लिए रिकार्ड कर लिया जाता है, कैम्पस में निर्देशित अवधि तक रह रहे स्वस् तथा रोगी मनुष्यों पर बहुत से प्रयोग किए गए। ऐसे लोगों में सभी उम्र के साधक तथा सामान्य लोग, किसी भी सामाजिक तथा धार्मिक पृष्ठभूमि के स्त्री तथा पुरुष सम्मिलित थे। ऐसे प्रयोगों में लोगों को कांच के कक्ष में बैठकर विशेष अवधि तक यज्ञ के धूप में श्वांस लेने के निर्देश दिए गए। इस प्रयोग के पूर्व तथा पश्चात शरीर तथा मस्तिष्क का संपूर्ण विश्लेषण किया गया।

उपरोक्त प्रयोगों के मापों में (जो कि क्रोमेरोग्राम फिजियोग्राफ्स इत्यादि से लिए गए थे) सम्मिलित हैं, रक्त संबंधी पैरामीटरस जैसे एचबी, टीआरबीसी, डब्ल्यूबीसी, प्लेटलेट्स, आरबीसी भंगुरता इत्यादि। जैव रासायनिक परिवर्तन जैसे ब्लड यूरिया स्तर, ग्लूकोज, कोलेस्ट्राल, क्रिएटिनाइन एसजीओरी इत्यादि। इम्यूनोलॉजिक परिवर्तन जैसे एंटीबाडी स्टार तथा विभिन्न परजीवियों के प्रति जन्मजात प्रतिरोध क्षमता। एंड्रोक्राइनोलॉजी प्रयोगशाला में हार्मोन्स के स्तर जैसे कॉर्टीसोल, थाइरोंक्सिन एसीटीएच, एंड्रोजन इत्यादि रिकार्ड किए गए। ईईजी, ईएमजी तथा ईसीजी की रिकार्डिंग न्यूरोजियोलॉजी प्रयोगशाला में की गई। साइकोमिट्री प्रयोगशाला में की गई। साइकोमीट्री प्रयोगशाला में कौशल, सीखने की क्षमता, स्मृति, बुद्धिलब्धि, भावनात्मकलब्धि तथा किसी व्यक्ति का संपूर्ण व्यक्तित्व मापा गया। इन केसेस को नियमित अंतराल से देखा गया (यानी यज्ञ के बाद नियमित रूप से एक हफ्ते तक या एक महीने तक इत्यादि)।

इन प्रयोगिक शोधों की तकनीकी विस्तृत जानकारी तथा परिणाम क्रमशः संदर्भित जर्नल्स में प्रकाशित किए जाएंगे, ताकि यज्ञ के द्वारा विभिन्न वानस्पतिक औषधियों के उपचारात्मक उपयोगों के निद्रेश तथा वानस्पतिक औषधियों पर और शोध किया जा सके एवं यज्ञ के वैज्ञानिक अनुप्रयोगों को उन्नतिशील आधार दिया जा सके।

मानसिक शांति, भावनात्मक स्थिरता तथा मस्तिष्क की सृजनात्मकता आदि मनोवैज्ञानिक पक्षों के सामान्य अवलोकन के विश्लेषण हैं, अब तक लिए गए परिणाम के सामान्य प्रभाव बताते हैं कि यज्ञ करने से जीवन शांति में वृद्धि होती है तथा घातक वायरस तथा वैक्टीरिया के आक्रमण के प्रति प्रतिरोध में वृद्धि होती है। मानसिक व्याधियों पर प्रयोग एक महीने के गायत्री यज्ञ (जो कि विशेष वानस्पतिक मिश्रण से किया गया) में प्रयोग ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में अभी-अभी 30-40 पुरुषों तथा महिलाओं पर किए गए जो कि दुश्चिंता, अवसाद, पश्चाताप तथा अनिद्रा में ग्रस्त थे। नियंत्रण समूह में प्रत्येक श्रेणी में लगभग दस लोग थे।

परिणामों का सांख्यिकीय विलक्षण (उपरोक्त व्याधियों या अक्षमताओं का विस्तार जानने के लिए मनोवैज्ञानिक परीक्षणों पर) ने प्रयोग समूह में महत्वपूर्ण सुधार दर्शाया। कुछ पीएचडी प्रोजेक्ट्स (देव संस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार में) इस संदर्भ में आगे के अध्ययन के लिए चल रहे हैं। वातावरण की शुद्धता तथा क्षय रोग पर प्रयोग देव संस्कृति विश्वविद्यालय (डीएसवीवी) में दो पीएचडी प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जो निम्न शीर्षकों से हैं-
एयर क्वालिटी मॉडलिंग एंड नॉन कन्फेशनल सँल्यूशन थ्रू वैदिक साइंस फॉर इनवायरमेंट प्रॉब्लम।

सम इन्वेस्टीगेशन इनट्र द केमिकल एंड फार्मास्यूटिकल आस्पेक्ट्स ऑफ यज्ञोपैथी, स्टडीज इन पल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस।

दोनों प्रोजेक्ट्स पर प्रयोग कार्य ब्रह्मवर्चस संस्थान, हरिद्वार में चल रहा है, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोरड् (सदस्य-सचिव) तता आईआईटी मुंबई के जैव विज्ञान तथा जैव इंजीनियरिंग के प्रोफेसर्स इन शोध प्रोजेक्ट्स के ब्राहयसह मार्गदर्शी हैं। केंद्र अपने आने वाले रजत जयंती वर्ष में बड़े पैमाने पर योग, मनोविज्ञान तथा आध्यात्मिकता पर विमर्शात्मक शोध प्रारंभ करने की योजना बना रहा है। 

कैसे पहुँचें 
रेलवे स्टेशन/बस स्टैण्ड से सीधे चलते हुए देवपुरा होते हुए मायापुर से नेशनल हाईवे होते हुए चण्डीघाट से भूपतवाला से दाईं तरफ देहरादून रोड़ पर शांतिकुञ्ज में यह संस्थान स्थित। यहां पर कार से पहुंचने में 15 मिनट, आटौ रिक्शा से पहुंचने में 30 मिनट, एवं पैदल पहुंचने में 45 मिनट लगते हैं। 

पता 
ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान,
गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, 
हरिद्वार-249411
फोन नं. : +91-1334 260602, 260403, 260309, 261955
फैक्स नं. : +91-1334 260866 
ई. मेल : shantikunj@awgp.org 
वेब साइट : www.awgp.org 
पवन दीक्षित 9990191446

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