शनिवार, 1 जनवरी 2011

अनवरत काम करने वाले पुरस्कार पाते हैं।

मधुमक्खी उडती-उड़ती एक फूल पर जा बैठी और पराग चूसने लगी। इसी तरह वह इधर-उधर जाकर पराग एकत्र कर रही थी। एक तितली फुदक रही थी। कभी इधर बैठती, कभी उधर। बड़ी चंचल होकर मंडरा रही थी। उसने पूछा-‘‘बहन यह क्या कर रही हो ? हमें भी तो बताओ।’’ मधुमक्खी ने जवाब दिया-‘‘मधु इकट्ठा कर रही हू। पहले पराग फूल से लूंगी, फिर उसे बनाऊगी।’’ तितली बोली-‘‘तुम भी कितनी नादान हो। एक छोटे से फूल से कितना मधु एकत्र कर पाओगी। बेकार समय और शक्ति खरच कर रही हो। आओ कहीं चलें और मधु के तालाब को खोजें।’’ मधुमक्खी कुछ नहीं बोली। चुपचाप अपने काम में लगी रही। तितली सारा वन छानती रही, थक गई और लौटते समय उसने देखा मधुमक्खी का मधुसंचय जो पेड़ पर एक झुंड के रूप में कई ऐसी ही मधुमक्खियों द्वारा संचित था।

तितली खाली हाथ लौटती हुई कुछ सीख लेकर जा रही थी-
‘‘बैठने वाले ऐसे ही मुह की खाते हैं। 
अनवरत काम करने वाले पुरस्कार पाते हैं।’’

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