तुम जो दूसरे से चाहते हो, वहीं दूसरे को पहले दो, तब तुम्हें अनंत गुणा होकर वही मिलेगा। सेवा चाहते हो तो सेवा करो, मान चाहते हो तो मान दो। यश चाहते हो तो यश दो। ठीक से समझ लो, दुःख देते हो तो बदले में तुम्हें दुःख ही मिलेगा, अपमान करते हो तो बदले में तुम्हें अपमान ही मिलेगा। अर्थात जो तुम दोगे वही तुम्हें मिलेगा।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें