शनिवार, 1 जनवरी 2011

संगीतशास्त्र

गांधर्ववेद (संगीतशास्त्र) में सात स्वरों के शरीर व मन पर प्रभाव के विषय में विस्तृत प्रकाश डाला गया हैं। सा, रे, ग, म, प, ध, नि प्रत्येक स्वर के विशिष्ट प्रभाव हैं। ‘सा’ षडज स्वर हैं। इसका देवता अग्नि हैं। यह पित्तज रोगों का शमन करता हैं। ‘रे’ ऋषभ स्वर हैं। यह शीतल प्रकृति का हैं। इसका देवता ब्रह्मा हैं एवं यह कफ एवं पित्त प्रधान दोनों ही प्रकार के रोगों का नाशक हैं। ‘ग’ गांधार स्वर हैं। इसकी देवी सरस्वती है। यह पित्तज रोगों का शमन करता हैं। ‘म’ मध्यम स्वर हैं। यह शुष्क स्वरूप का हैं तथा इसका देवता महादेव हैं। वात-कफ रोगों का यह शमन करता हैं। ‘प’ पंचम उत्साहपूर्ण प्रकृति का हैं। लक्ष्मी इसकी देवी हैं। यह मूलतः कफ प्रधान रोगों का शमन करता हैं। ‘ध’ धैवत स्वर हैं। इस स्वर की प्रकृति चित्त को प्रसन्न और उदासीन दोनों ही बनाती हैं। इसके देवता गणेश हैं। यह पित्तज रोगों का शमन करता हैं। ‘नि’ निषाद स्वर हैं। इसका स्वभाव ठंडा-शुष्क हैं तथा प्रकृति आह्लादकारी हैं। इसके देवता सूर्य हैं। यह वातज रोगों का शमन करता हैं। 
देखा जा सकता हैं कि हमारे ऋषियों द्वारा अनुसंधान किए गए सभी स्वर न केवल चिकित्सा करते हैं, वरन वे वातावरण को भी आंदोलित कर देते हैं। 

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