जीव गोस्वामी एवं रूप गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु के संपर्क में आए। सब कुछ बदल गया। चिंतन में भगवत्ता का समावेश हो गया। वे गौड़ देश के नवाब के यहां काम करते थे। बड़े काम के आदमी थे। सल्तनत वास्तव में वे ही चलाते थे। नवाब से उन्होंने छुट्टी मांगी। उसने नहीं दी। उसने कहा कि पूरा राज्य कार्य ठप्प हो जाएगा। नहीं माने तो दोनों को जेल में डाल दिया गया। वहीं उनका कार्यालय स्थानांतरित कर उनसे काम करने को कहा गया। वहां भी वे काम करते, पर भगवन्नाम स्मरण नहीं भूलते। यह कहा जाए कि सोते ही नहीं थे, मात्र संकीर्तन करते थे। उन्हें सहज ही आभास हुआ कि महाप्रभु स्वयं जेल में आए और उनसे बोले-‘‘हठ ना करो, जो कर रहे हो, करते रहो। कर्म छूटेगा, स्वाभाविक रूप से कर्म करते-करते पकेगा, झड़ेगा।’’ ऊपर से तो वे कर्म करते, पर उनकी समाधि सहज ही लग जाती। काम पूरा निपटाते थे। मन में संसार था ही नहीं। नवाब को दया आ गई। सन्यास के लिए उसने आज्ञा दे दी एवं मुक्त कर दिया। ऐसे व्यक्ति योगी होते हैं, जो इंद्रियों से तो आचरण करते हैं पर भाव से निष्काम योगी का जीवन जीते हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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