कुशलता पूर्वक कार्य करने का नाम ही योग हैं, कुशल व्यक्ति संसार में सच्ची प्रगति कर सकता हैं। जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य यही हैं कि मनुष्य प्रत्येक कार्य को विवेकपूर्वक करे। इससे मन निर्मल रहता हैं, आत्मा सजग हो जाता हैं और मस्तिष्क परिष्कृत रहता हैं। ऐसे विचारशील व्यक्ति को संशय और मोहग्रस्त होकर भटकना नहीं पड़ता।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें