विपत्ति और अतृप्ति से भरा नीरस जीवन यह बताता हैं कि अंतःकरण की गरिमा सूखने और झुलसने लगी हैं। जड़ें मजबूत और गहरी हो तो जमीन पेड़ के लिए पर्याप्त जीवन-रस प्राप्त कर लेती हैं और वह हरा-भरा बना रहता हैं। आंतरिक श्रद्धा यदि मर न गई हो तो अभावग्रस्त परिस्थितियों में भी सरसता और प्रफुल्लता खोजी जा सकती हैं। उल्लास सुख-साधनो पर नहीं उत्कृष्ट दृष्टिकोण पर निर्भर हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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