कुविचारों और दुःस्वभावों से पीछा छुड़ाने का तरीका यह हैं कि सद्विचारों के संपर्क में निरंतर रहा जाए उनका स्वाध्याय, सत्संग और चिंतन-मनन किया जाए। साथ ही अपने संपर्क-क्षेत्र में सुधार कार्य जारी रखा जाए। सतप्रवृत्ति संवर्द्धन का सेवा कार्य किसी न किसी रूप में कार्यान्वित करते रहा जाए। इतना करने पर ही मन को स्वच्छ, निर्मल व स्वयं को प्रगति के पथ पर अग्रगामी बनाए रखा जा सकता हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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