पूर्व दिशा में उषा की लालिमा दिखाई दे रही थी। अंधकार जा रहा था, प्रातःकाल की बेला आ रहीं थी। भगवान भास्कर अपने रथ पर सवार होकर आगे बढ़ने लगे। दीपक की लौं ने अपना मस्तक उठाया, सूर्यदेव को प्रणाम किया और बुझने की तैयारी करने लगा। सूर्यदेव को प्रसन्नता हुई कि मेरी अनुपस्थिति में दीपक ने अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा के साथ निभाया। वे वरदान देने को उद्यत हुए। दीपक सहज भाव से बोल उठा-‘‘सूर्यदेव ! संसार में अपना कर्तव्य पालन करने से बड़ा कोई धर्म नहीं। इसके लिए पुरस्कार की क्या अपेक्षा मैंने तो आपके द्वारा दी गई जिम्मेदारियां ही निभाई हैं। इसमें मेरी प्रशंसा किसलिए ! आपका तो आशीर्वाद ही बहुत हैं। रात्रि को फिर प्रकाश फैलाने की तैयारी करूंगा।’’ सूर्य भगवान दीपक से पूर्णतः संतुष्ट हो अपनी यात्रा पर आगे बढ़ गए और दीपक की लौं एक संतोष एवं कर्तव्य पालन के भाव के साथ बुझ गई।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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