कल्याण के यशस्वी संपादक हनुमान प्रसाद पोद्धार बीकानेर में सत्संग गोष्ठियों में गए। जहा भी वे जाते उनकी निगाह श्रेष्ठ व्यक्तियों को परखती रहती थीं। बीकानेर राज्य के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति चिम्मन लाल गोस्वामी उनकी गोष्ठियों में आते। उनकी जिज्ञासाए बड़ी सटीक होती थीं। पोद्धार जी का कुछ दिनों का सान्निध्य उनके जीवन को बदल गया। बाद में वे पूरी तरह से गीताप्रेस के साथ कार्य करने की दृष्टि से जीवनदान कर बीकानेर राज्य की नौकरी छोड़कर 1933 में आ गए। 1971 के बाद उनके संपादन में कल्याण के कई खोजपूर्ण विशेषांक निकले। उन्होंने ज्ञान के सागर के पास रहकर जो साधना की, उसे जीवन भर वे समाज को बांटते रहे। यद्यपि 1974 में वे परलोक गमन कर गए, पर उन्होने हनुमान प्रसाद जी के पूरक के रूप में जो योगदान सांस्कृतिक-आध्यात्मिक वांग्मय को दिया, वह भुलाया नहीं जा सकता।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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