महाराणा प्रताप को सब जानते हैं, पर उनकी जननी कौन थी, कहा से आई थी, यह जानकारी विरलों को ही हैं। पिता महाराणा उदयसिंह अरावली की दुर्गम घाटियों में भटक रहे थे। उन्होने देखा कि एस किसान कन्या सिर पर बड़ी टोकरी लिए आ रही हैं। उसमें रोटी, दाल, खेती के औजार आदि थे। दूसरी हाथ से सात-आठ बछड़े एक ही रस्सी से पकड़े थी। चेहरे पर अनूठा तेज था। उसने पास आकर महाराणा को इस स्थिति में देखा तो साथ चलने को कहा। पहाड़ियों की बीच उसका घर था। किसान ने अपनी पुत्री के साथ आए राजा को पहचान लिया। पानी पिलाया, रोटी खिलाई। तब तक महाराणा, जो अविवाहित थे, किसान से उनकी पुत्री मांग चुके थे। देख चुके थे कि वह सिंहनी के समान है। उसकी कोख से सिंह ही पैदा होगा। किसान को जब बताया गया तो उसने कहा-‘‘मेरी क्या हेसियत-आप कहा, हम कहा !’’ पर महाराणा ने उसे समझा कर विवाह कर लिया। रानी जैसी सुयोग्य सहायक व ऊर्जा की स्त्रोत पाकर दूने उत्साह से उन्होंने अरावली पर्वत श्रेणियों के बीच उदयपुर नगर की नीवं डाली और राज्य को सुव्यवस्थित किया। इस रानी की कोख से ही नररत्न महाराणा प्रताप जन्में थें। रानी ने बड़े मन से उन्हे गढ़ा व वे वैसे ही बने, जैसी कि उन दिनों राष्ट्र को जरूरत थी। ऐसी मा ही राष्ट्र निर्माता को जन्म दे सकती हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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