5 अगस्त 1890 को महाराष्ट्र के बीरबंडी नामक कसबे में जन्मे साहित्यकार-समाजसेवी दत्तो वामन पोतदार को श्रेय जाता हैं हिंदी को महाराष्ट्र की दूसरी सबसे बड़ी भाषा बनाने में। उन्हें महाराष्ट्र का साहित्यिक भीष्म कहा जाता हैं। इस कार्य के लिए उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर सेवा करने का दृढ़ निर्णय लिया। उन्होंने ‘भारतीय इतिहास संशोधक मंडल’ की स्थापना भी की, जो कि आज एक महत्वपूर्ण स्थापना के रूप में इतिहास के शोध पर उपलब्धिया लेकर एक शीर्ष स्थापना मानी जाती हैं। मराठी भाषा में उन्होनें सैकड़ों लेख, किताबें लिखीं, जिन्हें मान्यता प्राप्त है। उन्होनें पूना विश्वविद्यालय के कुलपति के नाते भी बड़ी जिम्मेदारी निभाई, पर उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं- राष्ट्रभाषा हिंदी की सेवा। पूरे महाराष्ट्र में अनेक शिक्षण संस्थाए उन्होंने स्थापित की। पूना शहर में आप पुस्तकालय तथा वाचनालयों का जो जाल फेला दिखाई देता हैं, उसमें प्रत्येक में पोतदार जी को श्रेय जाता हैं। आज मराठी, मुंबई या महाराष्ट्र की जब बात चल रही हैं, विघटन का स्वरूप दिखाई देता हैं, जो दत्तो वामन पोतदार जैसे महामानव याद आते हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें