कर्नाटक के एक छोटे से गाव में एक साधारण गृहस्थ के घर एक कन्या जन्मी, जो बड़ी सुंदर युवती बनी। उन दिनो मुसलिम संस्कृति और सभ्यता की आंधी दक्षिण में प्रवेश कर रही थी। अक्का महादेवी नाम की इस साधारण ग्रामबाला ने प्रतिज्ञा की कि वह आजीवन ब्रह्मचारिणी रहकर ईश्वर-उपासना और राष्ट्रसेवा करेगी, कभी भी विधर्मियों को अपने देश में घुसने नहीं देगी। संयम की तेजस्विता ने उसकी कांति में और वृद्धि कर दी। तत्कालीन मैसूर के राजा कौशिक ने अद्वितीय सौंदर्य की धनी महादेवी से विवाह का प्रस्ताव रखा। वे अपनी आति कामुकता एवं ढेरों उपपत्नियों के लिए प्रसिद्ध थे। अक्का महादेवी ने मना कर दिया। कौशिक ने उसे अपमान मानकर अक्का के माता-पिता को बंदी बनाकर पुनः प्रस्ताव भेजा। अक्का ने माता-पिता की खतिर राजा का प्रस्ताव मान लिया, पर एक शर्त पर कि वे समाजसेवा, संयम साधना का परित्याग नहीं करेंगी। कौशिक ने यह बात मान ली। विवाह के बाद अपनी निष्ठा से उन्होंने कामुक पति को भी संत बनाकर सहचर बना लिया। अक्का और कौशिक दोनों ने कन्नड़ संस्कृति की रक्षा के ढेरों प्रयास किए, जिनकी विरूदावली आज भी गाई जाती हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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