भावनाओं की पराकाष्ठा और परमात्मा एवं उसके असंख्य रूपों के प्रति प्रेम। यदि पीड़ित को देख अंतर में
करूणा जाग उठे,
भूखे को देख अपना भोजन उसे देने की चाह मन में आए
और भूले-बिसरों को देख उन्हें सन्मार्ग पर ले चलने की इच्छा हो,
तो ऐसे हृदय में भक्ति का संगीत बजते देर नहीं लगती। सच्चे भक्त की पहचान भगवान के चित्र के आगे ढोल-मॅंजीरा बजाने से नहीं, बल्कि गए-गुजरों और दीन-दुखियों को उसी परमसत्ता का अंश मान उनकी सेवा करने से होती हैं।
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