भारतीय अध्यात्म बड़ी गहरी दृष्टि रखता हैं। विभिन्न धर्मशास्त्र (स्मृतिया) रोगों की उत्पति के विषय में जन्मांतरीय किस निंदित कर्म से वर्तमान में कौन सा रोग हुआ हैं, इस पर प्रकाश डालते हैं।
कहा गया हैं -
पूर्वजन्मकृतं पापं नरकस्य परिक्षये।
बाधते व्याधिरूपेण तस्य जप्यादिभिः शमः।। (शातातप स्मृति 1/5)
इसके अनुसार क्षयरोग, मृगी, जन्मांधता, खल्वाट (एलोपेशिया या गंजापन), मधुमेह, अजीर्ण, श्वास रोग, शूलरोग, रक्तातिसार, भगंदर आदि रोग पूर्वजन्म के कृत्यों के कारण होते हैं।
गायत्री जप आदि, प्रायश्चित, ज्ञानदान, दान-पुण्य आदि कृत्य, सप्ताह में एक दिन उपवास आदि उपायों से इन्हे ठीक किया जा सकता हैं। औषधियों आदि के साथ दैवी चिकित्सा निश्चित ही लाभ देती है।
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